विश्व में भारत ही सर्वधर्म वाला देश है: दलाई लामा
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विश्व में भारत ही सर्वधर्म वाला देश है: दलाई लामा

विश्व के कई हिस्सों में धार्मिक आस्थाओं के बीच संघर्ष की पृष्ठभूमि में तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने धार्मिक सौहार्द, समरसता एवं धर्मनिरपेक्षता की हिमायत करते हुए रविवार को कहा कि विश्व में भारत ही सर्वधर्म वाला देश है और यहां के लोगों को इसे दुनिया को दिखाने की जरूरत है.

विश्व में भारत ही सर्वधर्म वाला देश है: दलाई लामा

भोपाल: विश्व के कई हिस्सों में धार्मिक आस्थाओं के बीच संघर्ष की पृष्ठभूमि में तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने धार्मिक सौहार्द, समरसता एवं धर्मनिरपेक्षता की हिमायत करते हुए रविवार को कहा कि विश्व में भारत ही सर्वधर्म वाला देश है और यहां के लोगों को इसे दुनिया को दिखाने की जरूरत है.

भारत सर्वधर्म पर रहने वाला देश
उन्होंने हालांकि कहा, ‘भारत में सभी धर्मो के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं. कभी-कभी राजनीतिज्ञों के कारण यहां कुछ समस्याएं हो जाती हैं.’ ‘आनंदित रहने की कला’ पर उद्बोधन करते हुए 82 वर्षीय दलाई लामा ने यहां कहा, ‘भारत सर्वधर्म पर रहने वाला देश है. भारत के भाई-बहनों के लिए अब समय आ गया है कि वे भारत के सर्वधर्म, धार्मिक सौहार्द एवं समरसता को दुनिया को दिखाएं. दुनिया को दिखायें कि आपके (भारत के) पास एक खास चीज है.’ उन्होंने कहा, ‘वर्षों से भारत में करणा एवं प्रेम रहा है. यदि आप करणा एवं प्रेम से रहेंगे, तो दुनिया में कहीं भी रहेंगे, निश्चित रूप से सुखी रहेंगे.’ दलाई लामा ने कहा, ‘सभी धर्मो का मूलमंत्र प्रेम एवं करणा है.

दुनिया में गरीबी एवं अमीरी की खाई बहुत बढ़ गई
उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में सात अरब के आसपास लोग किसी न किसी आपदाओं या ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हैं जो हमारे नियंत्रण में नहीं हैं. लेकिन हिंसा, भूखमरी जैसी कई ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें मानव ने खुद ही अपनी लापरवाही एवं अज्ञानता से पैदा किया है, क्योंकि करणा, प्रेम एवं दया नष्ट होती जा रही है. इससे अलावा दुनिया में गरीबी एवं अमीरी की खाई बहुत बढ़ गई है.

समस्याओं के लिए उदासीन रहना गलत
दलाई लामा ने कहा, ‘हम इन मानव निर्मित समस्याओं को दूर करने के लिए या तो नाम मात्र का प्रयास करते हैं या उनकी अनदेखी करते हैं. लेकिन कोई भी समझदार व्यक्ति इसकी अनदेखा नहीं करेगा. इसलिए इन समस्याओं की अनदेखी करना बिलकुल गलत है.’ उन्होंने कहा, ‘इन समस्याओं के लिए उदासीन रहना गलत है.’ उन्होंने कहा कि मानव का मूलभूत स्वभाव करणा एवं प्रेम है, इसे बढ़ाने की जरूरत है. यह दिल से उत्पन्न होगी, बाहर से हम इसे खरीद नहीं सकते.

सभी लोगों को धर्म से सुख नहीं मिल सकता
दलाई लामा ने कहा कि सभी लोगों को धर्म से सुख नहीं मिल सकता क्योंकि कई लोग नास्तिक हैं और उन्हें प्रेम एवं करणा से सुख मिल सकता है। उन्होंने कहा कि भारत 2000 से भी अधिक साल पुराना है तथा यहां धर्म स्वत: फला फूला है. ईसाई एवं इस्लाम बाहर से आए हैं और इन सभी धर्मो में यहां धार्मिक सौहार्द एवं समरसता है.

जाति प्रथा सबसे बड़ी सामाजिक बुराई
दलाई लामा ने कहा, ‘मेरा मानना है कि यह अपने आप में अद्भुत है. विश्व के अन्य किसी देश में ऐसा नहीं है.’ उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, ‘भारत में सभी धर्मो के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं. कभी-कभी राजनीतिज्ञों के कारण यहां कुछ समस्याएं हो जाती हैं.’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए इसे समझा जा सकता है. मानवों में कुछ शरारती व्यक्ति भी हैं. जाति प्रथा को सबसे बड़ी सामाजिक बुराई बताते हुए दलाई लामा ने कहा कि इससे समाज को लाभ नहीं हो सकता है. इन सबको छोड़ने की जरूरत है, क्योंकि यह पुराने हो गए हैं. सभी धर्म गुरुओं को इनके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए.

सभी धर्मो का उद्देश्य प्रेम
उन्होंने कहा, ‘सभी धर्मो का उद्देश्य प्रेम है. कोई भी धर्म सर्वश्रेष्ठ नहीं होता. जिस प्रकार से विभिन्न दवाइयां विभिन्न रोगों के लिए बनी हैं, उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के धर्म विभिन्न प्रकार के मानसिक सुख देने के लिए बने हैं. अगर आप सद्भावना चाहते हैं, तो सर्वधर्म संवाद है. एक धर्म के द्वारा संभव नहीं होगा.’ दलाई लामा ने कहा, ‘मैंने कभी नहीं कहा कि बौद्ध धर्म सबसे अच्छा धर्म है.’ 

व्यक्ति अपनी मां से सीखता है प्रेम एवं करणा का पाठ 
उन्होंने कहा, ‘आजकल शिक्षा ने भौतिक रूप ले लिया है, जो पर्याप्त नहीं है. शिक्षा पद्धति को धर्मनिरपेक्ष, आंतरिक मूल्यों, प्रेम एवं सहिष्णुता पर आधारित होनी चाहिए, न कि धर्म पर आधारित.’ उन्होंने कहा, ‘शिक्षा पद्धति के बारे में मैं एक अमेरिकी विश्वविद्यालय के साथ काम कर रहा हूं. इस पर अगले साल तक एक मसौदा तैयार होने की संभावना है. शिक्षा पद्धति का यह मसौदा आंतरिक मूल्यों पर आधारित होगा.’ दलाई लामा ने बताया, ‘कोई भी व्यक्ति प्रेम एवं करणा का पाठ अपनी मां से सीखता है. मुझे भी प्रेम एवं करणा का सबसे पहले पाठ पढ़ाने वाली मेरी मां थी.’

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