रिश्‍वत केस- SIT जांच की मांग खारिज, याचिका ने जजों की ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया: SC
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रिश्‍वत केस- SIT जांच की मांग खारिज, याचिका ने जजों की ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया: SC

न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ ने मामले में एक न्यायाधीश को सुनवाई से हटाने के लिए प्रयास करने पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की और कहा कि यह उचित नहीं है. 

रिश्‍वत केस- SIT जांच की मांग खारिज, याचिका ने जजों की ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया: SC

नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों के नाम पर रिश्वत मांगने के मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिका ने न्यायाधीशों की ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने वकील कामिनी जायसवाल की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि सीबीआई की प्राथमिकी किसी न्यायाधीश के खिलाफ नहीं है और किसी न्यायाधीश के खिलाफ इस तरह की शिकायत दर्ज करना भी संभव नहीं है. बहरहाल, इसने जायसवाल के खिलाफ मानहानि नोटिस जारी नहीं किया.

  1. कोर्ट ने कहा, जजों की ईमानदारी पर अनावश्‍यक संदेह पैदा हुआ
  2. सीबीआई की प्राथमिकी किसी न्यायाधीश के खिलाफ नहीं है
  3. किसी जज के खिलाफ इस तरह शिकायत दर्ज करना संभव नहीं

न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ ने मामले में एक न्यायाधीश को सुनवाई से हटाने के लिए प्रयास करने पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की और कहा कि यह उचित नहीं है. जायसवाल ने वरिष्ठ वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण के माध्यम से मामले में न्यायमूर्ति खानविलकर के हटने की मांग की थी. खानविलकर ने खुद को मामले से हटाने से इनकार कर दिया था.

पीठ ने कहा, ''इस तरह की याचिका दायर कर संस्थान को नुकसान पहुंचाया गया है और इसकी ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया गया है.'' याचिका में दावा किया गया था कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए गए थे. इसमें ओडिशा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश इशरत मसरूर कुदुशी भी आरोपी हैं. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों के नाम पर कथित रूप से रिश्वत लिये जाने वाले मामले को लेकर दायर याचिका पर सोमवार (13 नवंबर) को सुनवाई पूरी कर ली थी. इसी बीच सोमवार को अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि याचिकाकर्ता को इसे वापस ले लेना चाहिए क्योंकि इसने इस संस्था की प्रतिष्ठा का नुकसान पहुंचाया है. 

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संविधान पीठ का गठन
न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीत की पीठ ने नौ नवंबर को अपने आदेश में कहा था कि याचिका पर शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए. हालांकि अगले ही दिन, 10 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ का आदेश उलट दिया था. संविधान पीठ ने कहा था, ''यदि ऐसा कोई आदेश किसी अन्य पीठ ने दिया है तो वह टिक नहीं सकता है क्योंकि यह संविधान पीठ के आदेश के समानांतर होगा.'' 

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर, जो प्रधान न्यायाधीश के बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं, सीबीआई की प्राथमिकी में लगे आरोपों को ‘परेशान करने’ वाला बताया था और अधिवक्ता कामिनी जायसवाल की याचिका में न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाये गये आरोपों के मद्देनजर शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की पीठ गठित करने का आदेश दिया था. 

रिश्‍वत केस
सीबीआई ने 19 सितंबर को दर्ज प्राथमिकी में उडीसा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश इशरत मसरूर कुद्दुसी सहित अनेक व्यक्तियों को कथित भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी नामित किया है. कुद्दुसी, जिन्होंने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में भी न्यायाधीश के रूप में काम किया था, को लखनऊ स्थित प्रसाद इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के चेयनमैन बी पी यादव, उनके पुत्र प्रकाश यादव और तीन अन्य को नये छात्रों को प्रवेश देने से प्रतिबंधित एक मेडिकल कॉलेज से संबंधित मामले का कथित रूप से निबटारा कराने के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

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