अंतिम क्षणों में ब्रिटेन के हटने की घोषणा से सुरक्षा परिषद को झटका लगा है क्योंकि परिषद के सभी महत्वपूर्ण मामलों में स्थायी सदस्यों की अहम भूमिका होती है.
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संयुक्त राष्ट्र: जस्टिस दलवीर भंडारी को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के लिए दोबारा चुन लिया गया है. उनका मुकाबले ब्रिटेन के जस्टिस क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था. लेकिन ब्रिटेन को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपेक्षित समर्थन नहीं मिला. लिहाजा ब्रिटेन ने अंतिम समय में उनकी उम्मीदवारी वापस ले ली. इस प्रकार बहुमत के समर्थन से जस्टिस दलवीर भंडारी (70) को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए आईसीजे के लिए चुना गया. चुने जाने के बाद जस्टिस भंडारी ने कहा कि मैं उन सभी देशों को आभारी हूं जिन्होंने मेरा समर्थन किया. आप सभी जानते हैं कि यह मुकाबला काफी बड़ा था.
अंतिम क्षणों में ब्रिटेन के हटने की घोषणा से सुरक्षा परिषद को झटका लगा है क्योंकि परिषद के सभी महत्वपूर्ण मामलों में स्थायी सदस्यों की अहम भूमिका होती है लेकिन इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र महासभा के समर्थन के बूते जस्टिस दलवीर का चुना जाना संयुक्त इसके स्थायी सदस्यों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
सकते में स्थायी सदस्य
जस्टिस दलवीर भंडारी की जीत से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य 'सकते' में है, क्योंकि यह एक मिसाल तय करेगा जो भविष्य में उनकी शक्ति को चुनौती दे सकता है. पर्यवेक्षकों का ऐसा आकलन है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्य- अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ग्रीनवुड के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे थे. सुरक्षा परिषद का पांचवां स्थायी सदस्य ब्रिटेन है.
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बहरहाल, वीटो की शक्ति रखने वाले पांच स्थायी सदस्यों के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से भारत की जीत की संभावना से ये पांचों देश- ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस, और अमेरिका सकते में हैं क्योंकि यह एक मिसाल पेश करेगा और वे नहीं चाहते कि यह हो. सूत्रों ने कहा कि आज ब्रिटेन है और कल हममें से कोई भी हो सकता है. इस दलील ने इन सभी पांच सदस्यों को साथ ला दिया है.
11 दौर का चुनाव
इससे पहले 11 दौर के चुनाव में भंडारी को महासभा के करीब दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिला था, लेकिन सुरक्षा परिषद में वह ग्रीनवुड के मुकाबले तीन मतों से पीछे थे. 12वें दौर के चुनाव में उनको विजेता घोषित किया गया. विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि ब्रिटेन ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों के साथ अनौपचारिक परामर्श में संयुक्त सम्मेलन प्रणाली के विचार पर विमर्श किया क्योंकि उसे लगता है कि यह बचकर निकलने की उनकी रणनीति हो सकती है.
संयुक्त राष्ट्र के अंदरूनी लोगों द्वारा इस तरह का आकलन सूत्रों की जानकारी पर आधारित है क्योंकि आईसीजे चुनाव के लिए सुरक्षा परिषद और महासभा, दोनों ही जगह गुप्त मतदान होता है और यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि किसने किसे वोट दिया है. इससे पहले के सभी दौर के चुनाव में सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड को नौ और भंडारी को पांच मत मिले थे.
ब्रिटेन की चाल
इससे पहले ब्रिटेन ने दलवीर भंडारी को रोकने के लिए कूटनीतिक दांवपेंच खेलने शुरू कर दिए. वह बहुमत के अभाव में मतदान की प्रक्रिया को खत्म करने के लिए ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म पर जोर देकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता का 'गलत इस्तेमाल' करने पर उतारू हो गया था. राजनयिक सूत्रों ने बताया कि ब्रिटेन सुरक्षा परिषद में ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म पर जोर दे रहा था जिसका इस्तेमाल आखिरी बार करीब 96 साल पहले किया गया था और इसके खिलाफ स्पष्ट कानूनी राय है. भारत के पूर्व औपनिवेशिक शासन द्वारा खेली जा रही 'घटिया राजनीति' से सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्यों के बीच ''असहजता'' पैदा हो गई थी. इनमें से कई इस बात के दीर्घकालिक प्रभावों को जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत को नजरअंदाज करने का क्या नतीजा होगा.
बहुमत का आंकड़ा
पूर्व में महासभा में बहुमत पाने वाले उम्मीदवार को ही हेग स्थित आईसीजे में न्यायाधीश चुना जाता है. भंडारी के पास 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सदस्यों में से करीब दो तिहाई का समर्थन प्राप्त था. ग्रीनवुड महासभा में 50 से अधिक वोटों से पीछे थे. हालांकि सुरक्षा परिषद में उन्हें भंडारी के पांच वोटों के मुकाबले नौ वोट मिले.
चुनाव प्रक्रिया
आईसीजे का चुनाव जीतने के लिए किसी उम्मीदवार को महासभा और सुरक्षा परिषद में बहुमत हासिल करने की जरुरत होती है लेकिन 11 चरणों के मतदान में किसी को भी बहुमत नहीं मिला. इसलिए 12वें यानी अंतिम चरण में मतदान की स्थिति बनी. ब्रिटेन अपने पक्ष में बहुमत ना होने को भांपते हुए 14 सदस्यों के साथ अनौपचारिक बातचीत के लिए सुरक्षा परिषद गया.
ऐसा माना जा रहा है कि ब्रिटेन ने प्रस्ताव रखा था कि सुरक्षा परिषद में सोमवार को पहले चरण के चुनाव के बाद मतदान रोक दिया जाए और उसके बाद ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म हो. ऐसा समझा जा रहा है कि सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया था. ब्रिटेन को मतदान रोकने के लिए नौ वोटों की जरूरत थी. इसके लिए ब्रिटेन को अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने और अल्पमत होने के कारण ही आखिरकार ब्रिटेन को अपने उम्मीदवार का नाम वापस लेना पड़ा.
सैयद अकबरुद्दीन की अपील
इस विकल्प का वर्ष 1921 में संयुक्त राष्ट्र के गठन से पहले केवल एक बार इस्तेमाल किया गया था तब परमानेंट कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल जस्टिस में डिप्टी जजों का चुनाव किया गया था. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने ज्वाइंट कांफ्रेंस मेकैनिज्म का कड़ा विरोध किया था. उन्होंने 160 से अधिक देशों के राजनयिकों से कहा, ''आप राजनयिक हैं, आप गंभीर लोग हैं. कूटनीति समाधान है. मतदान के तरीके से राजनयिक अपने मतभेद सुलझाते हैं ना कि गुजरे जमाने के पेचीदा तरीके से.''