तोलोलिंग पर अपना कब्जा वापस लेने के लिए निकली 2 राजपूताना राइफल्स की टीम ने अपने बैग में खाने की जगह गोली और हैंडग्रेनेड रखने का फैसला किया था.
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नई दिल्ली: तोलोलिंग की चोटियों पर बैठे पाकिस्तान सेना के जवान अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि युद्ध के बाद जश्न मनाने के लिए बड़े बड़े कडाहों में हलुआ और परांठा तैयार करके रहते थे. 13 जून 1999 को भी पाकिस्तानी सेना ने कुछ इसी तरह की तैयारी कर रखी थी. उन्होंने अपने जश्न के लिए हलवा, पराठा और मेवों से बनी मिठाईयों को तैयार रखा था.
पाकिस्तानी सैनिकों की मुराद के तहत 13 जून की सुबह तोलोलिंग की चोटियों पर जश्न हुआ, लेकिन इस हलवा-पराठे का स्वाद पाकिस्तानी सैनिकों की जगह भारतीय सेना के जवानों ने चखने को मिला. भारतीय सेना ने तोलोलिंग की चोटियों पर अपना कब्जा वापस लेने के बाद पाकिस्तान सेना द्वारा बनाए गए हवला-पराठे और मेवों की मिठाई के साथ अपनी जीत का जश्न मनाया.
सेना ने बैग में खोने की जगह रखी थी गोलियां
तोलोलिंग में भारतीय सेना की जीत में अहम हिस्सेदारी रखने वाले कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने बताया कि तोलोलिंग पर अपना कब्जा वापस लेने के लिए निकली 2 राजपूताना राइफल्स की टीम ने अपने बैग में खाने की जगह गोली और हैंडग्रेनेड रखने का फैसला किया था. इस टीम के जवानों और अधिकारियों ने अपने साथ सिर्फ दो किलो भार वाला खाने का सामान रखा था.
कमांडो की टोली जैसे जैसे तोलोलिंग की तरफ बढ़ रही थी, वैसे वैसे परिस्थितियां अंदाजे से बहुत अधिक कठिन होती जा रही थी. नौबत यहां तक आ गई कि तोलोलिंग के करीब पहुंचते- पहुंचते इसी टीम के सभी जाबांजों का खाना समाप्त हो चुका था. अब सिर्फ पानी का सहारा था. पाकिस्तानी सेना से मोर्चा ले रहे जवान प्यास और भूख मिटाने के लिए सिर्फ एक से दो घूंट पानी पी रहे थे. जिससे ज्यादा से ज्यादा समय तक उपलब्ध को सुरक्षित रखा जा सके.
जंग फतेह करने के बाद जवानों पर हावी होने लगी थी भूख
कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने बताया कि दो दिन लंबी चली लड़ाई के दौरान, किसी भी अधिकारी और जवान के पेट में अनाज का एक दाना भी नहीं गया था. भूखे पेट जवान अपनी पूरी ताकत से पाकिस्तानी आतंकियों का सामना करते रहे. भारतीय सेना का यह साहस ही था कि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों को बावजूद तोलोलिंग में मौजूद पाकिस्तानी सेना के एक-एक जवान को मार गिराया. जिसके बाद, 13 जून की सुबह करीब चार बजे हमारी टोली तोलोलिंग की चोटी पर पहुंच गई और भारतीय झंडा फहरा दिया.
उन्होंने बताया कि लगातार दो दिन चली जंग के बाद ज्यादातर जवान बुरी तरह से थक चुके थे. जीत से कुछ देर के बाद सूरज निकलने लगा था. वहीं, जवानों की थकान जैसे जैसे कम हो रही थी, वैसे वैसे भूख उन पर हावी होती जा रही थी. दो दिन से भूखे जवानों को खाने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. बर्फ में फैले बारूद की वजह से पानी के लिए उसका भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था. इसी बीच, हमारे जहन में आया कि पाकिस्तानी इतने दिनों से यहां थे, उन्होंने अपने लिए खाने पीने का कुछ तो इंतजाम कर रखा होगा.
पाकिस्तानियों ने झोपड़ी में छिपा रखा था जश्न का सामान
कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने बताया कि हमने पहाड़ी के चारों तरफ देखना शुरू किया. तभी हमें दूसरी तरफ, थोडी ढलान में एक छोटा का झोपड़ी नुमा कंस्ट्रक्शन नजर आया. लेकिन हमारे लिए उस झोपड़ी तक पहुंचना आसान नही था. हमें पता था कि सामने की चोटियों पर अभी पाकिस्तानी सेना मौजूद है. यदि उन्होंने नीचे उतरने की कोशिश की, तो वह उन्हें सीधे निशाने में लेकर गोलियां चला सकते थे. अब जिंदगी दोनों तरह से खतरे में थे. हमने भूख से मरने की जगह जंग में शहादत देने का फैसला किया.
उन्होंने बताया कि फैसले के तहत, मै और मेरे एक साथी झोपड़ी की तरफ बढ़ने लगे. सामने की चोटियों मे मौजूद पाकिस्तानी सेना हमें देखकर हैरान थी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि दो लोग नीचे की तरफ भाग रहे हैं. आखिर हम क्या कर रहे हैं. उन्हें लगा कि हम हमले की रणनीति के तहत आगे बढ़े है. इसी असमंजस के बीच हम दोनों उस झोपड़ी के भीतर जाने में सफल रहे. झोपड़ी के अंदर हमने पाया कि पाकिस्तानी सेना ने जीत का जश्न मनाने के लिए बड़े बड़े कडाहों में हलवा बना रखा था. भारी तादाद में पराठे, ड्राई फ्रूट्स, कराची हलवे के पैकेट, मिठाइयां मौजूद थीं.
सुरक्षा के लिहाज से सबसे पहले मैनें चखी सभी चीजें
कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने बताया कि हमारे सामने भरभूर खाना मौजूद था, लेकिन दिल में एक डर भी था. हमें डर था कि कहीं पाकिस्तानी सेना ने खाने की इन चीजों से जहर तो नहीं मिलाया है. अपने जवानों की जान हिफाजत में रखने के लिए मैने सबसे पहले इस खाने को चखने का फैसला किया. मेरे जहन में था कि यदि जहर होगा तो सिर्फ मेरी जान जाएगी, मेरे सभी जवान सुरक्षित रहेंगे. मैने वहां मौजूद सभी चीजों को चखा. सभी चीजें ठीक थी. इसके बाद हम दोनोंं ने वहांं मौजूद खाने को अपने बैग में भरा और ऊपर जाने की रणनीति तैयार करने लगे.
उन्होंने बताया कि रणनीति के तहत हम अपने साथ कुछ स्मोक बम लेकर गए थे. हमने स्मोग ग्रेनेड छोड़े, जिससे पाकिस्तानी सेना को हमारी सही लोकेशन न मिल सके. इसके बाद, हम दोनों तोलोलिंग की चोटी पर सुरक्षित वापस आ गए. तोलोलिंग पहुंचने के बाद हमने पाकिस्तानी सेना द्वारा पकाए गए हलवा-पराठे और मिठाईयों से अपनी जीत का जश्न मनाया.