1996 में पहली बार लालू के पीछे पड़ा था चारा घोटाले का 'जिन्न', छीन ली चुनाव लड़ने की हैसियत
Advertisement

1996 में पहली बार लालू के पीछे पड़ा था चारा घोटाले का 'जिन्न', छीन ली चुनाव लड़ने की हैसियत

1997 में लालू प्रसाद यादव ने खुद को जनता दल से अलग कर लिया और 'राष्ट्रीय जनता दल' नाम से नई पार्टी का गठन किया.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के एक मामले में शनिवार (6 जनवरी) को साढ़े तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने सजा की अवधि पर बहस पूरी होने के बाद उन्हें सजा सुनाई. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री पर इस मामले में पांच लाख रुपये जुर्माना भी लगाया गया है. जुर्माना अदा ना करने की सूरत में लालू प्रसाद को और छह माह की सजा भुगतनी होगी. अदालत ने गतवर्ष 23 दिसंबर को इस घोटाले के संबंध में लालू प्रसाद और 15 अन्य को दोषी करार दिया था. बिहार की राजनीति की धुरी लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर किसी संघर्ष से कम नहीं रहा. 1996 से चारा घोटाले ने लालू का पीछा करना शुरू किया, जिसका पहला नतीजा 2013 में मिला जब एक मामले में वे दोषी करार दिए गए और अगले छह साल उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग गया, लेकिन उनकी राजनीति फिर भी जारी रही.

  1. 29 साल की उम्र में लालू प्रसाद यादव पहली बार 1977 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.
  2. 1990 से 1997 तक लालू प्रसाद ने बिहार के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला. 
  3. चारा घोटाले के एक मामले में लालू प्रसाद को 2013 में पहली बार दोषी करार दिए गए.

राजनीतिक यात्रा:

29 साल की उम्र में लालू प्रसाद यादव पहली बार 1977 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. 1980 से 1989 के दौरान लालू प्रसाद यादव लगातार बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर निर्वाचित होते रहे. 1989 में लालू प्रसाद यादव ने बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई. वे लोक मामलों की समिति के संयोजक और पुस्तकालय कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. अंत में वे दूसरी बार 9वें लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए.

सजा मिलने के बाद लालू प्रसाद की हुंकार, BJP की राह पर चलने से बेहतर है मौत

1990 से लेकर 1995 तक लालू प्रसाद यादव बिहार विधानपरिषद के सदस्य बने रहे.
1990 से 1997 तक उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला. 
1995 से 1998 तक लालू प्रसाद बिहार विधानसभा के सदस्य रहे.
1996 में चारा घोटाले पर से पर्दा उठा, जिसमें लालू प्रसाद का नाम सामने आया.
1997 में लालू प्रसाद यादव ने खुद को जनता दल से अलग कर लिया और 'राष्ट्रीय जनता दल' नाम से नई पार्टी का गठन किया. 1998 में लालू प्रसाद तीसरी बार 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए.

1998 से 1999 के दौरान लालू प्रसाद यादव गृह और सामान्य मामलों की समिति के सदस्य रहे. उन्होंने सुचना व प्रसारण मंत्रालय के परामर्श समिति में बतौर सदस्य भी अपनी जिम्मेदारी निभाई. 2004 में लालू प्रसाद यादव 14वें लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और कैबिनेट में बतौर रेल मंत्री का पदभार संभाला. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में लालू प्रसाद की पार्टी (राजद) एक महत्वपूर्ण सदस्य बनकर उभरी.  

2009 में लालू प्रसाद 5वीं बार 15वें लोकसभा के लिए चुने गए. चारा घोटाले के एक मामले में लालू प्रसाद को 2013 में पहली बार दोषी करार दिया गया और अगले 6 सालों तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग गया. 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने शानदार वापसी की. बिहार की जनता ने लालू प्रसाद (राजद) और नीतीश कुमार (जदयू) के गठबंधन को बहुमत देकर बिहार की सत्ता पर विराजमान कर दिया.

हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2017 में भ्रष्टाचार के एक मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के घिरते ही बेहद नाटकीय घटनाक्रम में न केवल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व लालू प्रसाद यादव की राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर बनाए गए महागठबंधन को भी तोड़ दिया.

इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में वे (नीतीश कुमार) एकबार फिर न केवल शामिल हो गए, बल्कि भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस नए समीकरण में राज्य की सबसे बड़ी पार्टी राजद सत्ता से बाहर हो गई. इसके बाद राजद के कई नेता सत्ता से बाहर हो गए और उनकी मंत्री की कुर्सी छीन गई. उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में नीतीश ने करीब चार साल पहले ही भाजपा का 17 वर्ष का साथ छोड़ दिया था. 

चारा घोटाले में लालू को साढ़े 3 साल की सजा

रांची की एक सीबीआई अदालत ने नौ सौ पचास करोड़ रुपये के चारा घोटाला में देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की अवैध निकासी के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद को साढ़े तीन वर्ष की कैद एवं दस लाख जुर्माने की शनिवार (6 जनवरी) को सजा सुनाई. अदालत ने लालू के दो पूर्व सहयोगियों लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा को सात वर्ष की कैद एवं बीस लाख रुपये के जुर्माने एवं बिहार के पूर्व मंत्री आर के राणा को साढ़े तीन वर्ष की कैद एवं दस लाख जुर्माने की सजा सुनायी.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, आर के राणा, जगदीश शर्मा एवं तीन वरिष्ठ पूर्व आईएएस अधिकारियों समेत 16 अभियुक्तों की सजा पर विशेष सीबीआई अदालत का फैसला शनिवार शाम साढ़े चार बजे आया. अदालत ने सजा की घोषणा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से की और सभी अभियुक्तों को बिरसामुंडा जेल में ही वीडियो लिंक से अदालत के सामने पेश कर सजा सुनायी गयी.

उल्लेखनीय है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने चारा घोटाले से संबंधित एक मामले में बीते 23 दिसंबर को दोषी करार दिया था. अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और अन्य छह आरोपियों को इसी मामले में बरी कर दिया.

यह मामला देवघर के जिला कोषागार से फर्जी तरीके से 84.5 लाख रुपये निकालने से जुड़ा हुआ है. मामले की सुनवाई रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने 13 दिसंबर को पूरी कर ली थी. इस पूरे मामले में कुल 34 आरोपी थे, जिनमें से 11 की मौत हो चुकी है. जबकि एक आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और सीबीआई का गवाह बन गया.

Trending news