जानिए उन विशेष स्थानों के बारे में जहां किए जाते हैं श्राद्ध-तर्पण
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जानिए उन विशेष स्थानों के बारे में जहां किए जाते हैं श्राद्ध-तर्पण

भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष कहे जाते हैं। ये समय होता है पूर्वजों का ऋण यानी कर्ज उतारने का। पितृपक्ष यानी महालया में कर्मकांड की विधियां और विधान अलग-अलग हैं। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं। इस दौरान पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर किया जाने वाला पिंडदान सीधे उन तक पहुंचता है और उन्हें सीधे स्वर्ग तक ले जाता है। माता-पिता और पुरखों की मृत्यु के बाद उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले इसी कर्मकांड को कहा जाता है पितृ श्राद्ध। इस बार श्राद्ध के पखवाड़े की अवधि 27 सितंबर से 12 अक्टूबर तक है।

जानिए उन विशेष स्थानों के बारे में जहां किए जाते हैं श्राद्ध-तर्पण

नई दिल्ली: भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष कहे जाते हैं। ये समय होता है पूर्वजों का ऋण यानी कर्ज उतारने का। पितृपक्ष यानी महालया में कर्मकांड की विधियां और विधान अलग-अलग हैं। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं। इस दौरान पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर किया जाने वाला पिंडदान सीधे उन तक पहुंचता है और उन्हें सीधे स्वर्ग तक ले जाता है। माता-पिता और पुरखों की मृत्यु के बाद उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले इसी कर्मकांड को कहा जाता है पितृ श्राद्ध। इस बार श्राद्ध के पखवाड़े की अवधि 27 सितंबर से 12 अक्टूबर तक है।

देश में श्राद्ध के लिए गया, बद्रीनाथ, हरिद्वार, गंगासागर, त्रयंबकेश्वर, प्रयाग, काशी, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, पुष्कर सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। कहते है इन स्थलों पर भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।

गया: वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है। गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है।

वाराणसी: धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी को मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। माना यह भी जाता है कि यहां प्राण त्यागने वाले मनुष्यों को भगवान शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते हैं। लेकिन जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल मौत के शिकार होते हैं, उनके मोक्ष की कामना के लिए काशी के पिशाचमोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। काशी पूरे विश्व में घाटों और तीर्थों के लिए जाना जाता है। 12 महीने चैत्र से फाल्गुन तक 15-15 दिन का शुक्ल और कृष्ण पक्ष का होता है लेकिन पितृ पक्ष अश्विन माष के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है। इन 15 दिनों को पितरों की मुक्ति का दिन माना जाता है और इन 15 दिनों के अन्दर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है।

बद्रीनाथ: शास्त्रों में पिंडदान के लिए तीन जगहों को सबसे विशेष माना गया है। इनमें बद्रीनाथ भी है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। पिंडदान की परंपरा सृष्टि के रचनाकाल से ही शुरू है। जिसका वर्णन वायु पुराण, अग्नि पुराण और गरुड़ पुराण में है।

इलाहाबाद: इलाहाबाद न सिर्फ कुंभ के लिए ही जाना जाता है बल्कि श्राद्ध के लिहाज से भी उत्तम माना गया है। यहां गंगा-जमुना का संगम है। कहा जाता है कि भगवान राम ने त्रिवेणी तट पर ही अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। कहा जाता है कि यहां राजाराम के पंडों की वो पीढ़ी आज भी है, जिसे वो अयोध्या से लेकर आए थे। प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक भगवान विष्णु चरण भी इलाहाबाद में ही विराजमान माने जाते हैं। इसीलिए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना लेकर यहां आते हैं।

मथुरा: ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध कर्म का विशेष फल मथुरा में प्राप्त होता है। मथुरा में श्राद्ध करने वालों के पूर्वजों को आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है। इसलिए यहां भी श्राद्ध के मौके पर तर्णण करने की परंपरा चली आ रही है।  

जगन्नाथ पुरी: माना जाता है कि द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। जगन्नाथ पुरी में भी पुराणों में श्राद्ध करने की परंपरा है। बताया जाता है कि यहां भी श्राद्ध करने का विशेष फल प्राप्त होता है।

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