मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018: हाई प्रोफाइल सीट गोंविदपुरा है बीजेपी का अजेय गढ़
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018: हाई प्रोफाइल सीट गोंविदपुरा है बीजेपी का अजेय गढ़

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्रियों के साथ सरकारें बदलती गईं लेकिन, 1974 के बाद से गोविंदपुरा सीट का विधायक नहीं बदला.

बीजेपी की ओर से बाबूलाल गौर की पुत्रवधू कृष्णा गौर को मैदान में उतारा गया है.

भोपाल/संदीप भम्मरकर: गोविंदपुरा सीट मध्य प्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल सीट के तौर पर जानी जाती है. इस सीट पर 44 साल से लगातार बाबूलाल गौर का एकतरफा कब्जा है. 89 साल के बाबूलाल गौर इस बार गोविंदपुरा से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. इसलिए, मुकाबला और ज्यादा रोचक हो गया है. बीजेपी की ओर से गौर की पुत्रवधू कृष्णा गौर को मैदान में उतारा गया है. वहीं, कांग्रेस ने इस बार युवा चेहरे गिरीश शर्मा को मैदान में उतारकर गोविंदपुरा फतेह करने का सपना संजोया है. कांग्रेस ने इस सीट के लिए गौर नहीं कोई और का चुनावी नारा दिया है. साथ ही गोविंदपुरा के पिछड़ेपन को चुनावी मुद्दा बनाया है.  

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्रियों के साथ सरकारें बदलती गईं लेकिन, 1974 के बाद से गोविंदपुरा सीट का विधायक नहीं बदला. इस सीट से बाबूलाल गौर पहले विधायक रहे. फिर नेता प्रतिपक्ष बने. इसके बाद मुख्यमंत्री के ओहदे तक पहुंच गए. बीजेपी सरकार में हर वक्त वे मंत्री रहे. मौजूदा सरकार में ही गौर से फॉर्मूला 70 का हवाला देकर मंत्री पद छीन लिया गया था. बता दें कि गौर का किला ढहाने के लिए कांग्रेस ने कई तरह के पैंतरे आजमाए थे. कभी उनके सामने भोजपुरी समाज से शिवकुमार उरमलिया को उतारा गया तो, कभी महापौर रहीं विभा पटेल जैसी सक्रिय महिला उम्मीदवार पर दांव लगाया. करनैल सिंह, आरडी त्रिपाठी जैसे बीएचईएल के मजदूर नेताओं के साथ गोविंद गोयल जैसा चर्चित चेहरा भी गौर की नींव को हिला नहीं पाया.

इस बार बीजेपी की बदली हुई परिस्थितियों में गौर का टिकट कटा लेकिन, गौर की जिद के चलते उनकी बहू कृष्णा गौर को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया. इस बार ये चुनाव रोचक इसलिए भी है क्योंकि, गौर चुनावी मैदान में नहीं हैं. वे केवल अपनी बहू के चुनाव प्रचार में जाते हैं. लिहाजा कांग्रेस इसी को गरम लोहे जैसा मौका समझ रही है. मौके को भुनाने के लिए युवा तुर्क और गोविंदपुरा इलाके से ही दो बार के पार्षद रहे गिरीश शर्मा को मौका दिया गया है. इस बार गोविंदपुरा में बीजेपी पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए कृष्णा गौर को टिकट नहीं देने की मांग उठी थी. इससे यहां पहली बार भितरघात का खतरा है. वहीं, दूसरी तरफ गोविंदपुरा में कमज़ोर समझी जाने वाली कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ने की कवायद में लगी हुई है.

गोविंदपुरा में हो रहे चुनाव प्रचार पर गौर करें तो, बीजेपी परंपरागत धूमधड़ाके के साथ प्रचार कर रही है. कृष्णा गौर एक ओपन जीप पर हाथ जोड़कर सबका अभिवादन करती हैं. लोग उनपर फूल बरसाकर स्वागत कर रहे हैं. कुछ बीजेपी कार्यकर्ता उनको लाल चुनरी पहनाकर अपनी आस्था जताते हैं. मुस्कुराहट बिखेरती कृष्णा गौर पूरा रिस्पांस देकर आगे बढ़ती जाती हैं. वहीं, कांग्रेस के युवा प्रत्याशी का प्रचार परंपरागत रूप से अलग है. गिरीश शर्मा का नाम पोस्टर बैनरों पर पंडित गिरीश शर्मा लिखा जाता है. माथे पर लंबा तिलक और हाथों में रक्षासूत्रों का गुच्छा हिंदुत्व का प्रदर्शन करता दिखता है. गिरीश शर्मा का इरादा हिंदू वोटरों को रिझाने का है. 
गिरीश शर्मा शिवनगर इलाके की तंग गलियों में पैदल चलते हैं. वोटरों से मिलते हैं. कभी कान में कहते हैं. कभी वोटर के हाथ को अपने सिर पर रखते हैं. गलियों में उनके साथ कार्यकर्ताओं की भीड़ भी है. भीड़ की एक पोशाक आकर्षित करती है. कुछ लड़के भगवा टी शर्ट में नजर आते हैं. कांग्रेस का झंडा थामे भगवा टीशर्ट धारी ये हुजूम गिरीश शर्मा की रणनीति का मकसद उजागर कर रहा है. दिन-ब-दिन गोविंदपुरा का चुनाव रोचक होता जा रहा है. इस सीट पर सबकी नजर है. क्या गिरीश शर्मा इस बार कोई नया इतिहास बना पाएंगे या फिर गौर की विरासत उनकी पुत्रवधू कृष्णा गौर आगे बढ़ाएंगी.

गोविंदपुरा सीट भले ही प्रदेश की सबसे चर्चित सीट रही है लेकिन, यहां विकास और रोज़गार हमेशा बड़ा मुद्दा रहा है. मूलभूत सुविधाएं भी क्षेत्रीय स्तर पर मुद्दा रही हैं. लिहाज़ा इस बार विकास की धीमी रफ्तार को कांग्रेस ने मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है. कभी ये सीट राजधानी भोपाल के चारों तरफ फैली थी लेकिन, 2008 में परिसीमन के बाद इसका इलाका सिमट गया. यहां की प्रमुख सड़कें चमचमाती हैं लेकिन, सेटेलाइट कॉलोनियों में जाकर टूटी-फूटी नजर आती है. बीते दस साल से यहां नर्मदा के पानी का इंतजार हो रहा है. कॉलोनियों की बेतरतीब बसाहट और सीवेज सिस्टम की कमी बड़ा मुद्दा बन रही हैं. अवधपुरी में करीब सौ पॉश कॉलोनियां हैं लेकिन, इनमें से करीब 70 कॉलोनियों में अभी भी पहुंच मार्ग नहीं हैं.

इस सीट की सबसे बड़ी खासियत और पहचान यहां मौजूद बिजली का भारी सामान बनाने का कारखाना है. जिसका नाम है भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड यानी बीएचईएल (भेल). भेल कारखाने के कर्मचारी-अधिकारी वोटर्स ही बाद में रिटायर होकर यहां आसपास की कॉलोनियों में रहने लगे. रिटायर्ड भेल कर्मियों के बाद की पीढ़ियों के मन में रो़जगार के मौके नहीं मिलने की टीस है. ये कारखाना देश की नवरत्न कंपनियों में शुमार किया जाता है. लेकिन, कर्मचारियों की लगातार घटती तादाद ने यहां के छोटे उद्योग और गोविंदपुरा इंडस्ट्रीयल एरिया की सांसें छीन लीं. ये सभी कारखाने भेल कारखाने पर ही निर्भर थे.

रोजगार की बात करें तो, भेल कारखाने ने रोजगार की संभावनाओं को जन्म दिया था. लेकिन, दुनिया की आला कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा की होड़ में इस कारखाने में भी कॉस्ट कटिंग हुई और 32 हजार कर्मचारी-अधिकारी की क्षमता वाले इस कारखाने को 6 हजार कर्मचारी-अफसर तक समेट दिया गया. गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में भी कभी एक हजार फैक्ट्रियां होती थी. अब केवल 300 फैक्ट्री हैं. कई तो चालू हालत में भी नहीं हैं. करीब सौ फैक्ट्रियां या तो गोडाउन में तब्दील हो गईं या फिर उनकी जमीन पर शोरुम खुल गए.

स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में गोविंदपुरा विधानसभा में भेल कर्मचारियों के लिए बना अस्पताल कस्तूरबा हॉस्पिटल है. केंद्र सरकार ने यहां एम्स भी खोल दिया. जो प्रदेश का इकलौता एम्स है. वहीं, बीमा अस्पताल में सिर्फ सरकारी कर्मचारियों का इलाज होता है. गैस राहत अस्पताल के हाल भी सालों से बेहाल ही हैं. वॉटर सप्लाई की हकीकत का पता लगाने के लिए इतनी ही जानकारी काफी है कि इलाके की 70 प्रतिशत आबादी पानी के लिए खुद के सोर्स यानी निजी बोर के भरोसे है. 

भेल कारखाने ने अपने कर्मचारियों के लिए भरपूर स्कूलों का इंतज़ाम किया था. इनमें से कुछ अब आबादी घटने की वजह से बंद होते जा रहे हैं. शिक्षा विभाग का यहां एक मात्र सरकारी कॉलेज है. जिसे जैसे-तैसे संचालित किया जा रहा है. सरकार को कई दफा यहां भवन के लिए भेल प्रबंधन का दरवाजा खटखटाकर गिड़गिड़ाना पड़ता है. ये कॉलेज कई सालों से बीएचईएल की बिल्डिंग में ही संचालित हो रहा है. अब बात बिजली की तो, बागमुगालिया झुग्गी, चांदमारी, शिवनगर, लेबर कॉलोनी, खेजड़ा जैसी कॉलोनियों में लोग आज भी सरेआम चोरी की बिजली जला रहे हैं. राजधानी से जुड़ा इलाका होने की वजह से यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इंतजाम है लेकिन, लोगों के लिए नाकाफी हैं. कटारा हिल्स, अवधपुरी में अब भी मिनी बस और सिटी बस को बढ़ाने की जरूरत है.

जातिगत समीकरण– क्षेत्र में जातिगत समीकरणों का कोई ज्यादा महत्व नहीं है. उसकी वजह है कि यहां देश के हर हिस्से का नागरिक वोटर है. भेल कारखाने की वजह से यहां हर धर्म, प्रदेश, जाति और समाज की मौजूदगी है. लेकिन, चुनावी लिहाज से जीत-हार का फैक्टर यहां रहने वाले भोजपुरी समाज को माना जाता है. बाबूलाल गौर खुद इसी समाज से आते हैं. भोजपुरी समाज की आबादी यहां पचास हजार के आसपास है. बाबूलाल गौर पहली बार 1974 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे थे और तीर-कमान चुनाव चिन्ह के साथ पहली बार में ही जीत हासिल की थी. इससे पहले गौर पुष्ठा मिल में कर्मचारी नेता थे.

वर्तमान में गोविंदपुरा विधानसभा में कुल 18 वार्ड हैं. इनमें से 16 वार्डों पर बीजेपी का कब्जा है. वर्तमान में गोविंदपुरा विधानसभा में तीन लाख 47 हजार 17 मतदाता हैं. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 85 हजार 516 है तो, महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 61 हजार 501 है.

बीते चुनाव के गणित 
1998 चुनाव 

बाबूलाल गौर- बीजेपी 71589
करनैल सिंह कांग्रेस 60706
जीत का अंतर 10883 
 
2003 चुनाव 
बाबूलाल गौर- बीजेपी 123513
शिवकुमार उरमलिया 59301
जीत का अंतर 64212 
 
2008 चुनाव 
बाबूलाल गौर- बीजेपी 62766
विभा पटेल कांगेस 29012
जीत का अंतर 33754 
 
2013 चुनाव 
बाबूलाल गौर - बीजेपी 116586
गोविंद गोयल कांगेस 45942
जीत का अंतर 70644

मौजूदा चुनाव 2018 
कुल 17 उम्मीदवार मैदान में
मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच
बीजेपी प्रत्याशी - कृष्णा गौर (पूर्व मेयर)
कांग्रेस प्रत्याशी - गिरीश शर्मा (कांग्रेस पार्षद)

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