यदि PM मोदी ने वाजपेयी-आडवाणी की कद्र नहीं की, तो कांग्रेस ने नरसिंह राव और केसरी के साथ क्‍या किया?
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यदि PM मोदी ने वाजपेयी-आडवाणी की कद्र नहीं की, तो कांग्रेस ने नरसिंह राव और केसरी के साथ क्‍या किया?

आर्थिक सुधारों की अगुआई करने वाले नेता नरसिंह राव को क्‍या कांग्रेस ने इसका क्रेडिट दिया?

राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह अपने राजनीतिक गुरुओं का सम्‍मान नहीं करते.(फाइल फोटो)

एम्‍स में भर्ती पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हाल-चाल जानने के लिए सबसे पहले पहुंचने वाले कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने उसके अगले 24 घंटे के भीतर मुंबई में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्‍ण आडवाणी का सम्‍मान नहीं करते. सिर्फ इतना ही उन्‍होंने ट्वीट करते हुए कहा, ''एकलव्‍य ने अपने गुरु की मांग पर तो अपना अंगूठा काटकर दे दिया. लेकिन बीजेपी में तो वे अपने ही गुरुओं का सम्‍मान नहीं करते. वाजपेयी जी, आडवाणी जी, जसवंत सिंह जी और उनके परिवारों का निरादर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय संस्‍कृति की रक्षा का तरीका है.'' यहीं से यह बात भी निकलकर आती है कि सोनिया और राहुल गांधी के दौर में कांग्रेस ने अपने बुजुर्ग नेताओं के साथ कैसा व्‍यवहार किया है?

  1. नरसिंह राव के दौर में ही आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई
  2. उनको भारत रत्‍न देने की मांग को भी कांग्रेस ने नजरअंदाज किया
  3. कहा जाता है कि राव के गांधी परिवार के साथ रिश्‍ते सहज नहीं रहे

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कांग्रेस नेता पीवी नरसिंह राव 1991-1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. उनके वित्‍त मंत्री मनमोहन सिंह थे. उसी दौर में अर्थव्‍यवस्‍था के लिहाज से आजादी के बाद सबसे क्रांतिकारी कदम के रूप में 1991 में देश ने आर्थिक उदारीकरण और वैश्‍वीकरण की नीतियों को अपनाया. आर्थिक सुधारों के संबंध में लिए गए इस फैसले के संबंध में आज एक पीढ़ी से भी ज्‍यादा वक्‍त बीतने के बाद यह कहा जा सकता है कि इससे देश का भाग्‍य बदल गया. लोगों की जिंदगियों में बदलाव आया. देश तरक्‍की की राह में आगे बढ़ा. लेकिन इतने बड़े सुधारों की अगुआई करने वाले नेता नरसिंह राव को क्‍या कांग्रेस ने इसका क्रेडिट दिया? उल्‍लेखनीय है कि नरसिंह राव प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा करने वाले कांग्रेस की तरफ से नेहरू-गांधी परिवार के इतर पहले राजनेता थे.

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माना जाता है कि पीवी नरसिंह राव के सोनिया गांधी के साथ संबंध मधुर नहीं रहे.(फाइल फोटो)

पीवी नरसिंह राव
भारतीय राजनीति के भीष्‍म पितामह कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी विचारधारा के आधार पर विरोधी नरसिंह राव को अपना राजनीतिक गुरु कहने से गुरेज नहीं करते थे लेकिन 1996 के आम चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में नरसिंह राव की जगह कहां रही?  प्रिंसटन यूनिवर्सिटी स्‍कॉलर और पत्रकार रहे विनय सत्‍पथी ने नरसिंह राव की जीवनी (Half-Lion: How P.V. Narasimha Rao Transformed India) लिखी है. उसमें उन्‍होंने सिलसिलेवार ढंग से बताया है कि राव के निधन के बाद उनका परिवार यह चाहता था कि उनका अंतिम संस्‍कार दिल्‍ली में हो और उनका मेमोरियल बनाया जाए. लेकिन कांग्रेस ने उन्‍हें ऐसा नहीं करने दिया. लिहाजा उनकी अंत्‍येष्टि हैदराबाद में हुई.

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भारत रत्‍न की मांग
आर्थिक सुधार जैसे क्रांतिकारी कदम उठाए जाने के कारण वर्षों से नरसिंह राव को भारत रत्‍न देने की मांग उठती रही है. इस संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल(2004-09) में उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने जब अटल बिहारी वाजपेयी को एनडीए सरकार ने 2015 में भारत रत्‍न देने की घोषणा की तो उन्‍होंने उस दौरान एक अखबार को दिए इंटरव्‍यू में कहा था कि उन्‍होंने भी वाजपेयी और राव को एक साथ भारत रत्‍न देने का प्रस्‍ताव मनमोहन सिंह के सामने रखा था. उन्‍होंने कहा कि वह इस पर सहमत भी थे लेकिन यह प्रस्‍ताव इससे कभी आगे नहीं बढ़ सका.

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सीताराम केसरी
मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार(2004-08) रहे संजय बारू ने 'The Accidental Prime Minister' किताब लिखी है. उन्‍होंने उसी इंटरव्‍यू में यह भी कहा, ''2004 से लेकर अगले चार साल तक जब भी भारत रत्‍न के मसले पर चर्चा होती तो मैं दोनों पूर्व प्रधानमंत्रियों का नाम सुझाव के रूप में देता था. प्रधानमंत्री सहमत भी होते थे लेकिन इससे आगे बात नहीं बढ़ती थी. मैं नहीं जानता कि उन्‍होंने सोनिया गांधी से इस पर चर्चा की या इस प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया गया.'' बारू ने यह भी संकेत दिए कि कांग्रेस में इन दोनों नामों को लेकर झिझक थी. इसी तरह जिन परिस्थितियों में सीताराम केसरी को 1998 में कांग्रेस अध्‍यक्ष के पद से हटाया गया और जिस तरह से सोनिया गांधी इस पद पर काबिज हुईं, वह भी कांग्रेस के किसी गौरवशाली इतिहास की याद नहीं दिलाता.

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