भरतपुर में कांग्रेस के लिए चुनौती बनी बसपा, 15 साल से बिगाड़ रही जीत का समीकरण
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भरतपुर में कांग्रेस के लिए चुनौती बनी बसपा, 15 साल से बिगाड़ रही जीत का समीकरण

भरतपुर में दोनों ही दलों के जीत के समीकरण को बसपा प्रभावित कर रही है. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि यह इलाका यूपी से सटा हुआ है

कांग्रेस के लिए यहां खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए पहले बसपा से निपटना होगा.

देवेन्द्र सिंह/भरतपुर: राजस्थान में चुनावी समर शुरू हो गया है कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल अपनी जीत के दावे कर रहे है. वहीं दोनों पार्टियां मतदाताओं को अपनी ओर रिझाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लेकिन राजस्थान का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले भरतपुर में दोनों ही दलों के जीत के समीकरण को बसपा प्रभावित कर रही है. इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि यह इलाका यूपी से सटा हुआ है, जिसका प्रभाव यहां के मतदाता पर स्पष्ट रूप से नजर आता है. क्योंकि 2003 से पहले ही वर्ष 1998 में भरतपुर जिले की 9 सीटों में से बसपा के पास 1 सीट थी.

भरतपुर सभांग की सभी सीटों पर एससी/एसटी का वर्ग बड़ा मतदाता है. दो सीट बयाना-रूपवास और वैर तो रिजर्व है अन्य सीटो पर भी चुनाव जीतने के लिए दोनों ही प्रमुख दलों को एससी वर्ग की जरूरत होती है. इसलिए पार्टी के साथ- साथ चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी पर भी यह निर्भर करता है कि वह इस वर्ग के मतदाताओ को रिझा पायेगा या नहीं? यही वजह कि एक-दो सीट को छोड़कर भरतपुर जिले में बसपा दूसरे नम्बर पर रहती है ऐसे में खतरा कांग्रेस के लिए ज्यादा है क्योंकि जिस दलित वोट को कांग्रेस अपना समझती है वही वोट बैंक पिछले 15 साल से उससे छिटक सा गया है. यही वजह है कि पिछले 15 साल से बसपा यहां कांग्रेस के जीत के समीकरण को बिगाड़ रही है. इस बात को खुद कांग्रेस के दिग्गज भी मानते है कि बसपा भरतपुर में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है.

आंकड़ो की बात करें तो भरतपुर जिले में वर्ष 2003 में कुल 9 सीटें थी जो परिसीमन के बाद 2008 में 7 ही रह गईं. वर्ष 2003 के नतीजों पर नजर डालें तो 9 सीटों में से भाजपा व कांग्रेस के पास 3-3 सीट ही थीं जबकि दो सीटों पर इंडियन नेशनल लोक दल के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. वहीं 1 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की. हालांकि वर्ष 2004 में डीग विधायक अरुण सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में डीग सीट से दिव्या सिंह और बाद में एक निर्दलीय विधायक भाजपा में ही शामिल हो गए. जिससे आंकड़ा 6 पर पहुंच गया था.

जबकि वर्ष 2003 में वैर, नगर और रूपवास सीट कांग्रेस के खाते में थी तो बीजेपी के पास बयाना ,कुम्हेर व कामां सीट थी.  वहीं डीग व भरतपुर सीट पर इनेलो के प्रत्याशी चुनाव जीते थे. जबकि नदबई सीट पर वर्तमान में पर्यटन राज्य मंत्री कृष्णेन्द्र कौर दीपा ने निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीता जो बाद में भरतपुर विधायक विजय बंसल के साथ भाजपा में शामिल हो गई. वर्ष 2003 में नदबई ,नगर, बयाना, भरतपुर, कुम्हेर सीट पर बसपा दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वर्ष 2008 और 2013 में भी भरतपुर, नदबई, वैर, बयाना नगर में बसपा दूसरी बड़ी पार्टी रही. जो यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस के लिए यहां खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए पहले बसपा से निपटना होगा.

बसपा का फैक्टर
भरतपुर में बसपा के फैक्टर का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 1998 में भरतपुर जिले की नदबई व नगर सीट से बसपा के विधायक चुने गए. इन सब सीटों पर बसपा का फैक्टर यह था कि वर्ष 2003 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद मंत्री बनने वाले दिवंगत नेता डॉ दिगम्बर सिंह बसपा के दलवीर सिंह से महज 800 वोट से ही चुनाव जीते थे. इस चुनाव में डॉ दिगमबर सिंह को 28 हजार 960 वोट मिले थे जबकि बसपा के दलवीर सिंह को 28 हजार 128 वोट मिले थे. 

जबकि कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे पशुपालन डेयरी राज्य मंत्री हरि सिंह यहां पर तीसरे नम्बर पर रहे. इसी तरह नगर सीट पर कांग्रेस के मरहूम विधायक माहिर आजाद तो वर्ष 1998 में बसपा के टिकट पर ही नगर सीट से चुनाव जीते जो बाद में 2003 में कांग्रेस में शामिल हो गए और दुबारा इसी सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. लेकिन इस बार भी बसपा के शादी खां यहां पर दूसरे नम्बर पर थे और भाजपा की अनीता सिंह तीसरे स्थान पर थी. इसी तरह नदबई में निर्दलीय कृष्णनेन्द्र कौर दीपा चुनाव जीती और बसपा दूसरे नम्बर पर और कांग्रेस के पूर्व विधायक यशवंत रामू तीसरे व भाजपा नेता डॉ जीतेन्द्र फौजदार चौथे नम्बर पर थे. अब देखना ये है कि क्या दोनों पार्टियां इस बार बसपा फैक्टर को मात देकर जीत का नया समीकरण बना पाएंगी. 

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