आरटीआई नियम : छह सियासी दलों के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई करेगा सीआईसी
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आरटीआई नियम : छह सियासी दलों के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई करेगा सीआईसी

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) की पूर्ण पीठ शुक्रवार को छह राजनीतिक दलों के खिलाफ उसके उस आदेश का पालन नहीं करने के मामले की सुनवाई करेगी जिसमें यह कहा गया था कि वे (राजनीतिक दल) आरटीआई के दायरे में आते हैं और इस कानून के तहत सभी जरूरी बातों का पालन करना अनिवार्य है।

नई दिल्ली : केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) की पूर्ण पीठ शुक्रवार को छह राजनीतिक दलों के खिलाफ उसके उस आदेश का पालन नहीं करने के मामले की सुनवाई करेगी जिसमें यह कहा गया था कि वे (राजनीतिक दल) आरटीआई के दायरे में आते हैं और इस कानून के तहत सभी जरूरी बातों का पालन करना अनिवार्य है।

आयोग ने पिछले वर्ष तीन जून को घोषित कांग्रेस, भाजपा, भाकपा, राकांपा, माकपा और बसपा को सार्वजनिक प्राधिकार घोषित किया था और उन्हें सूचना के अधिकार कानून के तहत जवाबदेह बताया था। आयोग ने इन्हें कानून के तहत सूचना मांगने से जुड़े आवेदन के संदर्भ में जरूरी बातों का पालन करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।

लेकिन किसी राजनीतिक दल ने इस अर्ध न्यायिक निकाय के निर्देशों का पालन नहीं किया था जो आरटीआई कानून के तहत तब तक बाध्यकारी है जब तक रिट याचिका के जरिये इसके प्रतिकिूल आदेश उच्च न्यायालय से नहीं आ जाता है। राजनीतिक दलों ने न तो हाईकोर्ट से सम्पर्क करके उस आदेश को चुनौती दी और न ही कानून में बदलाव के लिए संसद में कोई संशोधन पेश किया।

सीआईसी के आदेश का पालन नहीं किये जाने के बाद आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल, आर के जैन और स्वयंसेवी संस्थान एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म ने सीआईसी के समक्ष शिकायत दर्ज करायी थी। एडीआर ने अपने बयान में कहा, ‘सीआईसी के आदेश के 17 महीने से अधिक समय गुजरने के बाद भी छह राजनीतिक दलों में से किसी ने सीआईसी के आदेश का पालन नहीं किया। यह छह राजनीतिक दलों की ओर से विधिक प्राधिकार की अनदेखी का स्पष्ट मामला है और लोकतांत्रिक समाज के कामकाज के उपयुक्त नहीं है।’

इसमें आगे कहा गया है कि इस तरह से आदेश का पालन नहीं करना देश में लोकतांत्रिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है। इस मामले में विजय शर्मा, मंजुला पाराशर और शरत सभरवाल शिकायत की सुनवाई करेंगे। शिकायतकर्ताओं ने कहा है कि आदेश का पालन नहीं करने से लोगों के मन में यह बात आई है कि कानून का शासन केवल आम लोगों के लिए है।

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