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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान में विभिन्न स्तर के पंचायत चुनाव लड़ने के लिये प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने संबंधी राज्य सरकार के अध्यादेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने से आज इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि इसके लिये उच्च न्यायालय ही उचित मंच है।
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘जाइये राजस्थान उच्च न्यायालय में अध्यादेश को चुनौती दीजिये।’ न्यायाधीशों ने कहा कि यदि आवश्यक हो तो वे फिर शीर्ष अदालत आ सकते हैं। न्यायालय ने उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई होने तक नामांकन पत्र दाखिल करने की अवधि दो दिन बढाने से भी इंकार कर दिया। न्यायालय को सूचित किया गया कि पहले चरण में राज्य में पंचायत समिति के सरपंच और जिला परिषद के चुनावों के लिये नामांकन पत्र दाखिल करने की कल अंतिम तिथि है।
ये जनहित याचिकायें सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय और एक सरपंच ने दायर की हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन और आनंद ग्रोवर के इस कथन से न्यायाधीश सहमत नहीं हुये कि राजस्थान उच्च न्यायालय में अवकाश की वजह से ही शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गयी।
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अजमेर के हरमदा गांव की निरक्षर दलित महिला सरपंच नौरती बाई और अरूणा राय की जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुये कहा कि अवकाश के बाद अब उच्च न्यायालय खुल गया है और 24 दिसंबर, 2014 के अध्यादेश के खिलाफ वहां छह याचिकायें सुनवाई के लिये सूचीबद्ध हैं। न्यायालय ने कहा कि ये दोनों याचिकाकर्ता भी उच्च न्यायालय से संपर्क कर उससे इन पर यथाशीघ्र सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं।
शीर्ष अदालत से कहा गया कि चुनाव में शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता लोगों, विशेषकर महिलाओं के चुनाव लडने के अधिकार छीन लेगी क्योंकि कई क्षेत्रों में राज्य की 90 फीसदी महिलायें अशिक्षित हैं। अध्यादेश में सरपंच के लिये न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता आठवीं कक्षा रखी गयी है जबकि अनुसूचित इलाकों के लिये यह पांचवीं कक्षा है। इसी तरह जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव के लिये शैक्षणिक योग्यता दसवीं पास रखी गयी है।
याचिका में कहा गया है कि इस अध्यादेश की शर्त के मद्देनजर राजस्थान के ग्रामीण इलाकों के 80 प्रतिशत मतदाता चुनाव नहीं लड पायेंगे क्योंकि वह इन मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं और करीब 95 फीसदी महिला मतदाता भी अयोग्य हो जायेंगी । याचिका में यह भी दावा किया गया है कि अध्यादेश की वजह से वर्तमान ब्लाक सदस्यों में पांच हजार में से करीब 3800 अयोग्य हो जायेंगे। इसी तरह जिला परिषद के 1000 सदस्यों में से 550 अयोग्य हो जायेंगे।