SC ने विधायी और उच्च स्तरीय समितियों में ‘विपक्ष के नेता’ के बारे में केंद्र से मांगा जवाब
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SC ने विधायी और उच्च स्तरीय समितियों में ‘विपक्ष के नेता’ के बारे में केंद्र से मांगा जवाब

पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ की जनहित याचिका पर केन्द्र और चार वैधानिक संस्थाओं को नोटिस जारी किए.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा देने और सीबीआई, सीवीसी, सीआईसी और लोकपाल जैसी संस्थाओं के मुखिया का चयन करने वाली उच्च स्तरीय समितियों में उन्हें शामिल करने के लिये दायर याचिका पर सोमवार को केन्द्र से जवाब मांगा. 

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ की जनहित याचिका पर केन्द्र और चार वैधानिक संस्थाओं को नोटिस जारी किए. इन याचिकाओं में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि नियुक्ति समिति में जहां जहां प्रतिपक्ष के नेता को शामिल करने का उल्लेख है उसे सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता पढ़ा जाये.

इस संगठन ने भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 17-ए को निरस्त करने का अनुरोध किया है जिसके तहत भ्रष्टाचार के मामलों में सभी लोक सेवकों को जांच से संरक्षण प्राप्त है.

याचिकाकर्ता संगठन की ओर से अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण की दलीलें सुनने के बाद पीठ दो बिन्दुओं पर विचार के लिये तैयार हो गयी परंतु सीबीआई निदेशक, केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त, मुख्य सूचना आयुक्त और लोकपाल की नियुक्ति के मामले में नियुक्ति समिति द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय लेने के अनुरोध पर विचार से इंकार कर दिया. गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि सरकार का नियंत्रण होने की वजह से इसमें हस्तक्षेप की वजह से इन चारों वैधानिक संस्थाओं का कामकाज सीमित हो गया है. 

धारा 17-ए को चुनौती देते हुए कहा गया है कि इस तरह के संरक्षण को शीर्ष अदालत बार बार असंवैधानिक करार दे चुकी है. न्यायालय ने सबसे पहले विनीत नारायण प्रकरण में 1997 में इसे निरस्त किया था.  यह फैसला दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून में संशोधन और उच्च स्तरीय लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के बारे में था. 

याचिका में कहा गया है कि यह एक बार फिर दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून की धारा 6-ए के रूप में 12 सितंबर, 2003 से प्रभावी हआ और संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधान के आलोक में संविधान पीठ ने सर्वसम्मति के फैसले में 2014 में इसे निरस्त किया. याचिका में कहा गया है कि दुर्भाग्य से एक संशोधन के माध्यम से धारा 17-ए के रूप मे इसे फिर शामिल किया गया.

याचिका में कहा गया है कि मौजूदा लोकसभा में ऐसी स्थिति है जिसमें कांग्रेस सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में तो उभरी परंतु प्रतिपक्ष का नेता बनने के लिये आवश्यक लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या के दस फीसदी सदस्य या 55 सीटें उसके पास नहीं थीं.

सीबीआई निदेशक के नाम की सिफारिश करने वाली उच्च स्तरीय समिति में प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश और प्रतिपक्ष के नेता होते हैं. केन्द्रीय सूचना आयुक्त का चयन करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और प्रतिपक्ष के नेता शामिल हैं जबकि मुख्य सूचना आयुक्त के नाम की सिफारिश करने वाली समिति में प्रधान मंत्री, प्रतिपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केन्द्रीय मंत्री शामिल होते हैं.

लोकपाल की नियुक्ति के मामले में चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष के नेता, प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा मनोनीत शीर्ष अदालत का न्यायाधीश और प्रमुख विधिवेत्ता शामिल हैं.

 

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