भूमि विधेयक पर विपक्ष की बैठक में शामिल हुयी शिवसेना
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भूमि विधेयक पर विपक्ष की बैठक में शामिल हुयी शिवसेना

भूमि विधेयक के संशोधनों पर आपत्ति जता रही राजग घटक शिवसेना मंगलवार को विपक्ष की एक बैठक में शामिल हुयी जिसमें 2013 के कानून में प्रस्तावित बदलाव को नाकाम करने के लिए रणनीति पर विचार किया गया। भूमि विधेयक पर संसद की एक संयुक्त समिति विचार कर रही है।

नई दिल्ली : भूमि विधेयक के संशोधनों पर आपत्ति जता रही राजग घटक शिवसेना मंगलवार को विपक्ष की एक बैठक में शामिल हुयी जिसमें 2013 के कानून में प्रस्तावित बदलाव को नाकाम करने के लिए रणनीति पर विचार किया गया। भूमि विधेयक पर संसद की एक संयुक्त समिति विचार कर रही है।

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने संसदीय समिति को अपने संशोधन आज सौंप दिए और कानून में बदलावों को वापस लिए जाने की मांग की। इसके साथ ही कांग्रेस ने एकसमान मुआवजा दिए जाने की भी मांग की। माकपा अपनी सिफारिशें जल्दी ही सौंपेगी।

भाजपा सांसद एस एस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने पांच अगस्त तक अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए दो और दिनों का समय दिए जाने की मांग करने का कल फैसला किया था। कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी पार्टियां संयुक्त संशोधनों के साथ रिपोर्ट के लिए जोर दे रही हैं।

सूत्रों ने बताया कि बैठक आज राकांपा प्रमुख शरद पवार के निवास पर हुयी। इसमें शिवसेना की ओर से आनंदराव अडसुल, कांग्रेस के के वी थामस, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी, वाईएसआर कांग्रेस सांसद वी प्रसादराव वेलागापल्ली और माकपा के मोहम्मद सलीम भी शामिल हुए।

कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने निजी परियोजनाओं के लिए 80 प्रतिशत भूस्वामियों की सहमति तथा पीपीपी परियोजनाओं में 70 प्रतिशत सहमति के प्रावधान को बहाल करने की मांग की है।

मौजूदा विधेयक में पांच श्रेणियों में इस प्रावधान में छूट देने का प्रस्ताव किया गया है। इन श्रेणियों में रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, किफायती आवास, औद्योगिक गलियारे और आधारभूत परियोजनाएं शामिल हैं। इनमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाएं शामिल हैं जहां भूमि सरकार की है। वर्ष 2013 के कानून में सामाजिक असर आकलन कराए जाने का भी प्रावधान है ताकि प्रभावित परिवारों की पहचान की जा सके और भूमि अधिग्रहण किए जाने पर असर का आकलन किया जा सके। इस प्रावधान को हटा दिया गया है।

बीजद और तृणमूल कांग्रेस राजग के विधेयक को वापस लिए जाने की मांग करते हुए पहले ही संयुक्त संसदीय समिति को अपने संशोधन लिख चुके हैं। कांग्रेस की रणनीति किसी प्रकार समिति के सदस्यों का बहुमत हासिल करने की है ताकि संप्रग के भूमि काननू में सरकार द्वारा लाए जा रहे प्रमुख संशोधनों का विरोध किया जा सके।

पवार के निवास पर हुयी बैठक में कांग्रेस, तृणमूल और माकपा ने कहा कि वह राजग के भूमि विधेयक की ‘‘पूरी तरह से वापसी’’ के पक्ष में हैं। शिवसेना राजग विधेयक की पूर्ण वापसी की मांग नहीं कर रही है। लेकिन उसे उन संशोधनों को लेकर आपत्ति है जिनमें सहमति प्रावधान और सामाजिक असर आकलन प्रावधान को हटा दिया गया है।

सूत्रों ने कहा कि पवार के निवास पर आज हुयी बैठक का मकसद एक संयुक्त संशोधन तैयार करने की संभावना की तलाश करना था।

समिति द्वारा विधेयक के उपबंधों पर विचार किए जाने के बाद सरकार के 30 जुलाई को उसके सामने एक मसौदा विधेयक रखे जाने की संभावना है। इसके बाद सदस्य मसौदा पर विचार विमर्श करंेगे और अगर कोई असहमति हो तो वे पांच अगस्त तक अपनी असहमति टिप्पणी दाखिल कर सकेंगे। तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों को पूरी तरह से वापस लिए जाने के पक्ष में है वहीं बीजद लाभकारी उपक्रमों के लिए भूमि अधिग्रहण की स्थिति में भूस्वामियों को भी हिस्सेदार बनाए जाने के पक्ष में है।

सूत्रों ने कहा कि पार्टी चाहती है कि अगर जमीन का अधिग्रहण उद्योग तथा अन्य वाणिज्यिक उपक्रमों की स्थापना के लिए किया गया हो तो भूस्वामियांे को भी लाभ में हिस्सा दिया जाए। कांग्रेस ने विगत में समिति को लिखा था कि कानून के अनुसार शहरी इलाकों में मुआवजा बाजार मूल्य से चार गुना तथा ग्रामीण इलाकों में दो से चार गुना दिए जाने का प्रावधान है। इसे सभी क्षेत्रों में एकसमान बनाते हुए चार गुना किए किया जाना चाहिए। इस मांग को स्वीकार करने में सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

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