तो क्या इसलिए भगवान शंकर अपने शीश पर चंद्र को धारण किए हैं!
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तो क्या इसलिए भगवान शंकर अपने शीश पर चंद्र को धारण किए हैं!

भगवान शिव की प्रत्येक तस्वीर और मूर्ति में चंद्रमा इनके शीश पर सुशोभित होता है। कभी आपने सोचा है कि आखिर शिवजी का इनसे क्या संबंध है। भोलेनाथ ने अपने शीश पर चंद्र को धारण किया है इसी वजह से इन्हें शशिधर के नाम से भी जाना जाता है, चंद्र उनके योगी स्वरूप की शोभा बढ़ाता है।

तो क्या इसलिए भगवान शंकर अपने शीश पर चंद्र को धारण किए हैं!

नई दिल्ली:भगवान शिव की प्रत्येक तस्वीर और मूर्ति में चंद्रमा इनके शीश पर सुशोभित होता है। कभी आपने सोचा है कि आखिर शिवजी का इनसे क्या संबंध है। भोलेनाथ ने अपने शीश पर चंद्र को धारण किया है इसी वजह से इन्हें शशिधर के नाम से भी जाना जाता है, चंद्र उनके योगी स्वरूप की शोभा बढ़ाता है।

भगवान भोलेनाथ के चंद्र को शीश पर धारण करने के पीछे भी एक रोचक कथा बताई जाती है। श‌िव पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापत‌ि ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर दिया क्योंकि चंद्रमा अत्यंत सुंदर थे और ये कन्याएं उन्हें मन ही मन चाहने लगी थीं। 

यह कन्‍याएं 27 नक्षत्र हैं, ये कन्यायें अत्यंत सुंदर थीं किंतु उनमें रोहिणी का सौंदर्य अद्भुत था। इसीलिए चंद्रमा का समस्त अनुराग रोहिणी के प्रति ही रहता था। यह सब अन्य पत्नियों को अखरने लगा और उन्होंने अपनी यह व्यथा पिता को सुनाई।

दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्र देव को बहुत प्रकार से समझाया। किंतु उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने क्रोधित होकर चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे द‌िया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए और उनका शरीर प्रतिदिन क्षीण होने लगा। चंद्रदेव ने इससे छुटकारा पाने का बहुत प्रयत्न किया किंतु कोई भी लाभ नहीं हुआ।

उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता-वर्षण का उनका सारा कार्य रुक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। देवतागण चंद्र देव के उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। तब ब्रह्माजी ने चंद्रमा से कहा कि भगवान शिव की आराधना करने से ही उनका उद्धार होगा।

चंद्रमा ने भगवान श‌िव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने चंद्रमा को अमरत्व का वर प्रदान किया और उन्हें अपने श‌‌ीश पर स्‍थान द‌िया। मान्यता है क‌ि दक्ष के शाप और शिव जी के वरदान के कारण ही चंद्रमा घटता और बढ़ता रहता है।

वहीं एक और कथा भी इस संबध में कही जाती है जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब 14 रत्नों के मंथन से प्रकट हुए। इस मंथन में सबसे विष निकला।

विष इतना भयंकर था कि इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलता जा रहा था परंतु इसे रोक पाना किसी भी देवी-देवता या असुर के बस में नहीं था। इस समय सृष्टि को बचाने के उद्देश्य से शिव ने वह अति जहरीला विष पी लिया।

इसके बाद शिवजी का शरीर विष प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस वजह से उन्होंने चंद्र को धारण किया। शिवजी को अति क्रोधित स्वभाव का बताया गया है। कहते हैं कि जब शिवजी अति क्रोधित होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता हैं तो पूरी सृष्टि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।fallback

साथ ही विषपान के बाद शिवजी का शरीर और अधिक गर्म हो गया जिसे शीतल करने के लिए उन्होंने चंद्र आदि को धारण किया। चंद्र को धारण करके शिवजी यही संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए।

आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। जिस तरह चांद सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा स्वभाव बनाना चाहिए।

 

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