ऑटो चलाने को मजबूर है यह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, पिता के इलाज के लिए बेचना पड़ा अवॉर्ड
Advertisement

ऑटो चलाने को मजबूर है यह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, पिता के इलाज के लिए बेचना पड़ा अवॉर्ड

 42 वर्षीय सईद एजाज शाह को प्राचीन क्राफ्ट पेपर मशी बनाने और उनके हुनर के लिए साल 2008 में राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा था. 

सईद एजाज शाह को क्राफ्ट पेपर मशी बनाने के लिए साल 2008 में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था.

खालिद हुसैन, श्रीनगर: अपनी कला के दम पर राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले क्राफ्ट कारीगर ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अपने पिता के इलाज के लिए उन्हें अपना अवॉर्ड तक बेचना पड़ेगा. दरअसल, श्रीनगर के रहने वाले 42 वर्षीय सईद एजाज शाह को प्राचीन क्राफ्ट पेपर मशी बनाने और उनके हुनर के लिए साल 2008 में राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा था. लेकिन, बीमार पिता के इलाज के लिए पैसे न होने के कारण उन्हें अपना अवॉर्ड बेचना पड़ा. 

  1. 42 वर्षीय सईद एजाज क्राफ्ट पेपर मशी के कारीगर हैं
  2. क्राफ्ट पेपर मशी के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था
  3. बाजार में क्राफ्ट का सही दाम नहीं मिलने से परेशान हैं क्राफ्ट कारीगर

क्राफ्ट की प्रदर्शनी लगाने के लिए सरकार सईद को विदेश भी भेजती थी. लेकिन, आप को यह जान कर हैरानी होगी कि अब हालात ऐसे हैं कि सईद को अपने परिवार का पेट पालने के लिए ऑटो चलाना पड़ रहा है. इतना ही नहीं उनके पिता को कैंसर की बीमारी थी जिसके इलाज के लिए मजबूरन उन्हें अपना अवॉर्ड भी बेचना पड़ा. हालांकि, तब भी वह अपने पिता की जान नहीं बचा सके. 

यह भी पढ़ें: यूपी: छुट्टी के दिन बैंक में बजा इमरजेंसी सायरन, पुलिस पहुंची तो चोर नहीं चूहे चढ़े हत्थे

एजाज बताते हैं कि जिस क्राफ्ट पेपर मशी के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था उसकी कीमत लाखों में थी लेकिन जरूरत पड़ने पर उसे कौड़ियों के भाव बेचना पड़ा. जी मीडिया से बातचीत में एजाज ने कहा कि लोग समझते हैं कि मैं नेशनल अवॉर्ड विजेता हूं, लेकिन अपनी हालत मैं ही जानता हूं. उन्होंने कहा कि मेरे पिता को कैंसर था लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं उनका इलाज करवा पाता. मजबूरन मुझे अपना अवॉर्ड बेचना पड़ा.  

यह भी पढ़ें: मेरठ: छेड़छाड़ से परेशान होकर छात्रा ने किया था आत्मदाह, इलाज के दौरान हुई मौत

एजाज का कहना है कि कश्मीर के कई प्राचीन क्राफ्ट दम तोड़ रहे हैं. इनमें पेपर मशी भी शामिल है. पेपर मशी कभी कश्मीर की पहचान हुआ करती थी. उन्होंने कहा कि पेपर मशी के छोटे से बॉक्स को बनाने में करीब 10 दिन लग जाते हैं. लेकिन, अगर इसे बाजार में बेचने जाएं तो दिहाड़ी भी नहीं मिल पाती. 

एजाज का कहना है कि सरकार ने यहां के क्राफ्ट कारीगरों को अनदेखा कर दिया है. ऐसे कारीगरों को सरकार से मदद मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि देश की प्राचीन सभ्यता खोती जा रही है. सरकार ही नहीं समाज को भी क्राफ्ट कारीगरों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए. 

Trending news