ZEE जानकारीः दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा भी सरदार पटेल के व्यक्तित्व के सामने छोटी है
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ZEE जानकारीः दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा भी सरदार पटेल के व्यक्तित्व के सामने छोटी है

 सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आज़ादी के बाद भारत के सबसे पहले और सबसे पुराने घाव पर मरहम लगाने का काम किया था.

ZEE जानकारीः दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा भी सरदार पटेल के व्यक्तित्व के सामने छोटी है

31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती है और इस दिन ही दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा, यानी Statue Of Unity का उदघाटन होने वाला है. हम इस प्रतिमा के साथ साथ सरदार पटेल के संपूर्ण व्यक्तित्व को आपके सामने रख रहे हैं. आज का विश्लेषण देखने के बाद आपको ऐसा लगेगा कि दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा भी सरदार पटेल के व्यक्तित्व के सामने छोटी है.

आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताएंगे जिसे मान्यता प्राप्त इतिहासकारों ने पूरे भारत से छुपाकर रखने की भरपूर कोशिश की . आपको शायद अंदाज़ा नहीं होगा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आज़ादी के बाद भारत के सबसे पहले और सबसे पुराने घाव पर मरहम लगाने का काम किया था. ये घाव था... गुजरात के सोमनाथ मंदिर का विध्वंस. आज आप सोमनाथ मंदिर के जिस भव्य रूप को देखते हैं वो सरदार पटेल की इच्छाशक्ति का परिणाम है.

सोमनाथ मंदिर के निर्माण और विध्वंस की कहानी, भारत के निर्माण और विध्वंस की कहानी है . पहली बार सोमनाथ मंदिर को अफगानिस्तान के लुटेरे महमूद गज़नवी ने वर्ष 1024 में नष्ट किया था . इसके बाद अफगानिस्तान के एक और लुटेरे मुहम्मद गोरी ने कई बार सोमनाथ मंदिर को तोड़ा था . दिल्ली के खिलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने भी सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करवा दिया था. सोमनाथ मंदिर का निर्माण और विध्वंस बीते एक हज़ार वर्षों में लगातार चलता रहा. जब भी सोमनाथ मंदिर पर हिंदू धर्म के राजाओं का शासन हुआ, टूटे हुए सोमनाथ मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया गया.

आखिरी बार वर्ष 1947 से पहले सोमनाथ मंदिर की तस्वीर कुछ इस तरह थी. ये एक विशाल खंडहर की तरह नज़र आ रहा था . ऐसा दावा किया जाता है कि वर्ष 1528 में बाबर ने अयोध्या में राम जन्म भूमि पर एक मंदिर को तुड़वाकर वहां बाबरी मस्ज़िद का निर्माण करवाया था . लेकिन इस घटना से भी 500 वर्ष पहले गुजरात में सोमनाथ मंदिर को पहली बार तोड़ा गया था . ये भारत का एक बहुत पुराना घाव था. जिस पर मरहम लगाने का काम किया था... भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल ने . 

अगर सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के दोबारा निर्माण के काम को अपने हाथ में ना लिया होता तो हिंदू समुदाय, भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग की पूजा के अधिकार से भी वंचित रह जाते . अपने इसी योगदान की वजह से सरदार पटेल, हिंदुओं के हृदय में बस गए . ये घटना वर्ष 1947 से वर्ष 1951 के बीच की है . इसीलिए आज हमने सरदार वल्लभ भाई पटेल को आज़ाद भारत का पहला हिंदू हृदय सम्राट कहा है. 

9 नवंबर 1947 को भारत की सेना ने जूनागढ़ के प्रशासन को संभाल लिया था. इसके 4 दिन बाद सरदार पटेल ने जूनागढ़ का दौरा किया था. इसी बीच उन्होंने सोमनाथ का भी दौरा किया था. शायद आप ये सोच रहे होंगे कि नवाब के पाकिस्तान भागने और जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद सोमनाथ मंदिर के निर्माण में कोई रुकावट नहीं थी . लेकिन ऐसा नहीं था . वर्ष 1947 तक अंग्रेज़ों की कृपा से देश के प्रमुख संस्थानों पर अंग्रेज़ों द्वारा मान्यता प्राप्त बुद्धिजीवी कुर्सियों पर जम चुके थे . ये लोग अंग्रेज़ी में ही सोचते थे . और इनके दृष्टिकोण में भारत के लोगों की भावनाओं का कोई महत्व नहीं था .

ऐसे बहुत सारे विद्वानों ने सोमनाथ मंदिर के बारे में कहा कि भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है इसलिए सरकार को सोमनाथ मंदिर के दोबारा निर्माण से दूर रहना चाहिए . कई बुद्धिजीवियों ने ये सुझाव दिए कि सोमनाथ मंदिर के खंडहर को पुरातत्व विभाग को सौंप दिया जाए . 

लेकिन सरदार पटेल ने बुद्धिजीवियों के विचारों की परवाह नहीं की और साफतौर पर कहा कि " सोमनाथ मंदिर को लेकर हिंदुओं के दिल में भावनाएं बहुत गहरी हैं . वर्तमान परिस्थितियों में ये असंभव है कि हिंदुओं की भावना सिर्फ मंदिर के जीर्णोद्धार से ही संतुष्ट हो जाएगी . यहां मंदिर में मूर्ति की स्थापना के बाद ही हिंदुओं की भावनाओं को उचित सम्मान मिलेगा "

इस घटना पर महात्मा गांधी की नज़र बनी हुई थी . 13 दिसंबर 1947 को एक सरकारी टीम ने सोमनाथ का दौरा किया था . इसी दौरान महात्मा गांधी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल से कहा था कि सोमनाथ मंदिर के निर्माण में सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए . जिसके बाद सरदार पटेल के निर्देश पर मंदिर के निर्माण के लिए चंदा इकठ्ठा करने का अभियान चलाया गया. 

दिसंबर 1949 तक सोमनाथ मंदिर के लिए 25 लाख रुपए इकट्ठे हो गए थे . इससे पहले कि मंदिर का निर्माण पूरा हो पाता 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का निधन हो गया . लेकिन वो मंदिर के निर्माण की नींव रख गए थे. तब देश के लोग ये चाहते थे कि सरदार पटेल की ये अधूरी इच्छा जरूर पूरी हो . 

लेकिन मंदिर के उद्घाटन से ठीक पहले..... पंडित जवाहर लाल नेहरू से कुछ लोगों ने ये शिकायत की थी.... कि सोमनाथ मंदिर के निर्माण में गुजरात का सरकारी प्रशासन जिस तरह का सहयोग कर रहा है.... उससे देश के धर्मनिर्पेक्ष ढांचे को खतरा पैदा हो गया है . पंडित नेहरू ने कैबिनेट मीटिंग में भी ये मुद्दा उठाया था. 

देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सोमनाथ मंदिर के बारे में पहले ही कह चुके थे कि सोमनाथ मंदिर को भारतीय पुरात्त्व विभाग को सौंप दिया जाए . तत्कालीन सरकार के अंदर ये वैचारिक संघर्ष लगातार चल रहा था . लेकिन इसी संघर्ष के बीच 11 नवंबर 1951 को सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग को स्थापित कर दिया गया . तब भारत के पहले राष्ट्रपति Doctor राजेंद्र प्रसाद ने हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान किया था.सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग और मूर्तियों की स्थापना का काम Doctor राजेंद्र प्रसाद की मौजूदगी में हुआ था .  सोमनाथ का ये संघर्ष, सरदार पटेल के व्यक्तित्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. लेकिन इसे इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने कभी महत्व नहीं दिया.

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