'स्मॉग' के लिए सिर्फ पराली ही नहीं, बल्कि ये कारक भी हैं जिम्मेदार
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'स्मॉग' के लिए सिर्फ पराली ही नहीं, बल्कि ये कारक भी हैं जिम्मेदार

दिल्ली में हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि यहां सांस लेना जहर को अंदर लेने के बराबर है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: सर्दियों की दस्तक के साथ ही खासकर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की फिजा पर छाया जहरीला ‘स्मॉग‘ फिर सुर्खियों में है. इस नुकसानदेह धुंध के लिये कृषि अवशेषों यानी ‘पराली‘ जलाये जाने को दोष दिया जा रहा है, मगर विशेषज्ञों की राय इससे अलहदा है. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि देश के ज्यादातर शहरों की हवा इन दिनों सेहत के लिये बेहद खराब है. इतनी खराब, कि लम्बे समय तक सम्पर्क में रहने से यह जानलेवा भी हो सकती है. खासकर दिल्ली और एनसीआर में ‘स्मॉग‘ के लिये पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाये जाने को जिम्मेदार माना जा रहा है.

हालांकि भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णवीर चौधरी इससे इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने ‘भाषा‘ को बताया कि अगर सिर्फ पराली ही जिम्मेदारी होती तो पंजाब से लेकर दिल्ली तक जितने शहर पड़ते हैं, उनमें भी यह हालत होनी चाहिये थी. लेकिन अम्बाला, कुरुक्षेत्र, हिसार और सिरसा में ऐसे हालात बिल्कुल नहीं हैं. यह सम्भव नहीं है कि मोगा में पराली जलायी जा रही है और वहां से पूरा कार्बन सीधे दिल्ली और एनसीआर में आ जाता है. मैं मानता हूं कि ‘स्मॉग‘ के लिये पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है.

भारतीय राज्य फार्म निगम के अध्यक्ष रह चुके चौधरी ने कहा ‘‘समस्या की जड़ कहीं और ही है. पिछले कुछ दिनों से दिल्ली-एनसीआर में इतनी कारें चल रही हैं कि तमाम सड़कें जाम हैं. हालत बहुत खराब है, मगर उस पर कोई चर्चा नहीं करता. तीन दिन पहले आठ किलोमीटर तक गुड़गांव-दिल्ली के बीच तीन घंटे जाम लगा रहा. यह बहुत मायने रखता है. कितनी हजार गाड़ियां चल रही थीं, उनसे कितना धुआं निकल रहा था... और औद्योगिक प्रदूषण भी तो है.’’ 

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राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी. एम. सिंह भी चौधरी की राय से सहमति रखते हैं. उनका कहना है कि किसान सबसे कमजोर हैं, उन पर ठीकरा फोड़ना बहुत आसान है. सवाल यह है कि पराली तो सदियों पहले से जलायी जा रही है, तब यह दिक्कत क्यों नहीं आयी. उन्होंने कहा कि सड़कों पर जितने वाहन चल रहे हैं, जितना निर्माण कार्य हो रहा है, उनसे निकलने वाले प्रदूषण के बारे में कोई बात नहीं कर रहा. दशहरा से पहले पराली जलाने का काम काफी हद तक खत्म हो गया था. पराली को दोष देने वाले लोग बताएं कि दीवाली की रात कितनी पराली जलायी गयी. दो रातों में क्या सिर्फ पराली ही जली? हकीकत कुछ और ही है, हमें यह समझना होगा.

कृष्णवीर चौधरी ने कहा कि वह मानते हैं कि पराली जलाना अच्छी बात नहीं है. इसका पक्का उपाय भी मौजूद है लेकिन सरकार के पास उसे किसानों तक पहुंचाने का ठोस इंतजाम नहीं है. उन्होंने बताया कि कृषि मंत्रालय के राष्ट्रीय जैविक केन्द्र ने वेस्ट डी.कम्पोजर बनाया है. अगर 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ घोलकर उसमें वेस्ट डी.कम्पोजर मिलाकर खेत की सिंचाई कर दी जाए तो 15 दिन के अंदर पराली गलकर खाद बन जाएगी. वेस्ट डी.कम्पोजर मात्र 20 रुपये में मिलता है.

चौधरी ने बताया कि केन्द्र सरकार ने पराली को जमीन में दबाने के उपकरण खरीदने के लिये किसानों को 50 फीसदी सब्सिडी की व्यवस्था की है. अगर साधन सहकारी समितियों को प्रदेश सरकारें मदद कर दें तो इससे समस्या काफी हद तक हल हो सकती है, क्योंकि उन्हें उपकरण पर 80 फीसदी सब्सिडी मिलती है. किसान खरीद भले ना सके, मगर किराये पर तो ले ही सकता है.

इस बीच, सर्दियों में ‘स्मॉग‘ छाने के कारणों के बारे में आंचलिक मौसम केन्द्र के निदेशक जे. पी. गुप्ता ने बताया कि सर्दियों के मौसम में धुएं के कण नमी के कारण आपस में चिपक जाते हैं, जिससे वे वातावरण में ऊपर नहीं जा पाते हैं. इसी वजह से स्मॉग बन जाता है. साथ ही जाड़ों में हवा नहीं चलने से वे कण दूसरी जगह भी नहीं जा पाते. उन्होंने कहा कि यह सही है कि रोजाना भारी मात्रा में प्रदूषण पैदा होता है, मगर उसकी असली गम्भीरता सर्दियों के मौसम में ही पता लगती है.

(इनपुट-भाषा)

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