सिंधु जल समझौता पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इंकार किया, दायर अर्जी खारिज
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सिंधु जल समझौता पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इंकार किया, दायर अर्जी खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को अवैध एवं असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली एक जनहित याचिका यानी पीआईएल आज खारिज कर दी.

भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते को लेकर दाखिल की गई जनहित याचिका पर दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को अवैध एवं असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली एक जनहित याचिका यानी पीआईएल आज खारिज कर दी.

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की अर्जी

प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील मनोहर लाल शर्मा की निजी तौर पर दायर जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘यह संधि वर्ष 1960 में हुई थी और इसने करीब आधी सदी से अधिक समय से अच्छा प्रदर्शन किया है.’ पीठ में न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल भी शामिल थे. बहरहाल पीठ ने यह स्पष्ट किया कि जनहित याचिका खारिज करने का आदेश किसी का भी अहित नहीं करता है.

अर्जी दायर कर समझौता खारिज करने की मांग की गई थी

न्यायालय ने स्पष्टीकरण उस समय दिया जब शर्मा ने कहा कि यदि सरकार भारत पाक जल समझौते की समीक्षा करना चाहे तो जनहित याचिका खारिज करने का आदेश उसके मार्ग में किसी प्रकार से बाधक नहीं बनना चाहिए. संक्षिप्त सुनवाई के दौरान इसमें यह दलील दी गयी कि सिंधु जल समझौता कोई संधि नहीं है क्योंकि इस पर भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर नहीं है. वकील ने कहा, ‘यह तीन नेताओं के बीच त्रिपक्षीय समझौता था और यह शुरू से वैध नहीं (शुरुआत से अवैध) रहा है और इसलिए इस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है.’ न्यायालय ने कहा कि उसने समूची अर्जी पर विचार किया और इससे वह सहमत नहीं है.

1960 को सिंधु जल समझौता पर हस्ताक्षर हुआ था

भारत, पाकिस्तान और पुननिर्माण एवं विकास के लिये अंतरराष्ट्रीय बैंक या विश्व बैंक के बीच 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल समझौता पर हस्ताक्षर हुआ था. इस पर हस्ताक्षर करने वालों में नेहरू के अलावा पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान और विश्व बैंक के डब्ल्यू ए बी इलिफ शामिल थे. शीर्ष अदालत ने पिछले साल इस याचिका पर शीघ्र सुनवाई करने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि मामले में इसकी आवश्यकता नहीं है जबकि न्यायालय ने व्यक्तिगत रूप से जनहित याचिका दायर करने वाले शर्मा को इस मुद्दे को ‘‘राजनीति से दूर रखने’’ के लिये कहा था. शर्मा ने अपनी जनहित याचिका में संविधान के अनुच्छेद 77 का हवाला देते हुए कहा था कि इसमें  सरकार की सभी शासकीय कार्रवाई को राष्ट्रपति के नाम से लिया जाना जरूरी बताया गया है.

दो नेताओं के बीच हुआ था समझौता

याचिका में यह कहा गया था कि बहरहाल, सिंधु जल समझौता मामले में वर्ष 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हस्ताक्षर किया था और ‘इसमें कहीं नहीं कहा गया है कि उपरोक्त समझौता..संधि भारत के राष्ट्रपति के नाम पर हस्ताक्षर किया जा रहा है.’ इसमें कहा गया, ‘विदेश मंत्रालय के दस्तावेजों के अनुसार इसमें कहीं नहीं कहा गया है कि जवाहर लाल नेहरू ने इस समझौते पर भारत के राष्ट्रपति की ओर से हस्ताक्षर किया हैं...’ शर्मा ने कहा, ‘समझौता के अनुसार 80 प्रतिशत जल पाकिस्तान को जाता है जो भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ साथ राष्ट्रीय हित के लिये आर्थिक एवं स्वाभाविक आघात है.’ यह संधि ‘राष्ट्रीय हित के खिलाफ और भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है, जो उनके जीवन एवं आजीविका पर असर डालता है.’

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