'अगर 'बैंडिट क्वीन' को कोर्ट से हरी झंडी मिल सकती है तो 'पद्मावत' को क्यों नहीं' : सुप्रीम कोर्ट
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'अगर 'बैंडिट क्वीन' को कोर्ट से हरी झंडी मिल सकती है तो 'पद्मावत' को क्यों नहीं' : सुप्रीम कोर्ट

गुरुवार को इस फिल्म की रिलीजिंग पर सुनवाई के दौरान फ़िल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की ओर से हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी पेश हुए है, राज्य सरकारों की ओर से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए है.

सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म पद्मावत की रिलीजिंग को हरी झंडी दे दी है

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने संजय लीला भंसाली की विवादित फिल्म 'पद्मावत' की रिलीजिंग को हरी झंडी दे दी है. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि फिल्म दिखाए जाने के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्यों की है. गुरुवार को इस फिल्म की रिलीजिंग पर सुनवाई के दौरान फ़िल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की ओर से हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी पेश हुए है, राज्य सरकारों की ओर से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए है.

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हरीश साल्वे ने की पैरवी
फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व अटार्नी जनरल मुकूल रोहतगी ने पैरवी की, जबकि फ़िल्म को बैन करने वाले राज्यों की ओर ASG तुषार मेहता ने कानून व्यवस्था की दुहाई देते हुए बैन की मांग की. हरीश साल्वे ने दलील दी कि सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म को पूरे देश में रिलीज के लिए सर्टिफिकेट दिया है कोई राज्य इसपर बैन कैसे लगा सकता है.

बैंडिट क्वीन का उल्लेख
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से चिंतित है कि फिल्म को एक्सक्यूटिव के द्वारा बैन कैसे लगाया गया जबकि सेंसर बोर्ड ने फिल्म की रिलीज का सर्टीफिकेट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी देते हुए कहा कि अगर 'बैंडिट' क्वीन जैसी फिल्म को सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल सकती है तो 'पद्मापत' को क्यों नहीं.

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संघीय ढांचे का उल्लंघन
सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट दिखाते हुए साल्वे ने दलील दी कि सेंसर बोर्ड सेन्ट्रल एक्ट (सिनेमटोग्राफ एक्ट-1952) के तहत फिल्मों को सर्टिफिकेट देती है कोई राज्य उसे मानने से इनकार कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो ये संघीय ढांचे का उल्लंघन होगा. साल्वे ने संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (A) में दिए गए विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए कहा कि फ़िल्म पर बैन लगाना संविधान का उल्लंघन है. राज्यों की ओर से बैन की मांग करने वाले तुषार मेहता ने दलील दी कि क़ानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेवारी है और राज्य को ये देखना है कि कानून व्यवस्था को कोई दिक्कत न हो और इस फ़िल्म के रिलीज से कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है.

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तुषार मेहता ने सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट पर दलील देते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड फ़िल्म को सर्टिफिकेट देते समय इस बात पर ध्यान नहीं देता कि फ़िल्म के रिलीज से क़ानून व्यवस्था को कोई समस्या हो सकती है. तुषार मेहता ने कहा कि इस फ़िल्म में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ किया गया है.

गांधी जी को व्हिस्की पीते नहीं दिखा सकते
इस पर हरीश साल्वे ने फ़िल्म में दिखाए जाने वाले डिसक्लेमर को कोर्ट के सामने पढ़कर सुनाया जिसमें कहा गया है कि 'यह एक काल्पनिक कहानी पर आधारित है.' इतिहास से इसका कोई लेना देना नहीं. साल्वे ने तो कोर्ट में यहां तक कहा, 'एक दिन मैं चाहूंगा कि मैं इस बात पर दलील दूं कि कलाकारों को इतिहास से छेड़छाड़ का अधिकार भी होना चाहिए.' इस पर तुषार मेहता ने कहा कि 'ऐसा नहीं हो सकता. आप महात्मा गांधी को व्हिस्की पीते हुए नहीं दिखा सकते.' इस पर साल्वे ने कहा, 'लेकिन ये इतिहास से छेड़छाड़ नहीं होगी.' इस पर कोर्ट में मौजूद सभी लोग हंस पढ़ें.

गुजरात, राजस्थान और हरियाणा की ओर से पेश वकील ने सुनवाई अगले हफ्ते तक टालने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने अनसुना कर दिया. 

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