NRC की पहली लिस्ट में नाम नहीं होने पर असम में तनाव, बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती
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NRC की पहली लिस्ट में नाम नहीं होने पर असम में तनाव, बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती

पहली लिस्ट में राज्य के 1.9 करोड़ लोगों को वैध नागरिक के रूप में मान्यता दी गई है, लेकिन विवाद इस बात को लेकर है कि बाकी बचे 1.39 करोड़ का नाम इस लिस्ट में नहीं आया. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्लीः असम सरकार ने आधी रात को नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन (NRC) का पहला ड्राफ्ट जारी किया है, जिससे राज्य में रहने वाले कानूनी और गैरकानूनी नागरिकों की पहचान हाेगी. असम सरकार द्वारा जारी की गई पहली लिस्ट में राज्य के 1.9 करोड़ लोगों को वैध नागरिक के रूप में मान्यता दी गई है, लेकिन विवाद इस बात को लेकर है कि बाकी बचे 1.39 करोड़ का नाम इस लिस्ट में नहीं आया. जिसे लेकर राज्य में तनाव का माहौल है. सोशल मीडिया पर तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही हैं. हालांकि सरकार ने कहा कि यह पहली लिस्ट है और दूसरी लिस्ट भी जल्द जारी की जाएगी. 

  1. NRC की पहली सूची में 1.9 करोड़ लोगों को वैध नागरिक के रूप में मान्यता 
  2. बाकी बचे 1.39 करोड़ का नाम इस लिस्ट में नहीं आया, इसे लेकर विवाद
  3. असम में तनाव को देखते हुए सोशल मीडिया पर नजर, अर्धसैनिक बल तैनात

किसी तरह के माहौल से निबटने के लिए केंद्र सरकार इस सिलसिले में असम सरकार से लगातार संपर्क में है. सुरक्षाबलों को किसी भी समय असम भेजने के लिए तैयार रहने को कहा गया है.  सरकार ने किसी भी तरह की अफवाह को फैलाने से रोकने के लिए सोशल मीडिया पर लगातार मॉनिटरिंग करने के निर्देश जारी किए हैं. खबरों की मानें तो अफवाह फैलाने कॉन्टेंट को ब्लॉक किया जा रहा है. मीडिया सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय ने असम में पहले से ही लगभग 45 हजार सेना और अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया है. केंद्र और राज्य सरकार ने पहले ही आशंका जताई थी कि इस लिस्ट के जारी होने के बाद राज्य कानून व्यवस्था की स्थित खराब हो सकती है. 

रजिस्टर आॅफ सिटिजन (NRC) की क्यों पड़ी जरूरत
पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. असम के मूल नागरिकों का कहना है कि बांग्लादेश से अवैध रूप से आकर यहां रह रहे ये लोग उनका हक मार रहे हैं. साल 80 के दशक में इसे लेकर एक बड़ा छात्र आंदोलन हुआ, जिसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ जिसके तहत 1971 तक जो भी बांग्लोदशी असम में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा. इसके बाद असम गण परिषद ने वहां सरकार भी बनाई. हालांकि यह समझौता आगे नहीं बढ़ सका.

यह भी पढ़ेंः असम में NRC का पहला मसौदा जारी, बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने की ओर कदम

जब साल 2005 में इसी मुद्दे पर एक बार फिर आंदोलन हुआ तब कांग्रेस की असम सरकार ने इस पर काम शुरू किया, लेकिन काम में सुस्ती रहने के बाद यह मामला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. बीजेपी ने असम में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया. जब असम में पहली बार पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार आई, तो इस मांग ने और जोर पकड़ा. हालांकि असल कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दबाव में हुई. इस बीच मोदी सरकार के विवादित नागरिकता संशोधान बिल से भी इस मामले में नया मोड़ आ गया, जो अवैध रूप से घुसने वालों के लिए बेस साल 1971 से बढ़ाकर 2014 कर रहा है. 

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