'तीन तलाक' पर कानून लाने के लिए केंद्रीय मंत्रियों का मंथन, नहीं निकला कोई नतीजा
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'तीन तलाक' पर कानून लाने के लिए केंद्रीय मंत्रियों का मंथन, नहीं निकला कोई नतीजा

कानून के अनुसार ‘तलाक ए बिद्दत’ या तीन तलाक की पीड़िता के पास पुलिस के पास जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा.

22 अगस्त को SC ने अपने फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक बताया था. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रियों के एक समूह ने तीन तलाक के मुद्दे पर कानून लाने के संबंध में गुरुवार (23 नवंबर) को विचार-विमर्श किया. केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने की योजना बना रही है जो 15 दिसंबर से शुरू हो सकता है. एक सरकारी अधिकारी के अनुसार गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में प्रस्तावित विधेयक से संबंधित अनेक मुद्दों पर चर्चा की गयी जिसमें तीन बार तलाक कहकर वैवाहिक संबंध समाप्त करने के तरीके को दंडनीय प्रावधान बनाया जा सकता है.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल आदि ने बैठक में भाग लिया. अधिकारी ने कहा कि गुरुवार (23 नवंबर) की बैठक में कोई फैसला नहीं किया गया और आगे की बातचीत आने वाले दिनों में होगी.

सरकारी अधिकारी ने कहा कि मंत्रियों ने इस बारे में भी चर्चा की कि नया कानून लाया जाना चाहिए या मौजूदा दंडनीय प्रावधानों में उचित बदलाव किये जाने चाहिए ताकि तीन तलाक को अपराध बनाया जा सके. कानून के अनुसार ‘तलाक ए बिद्दत’ या तीन तलाक की पीड़िता के पास पुलिस के पास जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा. कोई मुस्लिम मौलवी उसकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे.

इसी साल 22 अगस्त को उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था. माना जा रहा है कि इस फैसले के बावजूद जमीनी स्तर पर एक बार में तीन तलाक कहने की प्रथा जारी है. 'भारतीय मुस्लिम महिला संगठन' और दूसरे महिला अधिकार समूह यह फैसला आने के बाद से कानून बनाए जाने की मांग करते रहे हैं. विधेयक तैयार करने के लिए मंत्रीस्तरीय समिति का गठन किया गया है और इस संबंध में संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने की तैयारी है.

तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम समाज में लंबे समय से चली आ रही एक प्रथा है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को एक बार में तीन बार तलाक बोलकर रिश्ता खत्म कर सकता है. सायरा बानो नामक एक महिला ने इस प्रथा को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी और इसी पर शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त को फैसला सुनाया था.

मुस्लिम महिला अधिकार समूहों का कहना रहा है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भी तलाक-ए-बिद्दत की पीड़ित महिलाओं को व्यावहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. तलाक होने के बाद महिलाओं के पास एकमात्र रास्ता पुलिस से संपर्क करने का है और कोई स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं होने पर उन्हें न्याय मिलना मुश्किल है. 

सरकारी सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी 'तलाक-ए-बिद्दत' के जरिए तलाक दिए जाने के कई मामले सामने आए हैं. जागरूकता के अभाव एवं दंड की व्यवस्था की कमी के चलते ऐसा हो सकता है. न्यायालय के फैसले के तत्काल बाद सरकार ने कहा था कि तीन तलाक पर कानून की जरूरत शायद नहीं पड़े क्योंकि न्यायालय का फैसला इस देश के कानून की शक्ल ले चुका है.

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