चमोलीः विदेशों में बिक रही पहाड़ों की तुलसी चाय, किसानों की हो रही है लाखों में कमाई
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चमोलीः विदेशों में बिक रही पहाड़ों की तुलसी चाय, किसानों की हो रही है लाखों में कमाई

हार्क ने स्थानीय लोगो से राय मशविरा कर तुलसी उत्पादन पर जोर देना शुरु कर दिया. तुलसी का उत्पादन शुरु करने के बाद उसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में भेजा जा रहा है और केवल तुलसी चाय ही लाखों की बिक रही है.

अलकनंदा स्वायत्त सहकारिता समिति में करीब 400 महिला सदस्य है जो शेयरधारक भी हैं

(संदीप गुसाईं)/चमोलीः उत्तराखंड में किसानों की आय दोगुनी करने का दावा भले ही बीजेपी सरकार कर रही हो, लेकिन पहाड़ों में सालों से कृषि भूमि बंजर हो रही है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति भले ही पहाड़ों पर अच्छी नही हो, लेकिन एक इलाका ऐसा भी जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था एक नई कहानी बयां करती है. चमोली जिले की महिलाओं ने राज्य सरकार की मदद का इंतजार नहीं किया बल्कि हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर के सहयोग से कुछ ऐसा किया कि ना सिर्फ महिलाएं अपनी आजीविका बढा रही हैं बल्कि लोगों को भी उम्मीद की एक किरण दिखा रही हैं. चमोली गढवाल के कर्णप्रयाग के पास अलकनंदा घाटी की महिलाओं ने स्वरोजगार की नई मिसाल पेश की है. इन गांवों के लिए हार्क (हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर) 2006 में वरदान बनकर आया है. हार्क ने अलकनंदा घाटी के दर्जन भर गांव की महिलाओं को ट्रैनिंग देनी शुरु की.महिलाओं को सब्जी,फल और मसाले उत्पादन की ट्रेनिंग दी. धीरे धीरे महिलाओं ने अपने समूह तैयार किए, लेकिन बंदर और सूअर खेतों में फसलों और क्रैश क्राप को तहस नहस कर देते थे. ऐसे में हार्क ने स्थानीय लोगो से राय मशविरा कर तुलसी उत्पादन पर जोर देना शुरु कर दिया. तुलसी का उत्पादन शुरु करने के बाद उसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में भेजा जा रहा है और केवल तुलसी चाय ही लाखों की बिक रही है.

  1. तुलसी टी ही नहीं माल्टा, बुरांश, आंवले का जैम भी बनाया जाता है
  2. महिलाओं की को-आपरेटिव सोसाईटी से काफी फायदा हुआ है
  3. गर्मियों के समय तो बुरांश और माल्टा का जूस काफी बिकता है

हार्क संस्था के संस्थापक ने कहा कि उन्होनें महिलाओं तकनीकी सहयोग दिया और भारत सरकार की मदद से कई मशीनें भी महिलाओं के समूह को उपलब्ध कराया गया. पर्वतीय इलाकों में कई महिला स्वयं सहायता समूह कार्य करते हैं, लेकिन काफी मेहनत करने के बाद भी महिलाओं के उत्पाद को बाजार उपलब्ध नही हो पाता. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण स्वयं सहायता समूह का अलग अलग होना है. अप्रैल 2009 को हार्क के सहयोग से महिलाओं के कई समूहो को को-ओपरेटिव सोसाईटी में बदल दिया गया. कर्णप्रयाग के पास कालेश्वर गांव में सोसाईटी का प्लांट तैयार किया गया.
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हार्क की मदद से फूड प्रोसेसिंग की कई मशीने लाई गई और फिर 80 महिलाओं ने माल्टा, बुरांश, बेल, आवंला, जैम, चटनी सहित कई स्थानीय उत्पाद तैयार करने शुरू कर दिया. ए.कालेश्वर गांव से शुरु हुआ महिलाओं का एक छोटा समूह अब पूरे चमोली गढवाल में फैल चुका है और इसमें दो हजार से अधिक महिलाएं जुड़ गई हैं. अलकनंदा बहुद्देश्यीय स्वायत्त सहकारिता की कोषाध्यक्ष ऊषा सिमल्टी कहती हैं 'महिलाओं की को-आपरेटिव सोसाईटी से काफी फायदा हुआ है और बडी संख्या में महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ रही हैं. ऊषा सिमल्टी कहती है कि आस पास के इलाकों में तुलसी की खेती की जा रही है.जानकी देवी कहती है कि पहले केवल खेती बाड़ी करती थी, लेकिन अब उन्हें भी महीने में पांच से आठ हजार वे अपने गांव में ही कमा लेती हैं.'

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तुलसी को जंगली जानवर भी नही पहुंचाते कोई नुकसान
अलकनंदा घाटी में तुलसी उत्पादन तेजी से फैल रहा है.इसके पीछे सबसे बडा कारण ये है कि जानवर इसे कोई नुकसान नही पहुचाते साथ ही तुलसी उत्पादन के लिए बहुत पाना की जरुरत नहीं और यह साल में 2 से 3 बार फसल दे देती है. तुलसी टी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है. फिलहाल महिलाओं ने तुलसी की तीन ब्रांड बाजार में उतारे हैं. अलकनंदा सहकारिता समिति की तुलसी चाय की महक स्वीडन तक पहुंची है और अब फ्रांस से भी आर्डर आ चुका है. इसके अलावा दिल्ली, चंडीगढ, मुम्बई और देहरादून शहरों से भी लगातार डिमांड आ रही है समिति इसे अब बदलते बाजार को देखते हुए ऑनलाईन बेचने की तैयारी कर रही है. तुलसी चाय ही नहीं बल्कि अन्य स्थानीय उत्पाद भी धूम मचा रहे हैं. शुरुआत में मात्र 80 महिलाओं का समूह अब 210 तक पहुच चुका है और अब इसे 1500 महिलाओं तक पहुचाने का लक्ष्य रखा गया है.

15 नए फ्लेवर में तैयार की जाएगी तुलसी टी
वर्तमान में तुलसी चाय केवल तीन फ्लेवर में तैयार की जा रही है जिसमें तुलसी जिंजर टी, तुलसी ग्रीन टी और तुलसी तेजपत्ता चाय प्रमुख है. चमोली गढवाल के 5 ब्लाक जोशीमठ, पोखरी, घाट, कर्णप्रयाग और गैरसैंण में तुलसी की खेती की जा रही है. वर्तमान में केवल 400 काश्तकार ही 1 नाली में तुलसी की खेती कर रहे हैं. लगातार बढ रही डिमांड के बाद अब इसका उत्पादन और बढ़ाने की तैयारी की जा रही है. समिति की कोषाध्यक्ष ऊषा सिमल्टी ने कहा कि तुलसी चाय के अभी केवल 3 फ्लेवर बाजार में उपलब्ध हैं जिसे बढाकर 15 फ्लेवर तक किया जाएगा साथ ही तुलसी कैप्सूल और तुलसी डीप टी भी तैयार की जाएगी.

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अलकनंदा सहकारिता समिति में हर महिला शेयर धारक
अलकनंदा स्वायत्त सहकारिता समिति में करीब 400 महिला सदस्य है जो शेयरधारक भी है. हर पांच साल में इसका चुनाव कराए जाते है. पिछले वित्तीय वर्ष में समिति का सालाना टर्नओवर करीब पौने दो करोड रहा. समिति जो मुनाफा कमाती है वो सभी महिलाओं में बांटा जाता है जो इसकी शेयरधारक है. केवल तुलसी टी ही नही बल्कि माल्टा, बुरांश और आवला का स्कैश, जैम, अचार यहां तैयार किए जाते हैं. गर्मियों के समय तो बुरांश और माल्टा का जूस काफी बिकता है. पूरे उत्तराखंड में इसके आऊटलेट है. पिछले वर्ष केवल दीवाली में ही समिति के गिफ्ट पैक 20 लाख में बिके. समिति में कई नई मशीनें भी आई हैं जिससे अन्य उत्पाद तैयार किए जाते है.

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