योगी के सरकारी आवास के गेट पर बने ‘स्वास्तिक’ और ‘ओम’
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योगी के सरकारी आवास के गेट पर बने ‘स्वास्तिक’ और ‘ओम’

पांच कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के गेट पर हल्दी से ‘स्वास्तिक’ और ‘ओम’ बनाया गया है. इसमें अब आदित्यनाथ योगी रहेंगे. नाम की प्लेट लग गयी है, मुख्य द्वार के दाहिनी ओर मुख्यमंत्री आवास लिखा है तो बांयी ओर आदित्यनाथ योगी, मुख्यमंत्री लिखा है. इसी आवास में सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पांच साल रहे.

वेद मंत्रोच्चार से हुआ वातावरण का शुद्धिकरण.                       फोटो-एएनआई

लखनऊ : पांच कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के गेट पर हल्दी से ‘स्वास्तिक’ और ‘ओम’ बनाया गया है. इसमें अब आदित्यनाथ योगी रहेंगे. नाम की प्लेट लग गयी है, मुख्य द्वार के दाहिनी ओर मुख्यमंत्री आवास लिखा है तो बांयी ओर आदित्यनाथ योगी, मुख्यमंत्री लिखा है. इसी आवास में सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पांच साल रहे.

सूरज की पहली किरण के साथ ही आज मुख्यमंत्री आवास पर भगवा पहने साधू सन्यासी और पुजारी नजर आये. पूजन के अलावा वास्तु की दृष्टि से भी सब अनुकूल करने की प्रक्रिया की गयी.

पांच बार गोरखपुर से सांसद योगी वीवीआईपी गेस्ट हाउस में रूके हुए हैं. शपथ लेने के बाद भी वह गेस्ट हाउस ही आये. बिना पूजा अर्चना के नये बंगले में जाना ठीक नहीं है इसलिए पूजा की तैयारियां जोरों पर शुरू हो गयीं. गोरखपुर और इलाहाबाद के पांच पुरोहित आये. योगी की गैर मौजूदगी में ही उन्होंने पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी. योगी शुभ मुहूर्त में ही आवास में प्रवेश करेंगे.

एक पुरोहित ने कहा, ‘गृह प्रवेश से पहले लक्ष्मी गणेश का पूजन किया जाता है. इसमें कोई विशेष बात नहीं है.’

वेद मंत्रोच्चार से हुआ वातावरण का शुद्धिकरण

लोहे के गेट पर सफेद पेंट है. फूलों से सजाया गया है. भीतर हरी घास का लॉन है और किस्म-किस्म के रंग बिरंगे पौधे भी हैं. कोने कोने को सजाया संवारा जा रहा है. बंगले के भीतर यज्ञ हवन का प्रबंध किया गया है. वेद मंत्रोच्चार के साथ वातावरण का शुद्धिकरण भी किया गया. 

गोरखनाथ मंदिर नाथ परंपरा का है. गोरखनाथ 11वीं सदी के महान संत और योगी थे. उन्होंने भारत भ्रमण किया. गोरखनाथ परंपरा में जातिवाद नहीं चलता जैसा अन्य हिन्दू परंपराओं में है इसलिए गैर ब्राह्मण भी महंत बन सकते हैं. मंदिर के मुख्य पुरोहित आदित्यनाथ राजपूत हैं.

महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद उन्होंने 2014 में गद्दी संभाली. मंदिर परिसर में बडे पैमाने पर सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं.

 

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