यूपी उपचुनाव 2018: चुनावी दंगल में किसकी होगी जीत, खिलेगा कमल या जनता को लुभाएगा सपा-बसपा का 'तालमेल'
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यूपी उपचुनाव 2018: चुनावी दंगल में किसकी होगी जीत, खिलेगा कमल या जनता को लुभाएगा सपा-बसपा का 'तालमेल'

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बसपा के रूख को सपा भविष्य के संभावित गठबंधन के रूप में देख रही है, हालांकि बीजेपी का मानना है कि यह मजबूरी में उठाया हुआ कदम है.

गोरखपुर-फूलपुर लोकसभा उपचुनावों को लेकर राजनीतिक पार्टियों में सरगर्मियां तेज हो गई हैं. (फाइल फोटो)

गोरखपुर/फूलपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनावों को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बसपा के साथ तालमेल को लेकर सपा खासी आशान्वित दिख रही है तो बीजेपी इन सीटों पर फिर कमल खिलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है. उनके साथ केन्द्रीय मंत्रियों, नेताओं और राज्य मंत्रिपरिषद के सदस्यों की टीम प्रचार में जुटी है. सपा की दलील है कि जनता पीएम मोदी और सीएम योगी की नीतियों से परेशान है. कांग्रेस भी मानती है कि विकास को लेकर सरकार से जनता की उम्मीदें टूटी हैं.

  1. 11 मार्च को होने जा रहे हैं यूपी में उपचुनाव
  2. बीजेपी का अभी इन दोनों सीटों पर कब्‍जा है
  3. विपक्षी दलों के बीच प्रतिष्ठा का सवाल बनीं दोनों सीटें

गोरखपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां करीब साढ़े तीन लाख मुस्लिम, साढ़े चार लाख निषाद, दो लाख दलित, दो लाख यादव और डेढ़ लाख पासवान मतदाता हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सपा-बसपा का 'तालमेल' मतदाताओं को लुभाने में कितना कामयाब हो पाता है. दोनों सीटों पर 11 मार्च  को मतदान होना है. 

गोरखपुर में किस-किस के बीच है चुनावी दंगल? 
गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ है और वहां सीएम योगी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता. इसमें संदेह नहीं कि कई मतदाताओं की गोरखनाथ मठ के महंत में आस्था है. 1998 से लगातार गोरखपुर के सांसद रहे योगी चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कह चुके हैं कि बीजेपी उम्मीदवार उपेन्द्र शुक्ल उन्हीं के प्रतिनिधि हैं. कांग्रेस ने सुरहिता करीम को उम्मीदवार बनाया है. सुरहिता करीम की समाज में छवि अच्छी है. सपा के प्रत्याशी प्रवीण निषाद हैं. सपा के प्रत्याशी के लिए घर से ही चुनौती हैं, क्योंकि उनकी मां और भाई मुकाबले में हैं.

फूलपुर के चुनावी दंगल में कौन है आमने-सामने? 
फूलपुर के चुनावी दंगल में बीजेपी ने कौशलेन्द्र सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया, कांग्रेस ने मनीष मिश्र और सपा ने नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर नौ निर्दलीय सहित कुल 22 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. निर्दलीय उम्मीदवारों में माफिया से नेता बने अतीक अहमद शामिल हैं. अतीक इसी सीट से 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर विजयी हुए थे. आपको बता दें कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू फूलपुर सीट को जीतकर ही पहली बार संसद पहुंचे थे. साल 2014 में पहली बार बीजेपी ने इस सीट को जीत दर्ज की. आज ना सिर्फ सत्ताधारी बीजेपी बल्कि विपक्षी कांग्रेस और सपा के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. 

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बीजेपी की नहीं होगी फूलपुर सीट: सपा
पूर्ववर्ती सपा सरकार में पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे सपा राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य राम आसरे विश्वकर्मा ने दावा किया कि फूलपुर में जनता मोदी और योगी सरकार की नीतियों से परेशान है. जहां वर्तमान प्रदेश सरकार ने अखिलेश सरकार की सभी योजनाओं को बंद कर दिया, वहीं कर्जमाफी के नाम पर किसानों के खातों में कहीं 150 रुपए तो कहीं 500 रुपए आ रहे हैं. विश्वकर्मा ने कहा कि पूर्ववर्ती सपा सरकार ने राजभर, निषाद, बिंद, कुम्हार सहित 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र की मोदी सरकार को भेजा था. जिसे खारिज किए जाने से यह जातियां नाराज हैं. दूसरी ओर व्यापारी वर्ग जीएसटी की पेचीदगी से परेशान है.

अस्तित्व बचाने के लिए किया सपा-बसपा
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र विभाकर शास्त्री का कहना है कि फूलपुर की जनता को मौजूदा सरकार से विकास को लेकर जो उम्मीदें थी, वे टूट गईं. उप मुख्यमंत्री बनने से पूर्व केशव प्रसाद मौर्य ने बहुत कम अपने संसदीय क्षेत्र फूलपुर का दौरा किया. इससे भी वहां की जनता आहत है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ने हालांकि फूलपुर में बीजेपी की निश्चित जीत का दावा करते हुए कहा कि सपा और बसपा का गठबंधन परस्पर विरोधी विचारधारा का गठबंधन है और अपना अस्तित्व बचाने के लिए यह गठबंधन किया गया है. 

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फूलपुर में ज्यादा हैं पटेल वोटर 
बीजेपी के एक नेता ने बताया कि फूलपुर में पटेलों के वोट महत्वपूर्ण हैं. जो यहां के प्रत्याशी की हार जीत को तय करते हैं. पटेल वोटर्स के बाद यहां पासी समुदाय (अनुसूचित जाति) के मतदाताओं की संख्या अधिक है. जो बीजेपी के पारंपरिक वोटर रहे हैं. आपको बता दें कि फूलपुर सीट पर बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य निर्वाचित हुए थे लेकिन उत्तर प्रदेश का उप मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं.

जीत में का आयाम रचेगा सपा-बसपा गठबंधन
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बसपा के रूख को सपा भविष्य के संभावित गठबंधन के रूप में देख रही है, हालांकि बीजेपी का मानना है कि यह मजबूरी में उठाया हुआ कदम है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार (6 मार्च) को कहा था कि उनके पार्टी के कार्यकर्ता उस उम्मीदवार को वोट दें, जो बीजेपी उम्मीदवार को हरा सकें. बसपा के इस निर्णय से सपा काफी आशान्वित दिख रही है. उसका मानना है कि आज का यह समझौता कल एक गठबंधन का रूप ले सकता है.

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