चिदंबरम के चलते पूर्व RBI गवर्नर वाईवी रेड्डी ने एक नहीं दो-दो बार नौकरी छोड़ने की सोची थी
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चिदंबरम के चलते पूर्व RBI गवर्नर वाईवी रेड्डी ने एक नहीं दो-दो बार नौकरी छोड़ने की सोची थी

भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुखों का केंद्र सरकार के साथ संबंध खट्टा-मीठा ही रहता चला आया है पर लेकिन ऐसे मौके बिरले ही हैं जबकि केंद्रीय बैंक के किसी गवर्नर ने सरकार के साथ मतभेदों के कारण एक नहीं दो-दो बार नौकरी छोड़ने की सोची हो. पूर्व गवर्नर डॉ वाई वेणुगोपाल रेड्डी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था।

पी चिदंबरम

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुखों का केंद्र सरकार के साथ संबंध खट्टा-मीठा ही रहता चला आया है पर लेकिन ऐसे मौके बिरले ही हैं जबकि केंद्रीय बैंक के किसी गवर्नर ने सरकार के साथ मतभेदों के कारण एक नहीं दो-दो बार नौकरी छोड़ने की सोची हो. पूर्व गवर्नर डॉ वाई वेणुगोपाल रेड्डी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था.

डॉ रेड्डी ने पहली बार 2004 में तत्कालीन संयुक्त प्रगितशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में पी चिदंबरम के वित्त मंत्री बनने तथा दूसरी बार अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले वित्त मंत्री के साथ संबंधों में तनाव के कारण गवर्नर का पद छोड़ने के बारे में सोचा था. रेड्डी सितंबर 2003 से सितंबर 2008 के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे. उस समय वित्त मंत्री रहे चिदंबरम के साथ उनके संबंध 'कटु' रहे. उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दोनों के बीच पटरी बिठाने का प्रयास किया था और उसके बाद रेड्डी को वित्त मंत्री से 'बिना शर्त खेद' प्रकट करना पड़ा था.

अपनी आत्मकथा 'एडवाइस एंड डिसेंट: माइ लाइफ इन पब्लिक सर्विस' में रेड्डी ने कहा कि चिदंबरम के साथ उनकी कटुता की शुरुआत बैंकिंग कारोबार का दरवाजा विदेशियों के लिए खोलने की छूट के मसले पर हुई तथा '2008 तक हमारे बीच दूरियां बढ़ती गयीं.' रेड्डी ने लिखा है, 'उनको (चिदंबरम) को लगा कि मेरे उस सतर्क रुख के कारण उन्हें अपनी कुछ नीतियों के क्रियान्वयन में प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है और दहाई अंक की वृद्धि हासिल करने में लगे एक सुधारक के रूप में उनकी छवि को धक्का लगा है.' fallback

यहां तक कि उस समय वित्त मंत्री चिदंबरम ने अपनी एक विदेश यात्रा रद्द दी क्योंकि उनके पास उसमें सुधारों के बारे में बताने के लिये कुछ था नहीं और वे निवेशकों का सामना नहीं कर सकते थे. पूर्व नौकरशाह ने लिखा है कि 2008 की शुरुआत में उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया. उस समय मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं से मिलने के लिये तत्काल दिल्ली आने के लिये कहा गया.

रेड्डी ने जब चिदंबरम को पीएमओ से बुलावा के बारे में सूचित किया तो उन्हें कहा था कि, 'मेरी (चिदंबरम) तरफ से कोई बात नहीं है.' प्रधानमंत्री निवास पर हुई इस मुलाकात में सिंह ने गवर्नर रेड्डी से कहा, 'वेणु, वित्त मंत्री आपसे नाराज हैं. मुझे नहीं पता कि क्या करना हैं. मैं चिदंबरम और आपके बीच किसी का पक्ष नहीं ले सकता. मैं इसको लेकर चिंतित हूं.' 

रेड्डी के अनुसार इस पर उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि 'उन्हें इस समस्या को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है और वह वित्त मंत्री के साथ अपने संबंधों को ख्याल रखेंगे.' इस पर सिंह ने उनका धन्यवाद अदा दिया. रेड्डी लिखते हैं, 'वह चिदंबरम के निवास पर गये और उनसे बिना शर्त माफी मांगी' और उन्हें सरकार की नीतियों का ध्यान रखने का भरोसा दिलाया. पर इन बातों के बावजूद डॉ रेड्डी गवर्नर पद पर दूसरे कार्यकाल की प्रधानमंत्री की पेशकश से इनकार करने से नहीं हिचके.

पांच साल का पूरा कार्यकाल समाप्त होने से एक साल पहले वर्ष 2007 में रेड्डी ने 13वें वित्त अयोग के चेयरमैन के रूप में अपनी उम्मीदवारी की पेशकश की लेकिन वित्त मंत्री ने उन्हें नहीं छोड़ा. रेड्डी लिखते हैं कि राजग सरकार (वाजपेयी सरकार) के दौरान उन्होंने विदेशी स्वामित्व के लिये बैंकों को खोले जाने के फैसले का विरोध किया था. मई 2004 में संप्रग सत्ता में आयी तो चिदंबरम वित्त मंत्री बने. उन्होंने वह नीति जारी रखने का समर्थन किया. 

चिदंबरम ने विशेष रूप एक सार्वजनिक कार्यक्रम में रेड्डी के उस भाषण को पसंद नहीं किया जिसमें उन्होंने मामला-दर-मामला आधार पर विदेशी बैंकों के मूल्यांकन की बात कही थी. उसके तुरंत बाद चिदंबरम ने उन्हें मुद्दे पर चर्चा के लिये अपने आवास पर बुलाया. वह लिखते हैं, '..मेरे साथ वह सामान्य तौर पर औपचारिक से अनौपचारिक हो जाते थे, मजाकिया हो जाते थे. इस मामले में उन्होंने गंभीरता से बातें रखी. यह बेहद साफ था कि यह मुद्दा काफी महत्वपूर्ण था.' 

चिदंबरम ने उनसे कहा, 'वैश्विक समुदाय के समक्ष यह राष्ट्रीय प्रतिबद्धता जतायी जा चुकी है. अब हम अब नीति में बदलाव को कैसे उचित ठहरा सकते हैं.' पूर्व गवर्नर ने कहा कि उन्होंने यह बातें आथर्कि मामलों के सचिव के समक्ष ये बातें रखी. उन्होंने लिखा है, 'राकेश (राकेश मोहन), मैंने उनसे कहा, यह बेहतर होगा कि मैं नोकरी छोड़ दूं. मुझे लगता है कि मुद्दा हमारे राष्ट्रीय हित के लिये काफी महत्वपूर्ण है. मुझे लगता है कि विदेशी बैंकों के लिये दरवाजे अभी नहीं खोले जाने चाहिए. इसके बाद भी सरकार को यह लगता है कि यह किया जाना है, था किया जाए. लेकिन मैं इसके साथ नहीं रह पाउंगा.' 

रेड्डी ने कहा कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखी है और सरकार का अब उन पर भरोसा नहीं होगा, इसीलिए बेहतर होगा कि मैं नौकरी छोड़ दूं. लेकिन मामले में राकेश मोहन ने इस मामले को सुलझाने में अहम भूमिका निभायी और कुछ दिन बाद चिदंबरम ने उन्हें बुलाया. वह लिखते है, '..मुझे पता है कि आपको नीति को लेकर चिंता है और आप किसी रूपरेखा का प्रस्ताव कर सकते हैं जिसपर विचार किया जाएगा. हमें अपनी नीति प्रतिबद्धता स्पष्ट समय सीमा में घोषित करनी चाहिए..जितनी जल्दी हो मसौदा भेजिये.' रेड्डी ने कहा कि इससे उन्हें राहत मिली और वह नौकरी में बने रहे.

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