ZEE जानकारी: वेंकैया नायडू ने CJI के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज किया
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ZEE जानकारी: वेंकैया नायडू ने CJI के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज किया

राज्यसभा के सभापति एम . वेंकैया नायडू ने सोमवार को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों द्वारा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ दिए महाभियोग के नोटिस को खारिज कर दिया

ZEE जानकारी: वेंकैया नायडू ने CJI के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज किया

अब हम विपक्ष के उस महाभियोग प्रस्ताव का विश्लेषण करेंगे, जिसे आज राज्यसभा के चेयरमैन वैंकेया नायडू ने खारिज कर दिया. महाभियोग का ये प्रस्ताव Chief Justice of India जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ लाया गया था. शुक्रवार को विपक्ष के 64 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन वैंकेया नायडू को सौंपा गया था. लेकिन आज वैंकैया नायडू ने ये प्रस्ताव खारिज कर दिया. इस प्रस्ताव को खारिज करने के लिए उनकी तरफ से 10 पन्नों का एक आदेश भी दिया गया है. इस आदेश में वो आधार हैं, जिनकी वजह से महाभियोग का ये प्रस्ताव खारिज किया गया . हमने आज इस आदेश में लिखी सभी बातों को पढ़ा है. और उनका पूरा अध्ययन किया है. इस आदेश में लिखा गया है कि जो आरोप जस्टिस दीपक मिश्रा पर लगाए गए, वो निराधार और तथ्यहीन हैं. सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि किस आधार पर राज्यसभा के चेयरमैन ने इस प्रस्ताव को खारिज किया? 

राज्यसभा के चेयरमैन वैंकेया नायडू ने सबसे पहले ये देखा कि इस महाभियोग प्रस्ताव में लिखी गई बातें सही हैं या नहीं? और अगर ये सही हैं तो क्या इनसे संविधान के आर्टिकल 124 (4) के अंतर्गत Proved Misbehaviour यानी गलत व्यवहार सिद्ध होता है या नहीं? 

राज्यसभा के चेयरमैन ने अपने आदेश में M. कृष्णा स्वामी Versus भारत सरकार के एक फैसले का ज़िक्र किया है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्पीकर को, किसी जज को हटाने का प्रस्ताव स्वीकार करने से पहले Chief Justice of India और Attorney General of India की सलाह लेनी चाहिए. 

1993 में आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में ये भी लिखा गया था कि प्रस्ताव स्वीकार करने से पहले स्पीकर ये भी देखेंगे कि उस प्रस्ताव में तथ्य हैं या नहीं? और उन आरोपों को सिद्ध करने के लिए सबूत दिए गए हैं या नहीं? 

इस मामले में खुद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ ही प्रस्ताव था, इसलिए उनकी सलाह नहीं ली गई. 

लेकिन राज्यसभा के चेयरमैन ने कानून के जानकारों, संविधान विशेषज्ञों, दोनों सदनों के Secretary Generals और Law Commission के सदस्यों से सलाह मांगी. 

चेयरमैन वेंकैया नायडू ने लोकसभा के पूर्व Secretary General डॉक्टर सुभाष कश्यप, राज्यसभा के पूर्व Secretary General डॉक्टर विवेक K अग्निहोत्री, पूर्व कानून सचिव PK मल्होत्रा, पूर्व कानून सचिव, डॉक्टर संजय सिंह, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज B सुदर्शन रेड्डी, Attorney General KK वेणुगोपाल, पूर्व Attorney General K. पारासरन, पूर्व Attorney General सोली सोराबजी और पूर्व Attorney General मुकुल रोहतगी से उनकी सलाह मांगी गई. 

इन सबसे बात करने के बाद चेयरमैन इस नतीजे पर पहुंचे कि ये प्रस्ताव किसी भी जज को हटाने के लिए Fit Case नहीं है. 

इस फैसले में लिखा गया है कि संविधान के आर्टिकल 124 (4) में दो तरह के Expressions का ज़िक्र है, एक Proved Misbehaviour यानी 'गलत व्यवहार जिसे सिद्ध किया गया हो' और दूसरा Incapacity यानी अक्षमता..  Misbehaviour के पहले Proved शब्द लगाने का मतलब यही है कि जज को हटाने के लिए संसदीय प्रक्रिया शुरू होने से पहले Misbehaviour को साबित किया जाना आवश्यक है. यानी बिना आरोप साबित किए महाभियोग का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाएगा.

लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि जो आरोप लगाए गए थे, उनमें May have been यानी हो सकता है, जैसे Phrases का इस्तेमाल किया गया है. आदेश में लिखा हुआ है कि ऐसे वाक्यों से लगता है कि आरोप लगाने वाले लोग, सिर्फ संदेह और पूर्वानुमानों के आधार पर आरोप लगा रहे हैं. 

अपने आदेश में राज्यसभा के चेयरमैन ने लिखा है कि उन्होंने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर लगाए गए पांचों आरोपों को देखा है. और इनमें से कोई भी आरोप तर्कसंगत और स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है. इसलिए वो इस आधार पर प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार नहीं कर सकते. 

इस प्रस्ताव के खारिज होने के बाद कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस ने राज्यसभा के चेयरमैन के इस फैसले को असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया है. कांग्रेस का कहना है कि चेयरमैन महाभियोग के प्रस्ताव को सीधे खारिज नहीं कर सकते हैं. बल्कि उन्हें ये पूरा मामला जजों की एक कमेटी को सौंपना चाहिए था. कांग्रेस ने राज्यसभा के चेयरमैन पर जल्दबाज़ी में  फैसला लेने का आरोप लगाया. अब कांग्रेस का कहना है कि वो इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. यानी अब कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ही अर्ज़ी लगाएगी. कांग्रेस की मांग है कि उनकी याचिका पर चीफ जस्टिस फैसला न लें . यानी चीफ जस्टिय ये तय न करें कि कांग्रेस की याचिका सुप्रीम कोर्ट की कौन सी बेंच सुनेगी? जबकि ये सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का विशेषाधिकार है. 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के महाभियोग प्रस्ताव के खारिज होने पर हमने देश के वरिष्ठ न्यायविदों से बात की है. और कानून के ज़्यादातर जानकारों ने राज्यसभा के चेयरमैन के फैसले को सही बताया है. इन न्यायविदों ने इस प्रस्ताव को राजनीति से प्रेरित बताया है. इसलिए आज देश को और विपक्षी पार्टियों को इन कानून के जानकारों की बातें सुननी चाहिए. इनमें वो लोग भी शामिल हैं, जिनसे राज्यसभा के चेयरमैन वैंकेया नायडू ने सलाह मांगी थी. 

इस बीच आज से कांग्रेस का एक अभियान भी शुरू हुआ है, जिसका नाम है संविधान बचाओ यानी Save the Constitution. आज दिल्ली में कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस अभियान की शुरुआत की. उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा, दलितों के गुस्सा और सुप्रीम कोर्ट के जजों के मतभेद पर बहुत कुछ बोला. लेकिन उनकी एक बात राजनीति की दुनिया में Trend कर रही है. राहुल गांधी का कहना है कि अगर उन्हें संसद में 15 मिनट बोलने का मौका दे दिया जाए, तो उनके सामने प्रधानमंत्री एक भी शब्द नहीं बोल पाएंगे. वैसे ये बात अलग है कि जब संसद सत्र शुरू होता है, तो राहुल गांधी की पार्टी खुद ही संसद नहीं चलने देती.

राहुल गांधी को बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने एक Facebook Post के माध्यम से जवाब दिया है. 

अमित शाह ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी के प्रति कांग्रेस की जो नफरत है, वो अब देश के प्रति नफरत में बदल रही है. 

उन्होंने लिखा है कि आज़ादी के बाद अगर किसी पार्टी ने संविधान को सबसे ज्यादा रौंदा है, तो वो कांग्रेस पार्टी ही है. 

उन्होंने ये लिखा है कि राहुल गांधी कह रहे है कि संविधान का निर्माण कांग्रेस ने बनाया है, ऐसा कहकर वो डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान कर रहे हैं

और कांग्रेस का संविधान बचाओ अभियान कुछ नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के ऊपर वंशवाद को स्थापित करने का तरीका है. 
यानी इस अभियान का नाम Save the Constitution नहीं Save The Dynasty होना चाहिए.

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