ZEE जानकारी: जब अपने लोगों के बदले हिंदुस्तान को छोड़ने पड़े 3 खूंखार आतंकवादी
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ZEE जानकारी: जब अपने लोगों के बदले हिंदुस्तान को छोड़ने पड़े 3 खूंखार आतंकवादी

भारत के लोगों ने बार बार ये साबित किया है कि वो देश को छोड़कर हमेशा परिवार को ही चुनते हैं. भारत के लोगों, नेताओं और पत्रकारों की राय सहूलियत के हिसाब से बदलती रहती है.

जिस वक्त ये घटना हुई थी, उस वक्त लोगों को देश की नहीं, अपनों की फिक्र थी.

अब हम परिवारवाद की उस भावना का विश्लेषण करेंगे. जिसने आज से ठीक 20 वर्ष पहले राष्ट्रवाद की भावना को हाईजैक कर लिया था. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मानते थे. कि एक देश की संस्कृति उस देश के लोगों के हृदय और आत्मा में बसती है. भारत की संस्कृति कहती है कि व्यक्ति से बड़ा परिवार होता है, परिवार से बड़ा समाज और समाज से बड़ा राष्ट्र..लेकिन क्या ये भावना वाकई भारत के लोगों के दिलों में बसती है ?

नए नागरिकता कानून औऱ NRC को लेकर पिछले कुछ दिनों से देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कुछ लोग इस पर राजनीति कर रहे हैं. कुछ लोग इसे देश के नागरिकों के खिलाफ बता रहे हैं तो कुछ लोग सड़कों पर धरना दे रहे हैं. पुलिस पर पत्थर बरसा रहे हैं. लेकिन भारत में खुद को. देश से ऊपर मानने वाली ये सोच बहुत पुरानी है.

भारत के लोगों ने बार बार ये साबित किया है कि वो देश को छोड़कर हमेशा परिवार को ही चुनते हैं. भारत के लोगों, नेताओं और पत्रकारों की राय सहूलियत के हिसाब से बदलती रहती है. जब तक बॉर्डर पर सैनिक शहीद होते हैं..तो देश के लोग कहते हैं कि कश्मीर मांगोंगे तो चीर देंगे. लेकिन जब आतंकवादी किसी के परिवार वालों को किडनैप कर लेते हैं तो यही लोग कहने लगते हैं कि पाकिस्तान को कश्मीर दे दो. हमें कश्मीर से क्या लेना देना. यानी हमारे देश में निजी हित हमेशा राष्ट्रहित से ऊपर हो जाता है. और राष्ट्रप्रेम परिवार प्रेम से हार जाता है.

इसिलए आज हम निजी हित को राष्ट्रहित से ऊपर मानने वाली इसी सोच का विश्लेषण कर रहे हैं. भारत के आम लोग और राजनेता सबसे पहले अपने बारे में सोचते हैं, फिर अपने परिवार के बारे में और फिर समाज और देश का नंबर आता है . जबकि होना ठीक इसका उलटा चाहिए . भारत के लोगों की परिवारवाद वाली भावना. राष्ट्रवाद की भावना को कैसे High-Jack कर लेती है. इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम आज से ठीक 20 वर्ष पहले घटी एक घटना का विश्लेषण करेंगे. ये बात वर्ष 1999 के दिसंबर महीने की है. तब 5 महीने पहले ही भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हराया था.

उस समय देश के लोग राष्ट्रवाद की भावना से ओत-प्रोत थे. और समय आने पर देश के लिए मरने-मिटने की कसमें भी खा रहे थे. कारगिल युद्ध भारत का पहला ऐसा युद्ध था. जिसकी न्यूज़ चैनलों ने बड़े स्तर पर कवरेज की थी....इसका असर ये हुआ था कि हमारे सैनिकों की बहादुरी से जुड़ी कहानियां घर-घर तक पहुंच रही थी. और लोग सैनिकों की तरह सरहद पर जाकर लड़ने के लिए भी तैयार थे.

लेकिन कारगिल युद्ध जीतने के ठीक 5 महीने बाद. कुछ ऐसा हुआ. जिसने इन भावनाओं का सच दुनिया के सामने ला दिया. 24 दिसंबर 1999 को नेपाल की राजधानी काठमांडू से दिल्ली आ रहे. Indian Airlines के विमान IC-814 का अपरहण कर लिया गया. अमृतसर, लाहौर और दुबई में रुकने के बाद इस विमान को अफगानिस्तान के कांधार ले जाया गया था और 31 दिसंबर तक ये विमान कांधार एयरपोर्ट पर ही खड़ा था.

इस विमान में Crew Members समेत 191 लोग सवार थे. अपहरण-कर्ताओं ने यात्रियों को छोड़ने के बदले में भारत की जेलों में बंद 36 खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने की मांग की थी. साथ ही मारे गए आतंकवादी सज्जाद अफगानी की लाश. और 200 मिलियन डॉलर यानी करीब 1400 करोड़ रुपये भी आतंकवादियों ने मांगे थे.

लेकिन, शुरुआत में भारत सरकार आतंकवादियों की मांग मानने के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए, बड़ी चालाकी से अपहरणकर्ताओं से बातचीत की अवधि को बढ़ाया गया. और अंत में मसूद अज़हर, उमर शेख और मुश्ताक अहमद ज़रगर नामक आतंकवादियों की रिहाई पर फैसला लिया गया. और इसके बाद 31 दिसंबर 1999 को विमान में बंधक बनाए गए लोगों की घर वापसी हुई थी.

बाद में इसी मसूद अज़हर ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की. और ये आतंकवादी संगठन अब तक 331 भारतीयों की जान ले चुका है. जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने ही. 2001 में संसद भवन और जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर हमला किया था . और इस साल पुलवामा में CRPF के 40 जवानों की जान लेने वाले आतंकवादी संगठन का नाम भी जैश-ए-मोहम्मद ही है .

लेकिन सवाल यही है कि आखिर मसूद अज़हर समेत तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने की नौबत क्यों आई ? इसका जवाब ये है कि आज भी हमारे देश में आम लोगों के लिए परिवार से बड़ा कुछ नहीं है . और राजनेताओं के लिए राजनीति से बड़ा कुछ नहीं है .

ये बात सही है कि उस वक्त 191 लोगों के परिवार चिंता में डूबे थे...और उन्हें सुरक्षित वापिस लाने की जिम्मेदारी भी सरकार थी लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके लिए सरकार पर किस तरह का दबाव डाला गया था ? जो लोग उस विमान में मौजूद थे.

उनके परिवार लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और किसी भी कीमत पर अपनों को वापस पाना चाहते थे . इन लोगों का कहना था चाहे कश्मीर दे दो. चाहे कुछ भी दे दो...बस घर वालों को वापस लाओ. जब उस वक्त के विदेश मंत्री जवसंत सिंह ने इन लोगों को ये समझाने की कोशिश की कि सरकार को देश के हित का भी ख्याल रखना होता है. तो वहां मौजूद भीड़ शोर मचाने लगी और एक व्यक्ति ने तो यहां तक कह दिया कि भांड़ में जाए देश और भांड़ में जाए देश का हित .

इस घटना का जिक्र उस वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले पत्रकार कंचन गुप्ता ने अपने एक Blog में भी किया था . वर्ष 2008 में -The Truth Behind Kandahar नामक Blog में कंचन गुप्ता लिखते हैं कि इसी दौरान..एक शाम कारगिल के हीरो शहीद Squadron Leader अजय आहुजा की पत्नी प्रधानमंत्री कार्यलाय पहुंची. उन्होंने अधिकारियों से निवेदन किया कि उन्हें विमान में मौजूद लोगों के रिश्तेदारों से बात करने दी जाए. प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर शहीद की पत्नी ने मीडिया और लोगों से बात की. उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की.

कि भारत को आतंकवादियों के आगे नहीं झुकना चाहिए . उन्होंने अपनी आप-बीती भी सुनाई और लोगों को समझाया कि कोई भी पीड़ा राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती. लेकिन तभी भीड़ में से कोई चिल्लाया और कहा कि ये खुद एक विधवा हैं और चाहती है कि दूसरी महिलाएं भी विधवा हो जाए. फिर भीड़ में से किसी ने कहा कि ये कहां से आई हैं ? और इसके बाद लोग उनके साथ धक्का-मुक्की करने लगे.

उस वक्त शहीद अजय आहुजा पत्नी की की उम्र करीब 30 वर्ष रही होगी. इतनी कम उम्र मे अपने पति को युद्ध में खोने वाली एक महिला देशवासियों को राष्ट्र प्रेम का महत्व समझा रही थीं. और लोग उनके साथ बदसलूकी कर रहे थे उन्हें विधवा कहकर बुला रहे थे .

कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले कई सैनिकों के परिवार वालों ने उस वक्त लोगों को यही बातें समझाने की कोशिश की थी. इनमें शहीद लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के पिता...कर्नल VN थापर भी शामिल थे. आज हमने इस घटना का जिक्र अपने Blog में करने वाले पत्रकार कंचन गुप्ता और शहीद लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के पिता. VN थापर से भी बात की . इन दोनों की बातें सुनकर आप समझ जाएंगे कि उस वक्त जनता के दबाव में कैसे राष्ट्रहित की आहुति दे दी गई थी .

लेकिन बंधकों के परिवार वालों के साथ साथ उस वक्त देश की मीडिया ने भी सरकार पर अभूतपूर्व दबाव बना दिया था . एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया गया था जिसके आगे सरकार को झुकना पड़ा . यहां हम एक बात साफ कर देना चाहते हैं कि हम भी उस गलती का हिस्सा थे . क्योंकि Zee News पर भी उस वक्त इस HighJacking से जुड़ी हर छोटी बड़ी खबर दिखाई जा रही थी और हमारे कैमरों पर भी लोग...अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे और सरकार को नाकामी के लिए कोस रहे थे.

जिस वक्त ये घटना हुई थी, उस वक्त लोगों को देश की नहीं, अपनों की फिक्र थी. और इसीलिए शायद राष्ट्रहित से समझौता कर लिया गया. सड़क से लेकर संसद तक विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. सबकी सिर्फ एक मांग थी, कि जितने भी यात्री IC-814 की Hijacking में फंसे हुए हैं, उन्हें जल्द से जल्द रिहा करवाया जाए.

ये तत्कालीन केंद्र सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक बहुत बड़ा मुद्दा था. लेकिन, साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखने की ज़रुरत थी, कि देश के लोगों की जान के साथ कोई समझौता ना किया जाए. इसीलिए, तत्कालीन NDA सरकार ने 20 साल पहले हर राजनीतिक पार्टी से उसकी राय जानी. और उसके बाद ही कोई फैसला लिया. लेकिन, अफसोस की बात ये है, कि उस वक्त देश के लोगों की भावनाओं को भड़काने वालों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल थे . जिनके बारे में हम आपको आगे बताएंगे .

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