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2011 के Census के मुताबिक देश के 8 करोड़ 40 लाख बच्चे स्कूल ही नहीं जाते हैं. अब तक ये संख्या और बढ़ गई होगी.... ये आंकड़ा बहुत गंभीर है. आपको जानकर हैरानी होगी कि 8 करोड़ 40 लाख छात्रों की संख्या, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, इटली, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की जनसंख्या से भी ज्यादा है. यानी हमारे देश में स्कूल ना जाने वाले छात्रों की संख्या इन विकसित देशों की जनसंख्या से भी ज़्यादा है.
इसके अलावा हमारे देश के 78 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूल जाने के साथ-साथ रोज़ी रोटी कमाने के लिए काम भी करते हैं. स्कूल के साथ-साथ काम करने वाले बच्चों में 57 प्रतिशत लड़के हैं, जबकि 43 प्रतिशत लड़कियां हैं. इन 78 लाख बच्चों में से 68 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो खेती बाड़ी जैसे काम करते हैं.
आपको बता दें कि जो 8 करोड़ 40 लाख बच्चे.. स्कूल नहीं जा पाते हैं, वो शिक्षा के अधिकार के दायरे में आने वाले कुल बच्चों के 20 प्रतिशत हैं. यानी इन बच्चों के लिए शिक्षा पूरी तरह से मुफ्त है, लेकिन इसके बाद भी तमाम मजबूरियों की वजह से ये बच्चे स्कूल नहीं जा पाते.
गैर सरकारी संगठन प्रथम ने ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर को दर्शाने वाली..Annual Status of Education Report को प्रकाशित किया है. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए देश के 589 जिलों के ग्रामीण इलाकों का Survey किया गया . इस सर्वे में 5 लाख 62 हज़ार 305 बच्चों के शिक्षा के स्तर को नापा गया तो हैरान कर देने वाली बातें पता चलीं. आपको जानकर दुख होगा कि ग्रामीण भारत में बच्चों की पढ़ाई का स्तर या तो गिर रहा है..या फिर इसमें मामूली सुधार दर्ज किया गया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 में ग्रामीण भारत में 8वीं कक्षा के करीब 53 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी के सरल वाक्य पढ़ नहीं पाते थे, लेकिन वर्ष 2016 आते-आते ये आंकड़ा 55 प्रतिशत से भी ज़्यादा हो गया. यानी ग्रामीण भारत में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला हर दूसरा बच्चा अंग्रेजी के सरल से सरल वाक्य भी ठीक से नहीं पढ़ पाता..
सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं...ग्रामीण भारत में आठवीं कक्षा के छात्र गणित के सामान्य जोड़ने-घटाने के काम भी नहीं कर पाते. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2016 में आठवीं कक्षा के 76.7 प्रतिशत छात्र दो संख्याओं को घटा नहीं पाए..जबकि 57 प्रतिशत छात्र... भाग करना यानी Divide करना नहीं जानते थे.