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21वीं सदी के भारत में मुस्लिम समुदाय आज भी कुछ ऐसी पंरपराओं की ज़ंजीरों से बंधा हुआ है जिसने मुस्लिम महिलाओं की ज़िन्दगी नरक बना दी है। उत्तराखंड के काशीपुर में अपने माता-पिता के साथ रहने वाली 38 साल की सायरा बानो को अचानक एक चिट्ठी मिली और चिट्ठी खोलते ही उनकी ज़िन्दगी तिनकों की तरह बिखर गई क्योंकि उस चिट्ठी में लिखा था- तलाक... तलाक... तलाक।
- तलाक, एक ऐसा शब्द है जो ना सिर्फ हंसते-मुस्कुराते परिवार के टुकड़े कर देता है बल्कि रिश्तों के मायने भी बदल देता है। हमारे देश में तीन तलाक का ज़हर पीने वाली ना जाने कितनी मुस्लिम महिलाएं हैं जो किसी ना किसी डर की वजह से ख़ामोश रहती हैं और अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को सहती हैं। लेकिन 38 साल की सायरा बानो ज़रा दूजी किस्म की महिला हैं।
- सायरा बानो.. Sociology में Post-graduate हैं और दो बच्चों की मां हैं। सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक, हलाला और पुरुषों के एक से ज़्यादा निकाह जैसी इस्लामी प्रथाओं को चुनौती दी थी।
- निकाह-हलाला का मतलब ये होता है कि अगर तलाकशुदा दंपती दोबारा शादी करना चाहे, तो पहले पत्नी को दूसरी शादी करनी होगी...और फिर उसके दूसरे पति को उसे तलाक देना होगा... तभी वो अपने पहले पति से दोबारा शादी कर सकती है।
- तलाक-ए-बिदत का मतलब है तीन बार तलाक बोलने से ही तलाक हो जाना और तीसरी प्रथा है पुरुष को चार बीवियां रखने की इजाज़त। सायरा बानो ने अपने मौलिक अधिकारों की बात करते हुए ऐसी प्रथाओं का विरोध किया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, कि तीन तलाक की प्रथा अंसवैधानिक है और इसे ख़त्म किया जाना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने सायरा बानो की अपील स्वीकार कर ली....और कोर्ट ने खुद संज्ञान लेते हुए...28 मार्च 2016 को, मुसलमानों के Personal Law से जुड़े शादी और तलाक के मामलों पर, केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके 6 हफ्तों में रिपोर्ट मांगी थी।
- All India Muslim Personal Law Board इस मामले में विरोधी पक्ष है और उसने केंद्र सरकार से इस मामले में कोई हस्तक्षेप ना करने और कोई राय ना देने की अपील की है।
- All India Muslim Personal Law Board का कहना है कि वो तलाक की पुरानी प्रथा में किसी भी तरह की छेड़छाड़ का विरोध करेगा। उसकी ये भी दलील है, कि सुप्रीम कोर्ट को Personal Law की समीक्षा का अधिकार ही नहीं है।
- सवाल ये है कि Uniform Civil Code की बात करने वाली NDA सरकार अब क्या करेगी? उससे भी बड़ा सवाल ये है, कि जब पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, इराक और जॉडर्न सहित दुनिया के 22 इस्लामिक देश, तलाक-ए-बिदत यानी तीन तलाक जैसी प्रथा को ख़त्म कर सकते हैं, तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
- उत्तराखंड की सायरा बानो देश की क़रीब 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओं के लिए उम्मीद की एक किरण बनकर आई हैं। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे तथ्यों के आधार पर समझने के लिए इन आंकड़ों को जानना जरूरी है।
- मुस्लिम महिलाओं के हक की बात करने वाली संस्था, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने 21 अगस्त 2015 को एक सर्वे किया था जिसमें पाया गया था कि देश की 90 फीसदी मुस्लिम महिलाएं ऐसी हैं जो तीन तलाक और पुरुषों के एक से ज़्यादा निकाह से मुक्ति चाहती हैं।
- सर्वे के मुताबिक 86 फीसदी महिलाएं, अपने धर्मगुरुओं से न्याय की उम्मीद करती हैं। 89 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जो सरकार की तरफ से इस मामले में दखल और तलाक के क़ानून में बदलाव करवाना चाहती हैं।
- 91 फीसदी से ज़्यादा महिलाएं ऐसी हैं जो ये नहीं चाहती कि उनके रहते उनके पति किसी दूसरी महिला से निकाह करें।
- हमारे देश में सिर्फ 2.5 फीसदी मुस्लिम महिलाएं ही Graduate हैं। देश में 50 फीसदी से ज़्यादा मुस्लिम महिलाएं अशिक्षित हैं।
- ग्रामीण इलाकों में तो ये स्थिति और भी बुरी है। उत्तरी भारत में रहने वाली 85 फीसदी मुस्लिम महिलाएं ऐसी हैं जो ना तो लिख पाती हैं और ना ही पढ़ पाती हैं।