'जाको राखे साइयां, मार सके न कोय' यानी जिसकी रक्षा ख़ुद भगवान कर रहे हों, उसे कोई मार नहीं सकता। ये कहावत देश के लिए
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नई दिल्ली : 'जाको राखे साइयां, मार सके न कोय' यानी जिसकी रक्षा ख़ुद भगवान कर रहे हों, उसे कोई मार नहीं सकता। ये कहावत देश के लिए अपनी हड्डियां गलाने वाले वीर योद्धाओं पर सबसे सटीक बैठती है क्योंकि जो जांबाज़ देश के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार रहते हैं, उन्हें कई बार ऊपरवाला भी बचा लेता है। डीएनए में ख़बरों के विश्लेषण की शुरुआत एक ऐसी ही ख़बर से करेंगे। 3 फरवरी को ये ख़बर आई थी कि सियाचिन में 20 हज़ार 500 फीट की ऊंचाई पर नाइनटीन मद्रास बटालियन के 10 सैनिक एक बड़े हिमस्खलन की चपेट में आ गए थे। उस वक्त किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि इस हादसे में सेना का एक भी जवान जीवित बचा होगा लेकिन इस हादसे के 6 दिन बाद एक राहत भरी ख़बर आई।
हिमस्खलन में फंसे सेना के लांस नायक हनुमन-थप्पा 3 फरवरी से 8 फरवरी तक 35 फुट बर्फ के नीचे दबे रहे लेकिन हादसे के 6 दिन बाद रेस्क्यू ऑपरेशन में उन्हें ज़िन्दा निकाल लिया गया है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। हालांकि हमें बड़े दुख के साथ आपको ये जानकारी देनी पड़ रही है कि हादसे का शिकार हुए बाकी 9 जवान अब इस दुनिया में नहीं हैं। इन सभी जवानों के शव रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान लांस नायक हनुमनथप्पा के क़रीब ही पाए गए। इन सभी सैनिकों को बैटल कैजुअलटी घोषित किया गया है। यानी इन्हें युद्ध क्षेत्र में शहीद का दर्जा दिया जाएगा।
जानकारी के मुताबिक 8 फरवरी को, जब हनुमनथप्पा को रेस्क्यू टीम ने रिकवर किया उस वक्त उनकी सांसें चल रही थीं। हालांकि तब उनके शरीर में पानी की भारी कमी थी। वो हाइपो-थर्मिया का शिकार थे यानी उनके शरीर का तापमान काफी कम था। वो होइपोक्सिया से जूझ रहे थे यानी उस वक्त उनके शरीर में ऑक्सीज़न की भारी कमी थी। रिकवर किए जाने के दौरान वो हाइपो-ग्लीकेमिक शॉक में थे यानी उनका ब्लड सुगर लेवल काफी कम था मौके पर मौजूद डॉक्टर्स की टीम ने उन्हें प्राथमिक उपचार दिया। शरीर में गर्मी पहुंचाने के लिए हनुमनथप्पा को वार्मिंग इंट्रा-वेनस प्लूइड्स दिए गये। फिर उन्हें सेना के हेलीकॉप्टर के ज़रिए नीचे बेस कैम्प में लाया गया जहां से वो भारतीय वायुसेना के स्पेशल एयरक्राफ्ट से दिल्ली में सेना के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल लाए गए।
हालांकि चमत्कारिक रूप से बचाए गए इस जवान की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है। फिलहाल हनुमनथप्पा कोमा में हैं उन्हें लो बल्ड प्रेशर और निमोनिया है। उनका लीवर और किडनी सही ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। हालांकि अच्छी बात ये है कि बर्फ के नीचे दबे होने की वजह से उनकी त्वचा और दूसरे टिसूज को नुकसान नहीं पहुंचा है। राहत की बात ये भी है कि इस हादसे में हनुमनथप्पा के शरीर की कोई हड्डी नहीं टूटी है। फिलहाल उनका इलाज किया जा रहा है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है।
डॉक्टर्स की टीम देश के इस वीर सपूत को बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। डॉक्टर्स का मानना है कि हनुमनथप्पा के लिए अगले 24 से 48 घंटे बेहद अहम हैं। इसलिए हम चाहेंगे की पूरा देश इस वीर सपूत के जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करे क्योंकि प्रार्थना में बहुत ताकत होती है और आज लांस नायक हनुमनथप्पा को देश के 127 करोड़ लोगों की प्रार्थना की ज़रूरत है।
ये सिर्फ एक इक्तेफ़ाक नहीं हो सकता, ये कोई दैवीय शक्ति ही है जिसने सियाचिन में 35 फीट ऊंची बर्फ की दीवार के नीचे हिन्दुस्तान के रखवाले लांस नायक हनुमन-थप्पा का बाल भी बांका नहीं होने दिया। सियाचिन में 112 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से 800 फीट बाई 400 फीट मोटी बर्फ की दीवार 19 मद्रास बटालियन के 10 सैनिकों पर मौत बनकर टूटी। बर्फ के इस तूफान ने भारतीय सेना के 9 सपूतों को हमेशा-हमेशा के लिए हमसे छीन लिया लेकिन वो लांसनायक हनुमन-थप्पा के हौसलों के आगे हार गया। 3 फरवरी को जब ये ख़बर आई कि सियाचिन में देश के 10 सपूत हिमस्खलन का शिकार हो गए हैं तो सबने उनके जीवित होने की उम्मीदें छोड़ दी थीं।
लेकिन सेना ने मोर्चा संभाला और 200 सैनिकों की रेस्क्यू टीम दिन-रात 24 घंटे एक-एक इंच की तलाश करती रहीं। 800 फीट बाई 400 फीट मोटी बर्फ की दीवार जब सैनिकों पर मौत बनकर टूटी तो उसने क़रीब 1 हज़ार वर्गमीटर के इलाके को 25 से 30 फीट ऊंची बर्फ की दीवार से ढक लिया था। तेज़ बर्फबारी और माइनस 55 डिग्री सेल्सियस की ठंड के बीच रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। रेस्क्यू टीम के स्पेशलाइजिस्ड़ रेस्क्यू डॉग्स इस ऑपरेशन का हिस्सा थे। सेना की टीम सारे इक्यूपमेंट्स के साथ जीवित सैनिकों की उम्मीद में तलाशी अभियान चला रही थी। उनके पास 20 मीटर के इलाके में कोई भी हीट सिग्नेचर पता करने वाले यंत्र से लेकर रेडियो से निकलने वाले सिग्नल को डिटेक्ट करने वाले यंत्र भी मौजूद थे। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और लांसनायक हनुमन-थप्पा को सही-सलामत मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया।
शुरुआती फर्स्ट एड के बाद उन्हें एयरलिफ्ट करके डॉक्टर्स की टीम की निगरानी में दिल्ली लाया गया जहां सेना के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा है। हालांकि वो अभी भी ज़िन्दगी और मौत से जंग लड़ रहे हैं। जैसे ही लांस नायक हनुमन-थप्पा की सलामती की ख़बर देश को मिली। प्रधानमंत्री से लेकर देश के सवा सौ करोड़ लोगों के हाथ उनके लिए दुआएं मांगने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम सेना के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल की तरफ चल पड़े, ना उन्हें अपने सुरक्षा घेरे की फिक्र थी और ना ही किसी दूसरी बात की चिंता। उन्हें बस अपने वीर सपूत को एक नज़र देखना था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह सब कुछ छोड़कर लांस नायक हनुमनथप्पा को देखने गए। उससे जवानों में एक अच्छा संदेश गया है और उनका हौसला बढ़ा है। ज़रा सोचिए कि आपमें से कितने लोग सियाचिन जैसी जगह पर ट्रांसफर लेकर देश की रक्षा करने की पहल करेंगे? इसलिए हमें लगता है कि देश की रक्षा करने वाले जवानों का पूरे देश को सम्मान करना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री होने के साथ साथ एक नागरिक होने के नाते आज ये काम किया है।
बेरहम मौसम है सियाचिन में भारत के जवानों का सबसे बड़ा दुश्मन
सियाचिन वो इलाका है जहां सिर्फ पक्के दोस्त और कट्टर दुश्मन ही पहुंच सकते हैं। सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है अगर इसके नाम के मतलब पर जाएं तो सिया मतलब गुलाब और चिन मतलब जगह यानी गुलाबों की घाटी लेकिन भारत के सैनिकों के लिए इस गुलाब के कांटे काफी चुभने वाले साबित हुए हैं। सियाचिन में हमारे सैनिकों का सबसे बड़ा दुश्मन...कोई घुसपैठिया या आतंकवादी नहीं...बल्कि वो बेरहम मौसम है...जो अलग अलग देशों के इंसानों में कोई फर्क नहीं करता।
-सियाचिन में तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
-बेस कैंप से भारत की जो चौकी सबसे दूर है उसका नाम इंद्रा कॉलोनी है और सैनिकों को वहां तक पैदल जाने में लगभग 20 से 22 दिन का समय लग जाता है।
-चौकियों पर जाने वाले सैनिक एक के पीछे एक लाइन में चलते हैं और सबकी कमर में एक रस्सी बंधी होती है।
-कमर में रस्सी इसलिए बांधी जाती है क्योंकि बर्फ कहां धंस जाए इसका पता नहीं चलता।
-ऐसे में अगर कोई सैनिक खाई में गिरने लगे तो बाकी लोग रस्सी की मदद से उसकी जान बचा सकते हैं।
-सियाचिन में इतनी बर्फ है कि अगर दिन में सूरज चमके और उसकी चमक बर्फ पर पड़ने के बाद आंखों में जाए तो आंखों की रोशनी जाने का ख़तरा रहता है।
-इतना ही नहीं अगर तेज़ चलती हवाओं के बीच कोई सैनिक रात में बाहर हो तो हवा में उड़ रहे बर्फ के अंश चेहरे पर हज़ारों सुइयों की तरह चुभते हैं।
-वहां नहाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता और सैनिकों को दाढ़ी बनाने के लिए भी मना किया जाता है क्योंकि वहां त्वचा इतनी नाज़ुक हो जाती है कि उसके कटने का ख़तरा काफी बढ़ जाता है और अगर एक बार त्वचा कट जाए तो घाव भरने में काफी समय लगता है।
-सियाचिन ग्लेशिय दुनिया का सबसे ऊंचा बैटल फील्ड है।
-वर्ष 1984 से लेकर अबतक क़रीब 900 सैनिक सियाचिन में शहीद हो चुके हैं।
-इनमें से ज़्यादार सैनिक हिमस्खलन और ख़राब मौसम के कारण शहीद हुए हैं।
-जवानों के शहीद होने की मुख्य वजह है हिमस्खलन, ज़्यादा ठंड की वजह से होने वाला टिसू ब्रेक, ऊंचाई पर काम करने की वजह से होने वाली बीमारी और पैट्रोलिंग के दौरान ज्यादा ठंड से हार्ट फेल होना।
-लंबे समय तक शून्य से नीचे के तापमान में रहने से दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है यानी दिल पर ज़्यादा बोझ पड़ता है और इससे दिल से जुड़ी बीमारी होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
-आज भी ऊंचाई पर ज़्यातादर मौतें हाई एल्टीट्यूड पल्मनरी इडीमा से होती हैं इसमें व्यक्ति के फेफड़ों में पानी भर जाता है।
-कई जवानों में एक्यूट माउंटेन सिकनेस की शिकायत होती है। पहाड़ों पर जाने के कारण कभी-कभी सिर में दर्द होता है और चक्कर आते हैं और इसकी वजह ये है कि ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होने लगती है और ऐसे में अगर तापमान भी बहुत कम हो तो कई बार दिमाग पर दबाव बढ़ जाता है।
-ठंड से एक और ख़तरनाक स्थिति पैदा हो सकती है, बहुत ज़्यादा ठंड में ख़ून जम सकता है, उंगलियां गल जाती हैं, निमोनिया या इन्फ़ेक्शन हो जाता है और शरीर का कोई हिस्सा सड़ भी सकता है।
रणनीतिक तौर पर भारत के लिए बेहद ज़रूरी है सियाचिन
सियाचिन रणनीतिक तौर पर भारत के लिए बेहद ज़रूरी है। इसलिए इसकी सुरक्षा से कोई समझौता भी नहीं किया जा सकता। सियाचिन के बारे में कहा जाता है कि ये इलाका भारतीय सेना की जांबाज़ी की मिसाल है। सियाचिन के बर्फीले रेगिस्तान में जहां कुछ नहीं उगता, वहां सैनिकों की तैनाती का एक दिन का खर्च ही 4 से 8 करोड़ रुपए है फिर भी 30 साल से यहां भारतीय सेना पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम कर रही है।
-सियाचिन हिमालय के कराकोरम रेंज में है, जो चीन को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करती है।
-सियाचिन 76 किलोमीटर लंबा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है।
-सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हज़ार फौजी तैनात रहते हैं।
-अनुमान के मुताबिक सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
-सियाचिन पर रिसर्च के दौरान हमें जानकारी मिली कि यहां सर्दियों में 1 हज़ार सेंटिमीटर से ज़्यादा की बर्फबारी होती है।
-सियाचिन की रक्षा पर हर रोज़ औसतन क़रीब 6.8 करोड़ रुपये का खर्च आता है यानी यहां की सुरक्षा के लिए भारत को हर सेकेंड 18 हज़ार रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
-एक रोटी जिसे बनाने की कीमत सिर्फ 2 रुपये तक होती है उसकी क़ीमत सियाचिन पहुंचते पहुंचते 200 रुपये हो जाती है।