ZEE जानकारीः कश्मीर पर भारत के 3 गलत फैसलों को विश्लेषण
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ZEE जानकारीः कश्मीर पर भारत के 3 गलत फैसलों को विश्लेषण

कई विद्वानों ने ये बात स्वीकार की है कि कश्मीर समस्या की वजह देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की गलत नीतियां थीं.

ZEE जानकारीः कश्मीर पर भारत के 3 गलत फैसलों को विश्लेषण

कश्मीर की समस्या आज भारत की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ा घाव है . पिछले 28 वर्षों में 6 हज़ार 400 से ज़्यादा जवान कश्मीर में शहीद हो चुके हैं . कश्मीर एक खून पीने वाला Black Hole बन चुका है . इसीलिए ज़ी न्यूज़ ने हमेशा कश्मीर के मामले का बहुत गहराई से अध्ययन किया है. देश के हर नागरिक को कश्मीर की समस्या के बारे में दिलचस्पी लेनी चाहिए और ये समझने की कोशिश करनी चाहिए कि आखिर हमारे देश के नीति निर्माताओं से गलती कैसे हो गई? 

कई विद्वानों ने ये बात स्वीकार की है कि कश्मीर समस्या की वजह देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की गलत नीतियां थीं. पंडित जवाहर लाल नेहरू को Great Prime Minister और Statesman मानने वाले लोग भी ये मानते हैं कि कश्मीर की समस्या पंडित नेहरू की भूलों का नतीजा है . लेकिन कभी किसी ने इस बात पर गहराई से अध्ययन नहीं किया कि आखिर जवाहर लाल नेहरू की सबसे बड़ी भूल क्या थी ? पंडित नेहरू आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री थे . इसलिए उनकी ज़िम्मेदारी भी सबसे ज़्यादा थी. 

हमने कई किताबों और महत्वपूर्ण लेखों के अध्ययन के बाद ये पता लगाया है कि आखिर कश्मीर समस्या की जड़ में क्या है ? जब देश को आज़ादी मिली... उसी वक्त पंडित जवाहर लाल नेहरू से सबसे पहली गलती ये हुई कि उन्होंने भारत का संवैधानिक प्रमुख एक भारतीय को नहीं बल्कि एक अंग्रेज़ को बनाया . गुलाम भारत के आखिरी Viceroy ही आज़ाद भारत के पहले गवर्नर जनरल बन गए . अगर आप से इतिहास में ये प्रश्न पूछा जाए कि ब्रिटिश भारत के आखिरी संवैधानिक प्रमुख और आज़ाद भारत के पहले संवैधानिक प्रमुख का नाम क्या था ? तो इसका एक ही जवाब होगा... Lord Louis Mountbatten 

पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनके सहयोगियों को लॉर्ड माउंटबेटन पर भरोसा था . लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन ने इस भरोसे का कत्ल कर दिया . कश्मीर की समस्या के पीछे असली वजह लॉर्ड माउंटबेटन की वो नीतियां थीं... जिन पर पंडित नेहरू काम करते गए. कश्मीर पर दी गई लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह.. को पंडित नेहरू मानते चले गए . और यहीं से कश्मीर की समस्या लगातार उलझती चली गई.

अगर हम इस बात पर गौर करें कि कश्मीर की समस्या क्यों लगातार उलझती गई तो इसके लिए तत्कालीन भारत सरकार के तीन प्रमुख फैसले ज़िम्मेदार थे . पहला गलत फैसला... वर्ष 1947 में जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो भारत ने कश्मीर की रक्षा के लिए सही समय पर सेना को नहीं भेजा . दूसरा गलत फैसला... भारत कश्मीर के मुद्दे को खुद अपनी तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गया और तीसरा गलत फैसला था... कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के लिए तैयार हो जाना और उसका ऐलान करना.

ये तीनों गलत फैसले तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लिए थे . लेकिन इन तीनों गलत फैसलों के पीछे जो सलाह थी, वो भारत के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की थी . 

समझने वाली बात ये है कि ब्रिटेन का हित इसी में था कि कश्मीर के मुद्दे पर.. भारत और पाकिस्तान हमेशा झगड़ते रहें. और लॉर्ड माउंटबेटन ने ब्रिटेन के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद को उलझाने में कोई कमी नहीं छोड़ी. इस तरह अगर देखा जाए तो कश्मीर समस्या के सबसे बड़े खलनायक लॉर्ड माउंटबेटन हैं . 

दुर्भाग्य की बात ये है कि उस वक्त पंडित जवाहर लाल नेहरू भी इस बात को समझ नहीं सके . उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन पर बहुत आसानी से भरोसा कर लिया . भारत के गवर्नर जनरल के पद पर रहते हुए भी लॉर्ड माउंटबेटन, ब्रिटेन की सरकार के संपर्क में थे .पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक और बड़ी गलती की. वो लॉर्ड माउंटबेटन को भारत की रक्षा समिति का चेयरमैन बनाने के लिए भी सहमत हो गए. ज़रा सोचिए ये कितनी हैरानी की बात है कि उस वक्त भारत की रक्षा के लिए प्रमुख ज़िम्मेदारी किसी भारतीय की नहीं बल्कि एक अंग्रेज़ की थी.

ऐसा नहीं कि उस वक्त भारत की रक्षा समिति का प्रमुख होने के लिए योग्य लोग नहीं थे . भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल भी इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा सकते थे . आज़ाद भारत के दूसरे और एकमात्र गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी इस भूमिका को निभा सकते थे . लेकिन ये ज़िम्मेदारी लॉर्ड माउंटबेटन को सौंप दी गई . 

22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के कबायली हमलावरों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया . पाकिस्तान के हमलावर ना सिर्फ़ लगातार कश्मीर की रियासत पर कब्ज़ा करते हुए आगे बढ़ रहे थे बल्कि वहां मानव अधिकारों का उल्लंघन भी कर रहे थे . कश्मीर के लोगों का नरसंहार किया जा रहा था और बलात्कार जैसी घटनाएं भी हो रही थीं . तब कश्मीर की समस्या को हल करने की मुख्य ज़िम्मेदारी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने खुद ली थी . लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि उस वक्त इन घटनाओं के बाद भी दिल्ली में बैठी सरकार का दिल नहीं पसीजा . 

तब इस बात का इंत़ज़ार किया गया कि कश्मीर के महाराजा हरि सिंह, दिल्ली से मदद मांगेंगे . इसमें गलती महाराजा हरि सिंह की भी है कि उन्होंने मदद मांगने में देर की . दुख की बात ये है कि अपनी सलाह के माध्यम से लॉर्ड माउंटबेटन सीधे-सीधे भारत की नीतियों में दखल दे रहे थे . एक संवैधानिक प्रमुख का काम सरकार की नीतियों में दखल देना नहीं होता है . लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन ने इस मर्यादा का पालन नहीं किया. विदेश नीति और इतिहास के कई जानकार ये कहते हैं कि जब भारत सरकार ने कश्मीर में सेना भेजने की चर्चा शुरू की . तब भी लॉर्ड माउंटबेटन ने कश्मीर में सेना भेजने का विरोध किया था. 

कुछ लोग ये भी कहते हैं कि अगर भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ में नहीं जाता तो पाकिस्तान भी यही फैसला ले सकता था . लेकिन ऐसे लोग ये भूल जाते हैं कि पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया था . और ये बात पूरी दुनिया जानती थी, इसीलिए कश्मीर में पाकिस्तान का पक्ष पहले से ही बहुत कमज़ोर था . लेकिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जाने का फैसला करके एक तरह से खुद ही कश्मीर को विवादित मान लिया. और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. इसका पूरा फायदा पाकिस्तान ने उठाया और वो आज भी इसका फायदा उठा रहा है . 

पंडित नेहरू, लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर लगातार गलतियां करते रहे . 2 नवंबर 1947 को All India Radio पर पंडित नेहरू ने कश्मीर में जनमत संग्रह की घोषणा कर दी . उन्होंने कहा था... "हम कश्मीर में अपने सैनिकों का उपयोग करने का कोई इरादा नहीं रखते हैं, अब आक्रमण का खतरा नहीं है . हमने घोषणा की है कि कश्मीर के लोगों का भाग्य कश्मीर के लोगों द्वारा ही तय किया जा सकता है ... हम संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था के तहत जनमत संग्रह करने के लिए तैयार हैं"

ये फैसला भी उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर ही लिया था . कई किताबों में इतिहासकारों और विद्वानों ने ये कहा है कि भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा नहीं था . उन्हें लगता था कि संय़ुक्त राष्ट्र में ये मामला और उलझ जाएगा . लेकिन पंडित नेहरू ने लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह को ज़्यादा महत्व दिया. 

ब्रिटिश इतिहासकार और विद्वान Victoria शोफील्ड ने अपनी किताब... Kashmir in Conflict में इसी बारे में एक बहुत बड़ी बात लिखी थी . उन्होंने लिखा कि पहली बार लॉर्ड माउंटबेटन ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने की सलाह, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्ना को दी थी . लॉर्ड माउंटबेटन ने 1 नवंबर 1947 को मुहम्मद अली जिन्ना से मुलाकात में उन्हें ये सुझाव दिया था . और संयोग देखिए कि 2 नवंबर 1947 को पंडित नेहरू ने All India Radio पर कश्मीर में जनमत संग्रह का ऐलान कर दिया था . 

संयुक्त राष्ट्र संघ में भी जिस प्रतिनिधि मंडल ने भारत का पक्ष रखा वो पाकिस्तान के प्रतिनिधि मंडल के मुकाबले बहुत कमज़ोर था . संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रतिनिधि ज़फरुल्ला खान ने पाकिस्तान का पक्ष ज़ोरदार तरीके से रखा जिसका सिक्योरिटी काउंसिल पर असर पड़ा. 

जनवरी 1948 में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे पर बहस हुई थी. और जानकार ये भी बताते हैं कि पाकिस्तान के पास भारत से बेहतर टीम थी. पाकिस्तान का नेतृत्व पाकिस्तान के विदेश मंत्री ज़फरुल्ला ख़ान कर रहे थे. ज़फरुल्ला ख़ान अनुभवी व्यक्ति थे. और आज़ादी से पहले वो League of Nations में भारत का प्रतिनिधित्व करते थे. लेकिन बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री बने .

ज़फरुल्ला ख़ान ने सुरक्षा परिषद में 5 घंटे तक अपनी बात रखी थी. और कश्मीर में पाकिस्तान के आक्रमण को.... भारत और पाकिस्तान की आपसी समस्या साबित करने की कोशिश की थी. उन्होंने अपनी दलील में ये भी कहा था कि पाकिस्तान, कश्मीरियों के ऊपर डोगरा शासन के ख़िलाफ है. सुरक्षा परिषद में ब्रिटेन और अमेरिका के प्रतिनिधि भी पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे. 

अब ये देखिए कि इसका नतीजा क्या हुआ... भारत, संयुक्त राष्ट्र में पीड़ित बनकर गया था, लेकिन वहां उसे आरोपी साबित करने की कोशिश की गई. भारतीय टीम का नेतृत्व गोपालस्वामी अयंगर कर रहे थे. जो भारत के रेल मंत्री थे. और जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री भी रह चुके थे. उस दौर में जम्मू-कश्मीर में भी अलग प्रधानमंत्री का पद होता था.

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की तरफ से एक जांच कमेटी बनाई गई. अप्रैल 1948 में प्रस्ताव पास हुआ. तब UN Resolution में ये कहा गया कि कश्मीर से पाकिस्तान अपनी सेना और कबायली हमलावरों को हटाएगा. और भारत भी अपनी सैनिकों की संख्या को कम करेगा. पाकिस्तान ने इस बात पर भी स्वीकृति जताई थी कि वो कश्मीर से अपनी सेना को वापस बुलाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. प्रस्ताव का दूसरा बिंदु ये था कि इसके बाद जनमत संग्रह की प्रक्रिया शुरू होगी. 

लेकिन पाकिस्तान का कश्मीर के एक हिस्से पर कब्ज़ा आज भी बना हुआ है, जिसे हम Pakistan Occupied Kashmir कहते हैं. इसलिए पाकिस्तान का दावा हर तरह से गलत है.संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव के मुताबिक जम्मू कश्मीर में दोनों देशों की तरफ से सीज़फायर होगा. लेकिन पाकिस्तान की तरफ से इस सीज़फायर का उल्लंघन अभी भी होता रहता है. 

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