ZEE जानकारी: बुज़ुर्गों को सम्मान देने के लिए असम की विधानसभा में 'PRANAM' बिल पास
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ZEE जानकारी: बुज़ुर्गों को सम्मान देने के लिए असम की विधानसभा में 'PRANAM' बिल पास

ZEE जानकारी: बुज़ुर्गों को सम्मान देने के लिए असम की विधानसभा में 'PRANAM' बिल पास

आप और हम एक परिवार की तरह हैं . इसीलिए DNA में हमारी कोशिश ये रहती है कि हम आपके साथ कुछ विषयों पर खुलकर बात करें. ऐसा ही एक विषय है बुज़ुर्ग माता-पिता का सम्मान न करना. हमने भारत में बुजुर्गों के हालात पर बहुत बार विश्लेषण किया है. और हमें बार बार इस विषय को आपके सामने रखने की ज़रूरत महसूस होती है. क्योंकि सोशल मीडिया के इस युग में Like और Retweet करने वाले लोग तो बहुत हैं.. लेकिन बुजुर्गों के साथ बैठकर बात करने वाले और उनका ख्याल रखने वाले लोग बहुत कम हैं. आज पूरा ज़माना Online है.. लेकिन हमारे घरेलू रिश्ते Offline हो गये हैं. भारत में बुज़ुर्गों की इस तस्वीर को बदलने की ज़िम्मेदारी असम की सरकार ने उठाई है.  असम में ऐसा कानून आ रहा है, जो राज्य के बुजुर्गों के लिए बुढ़ापे की लाठी बन सकता है. 

बुज़ुर्गों को सम्मान देने के लिए असम की विधानसभा में एक बिल पास हुआ है, जिसका नाम है PRANAM यानी Parents Responsibility and Norms for Accountability and Monitoring Bill इस बिल में प्रावधान है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपने बुज़ुर्ग माता-पिता का ख्याल नहीं रखता है, तो सरकार उस कर्मचारी की 10% Salary काट सकती है. इसी तरह से अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपने दिव्यांग भाई-बहनों का ध्यान नहीं रखता है तो उसकी 5% Salary कट सकती है. तनख्वाह से काटा गया पैसा बुजुर्ग माता-पिता और दिव्यांग भाई-बहनों के बैंक खाते में जमा कराया जाएगा. 

असम सरकार जल्द ही प्राइवेट और public sector undertakings के कर्मचारियों के लिए भी ऐसा ही बिल लाने वाली है. ये असम सरकार की बहुत अच्छी पहल है. जिसकी तारीफ की जानी चाहिए. ऐसा नहीं है कि बुजुर्गों की सुरक्षा और सम्मान के लिए केन्द्र सरकार ने कोई कानून नहीं बनाया है. केन्द्र सरकार ने 2007 में The Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act बनाया था. इस कानून के तहत Maintenance Tribunal में कोई भी बुज़ुर्ग माता-पिता अपने बच्चों के खिलाफ केस करके गुज़ारा भत्ता मांग सकते हैं.इस कानून के तहत अधिकतम 10 हज़ार रुपये तक का गुज़ारा भत्ता दिया जा सकता है. लेकिन इस कानून का फायदा बुजुर्ग लोगों को मिल नहीं पा रहा है. क्योंकि माता-पिता कभी भी अपने बच्चों के खिलाफ केस नहीं करते हैं. बुढ़ापे में बच्चे चाहे अपने माता-पिता को छोड़ दें लेकिन माता-पिता कभी भी बच्चों का बुरा नहीं चाहते. इसीलिए ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों पर केस नहीं करते हैं.

वैसे भी इस कानून में बहुत सी खामियां हैं. कोई बुज़ुर्ग अगर अपने बच्चों के खिलाफ Case File भी करता है तो फैसला आने में बहुत देर लगती है. इस दौरान बुज़ुर्गों का शोषण किया जाता है. अगर बच्चे अपने माता-पिता को गुज़ारा भत्ता देना शुरू भी करते हैं, तो कुछ दिन के बाद ही ये मदद.. किसी ना किसी बहाने से बंद हो जाती है. और इस दौरान मां-बाप का शोषण होता रहता है.इस समस्या का एक दूसरा पहलू ये भी है कि भारत में बेरोज़गारी बहुत ज्यादा है. और बहुत से लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है... उनके लिए अपना घर चलाना भी मुश्किल होता है.

लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप अपने बुज़ुर्ग माता-पिता को ज़माने की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दें. बहुत से लोगों को ये ख़बर नीरस और बोरियत से भरी हुई लग सकती है.. लेकिन इस DNA टेस्ट को हम समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी के तौर पर ले रहे हैं... हम चाहते हैं कि बड़े-बुज़ुर्गों के साथ अच्छा व्यवहार हो और भारत में बुढ़ापे को नर्क जैसा ना कहा जाए. चाहे आप.. अपने माता-पिता के साथ रहते हो..या उनसे अलग रहते हों... आपको ये विश्लेषण ज़रूर देखना चाहिए. ये रिपोर्ट देखने के बाद अपने मां-बाप के प्रति आपका नज़रिया.. पहले के मुकाबले स्वच्छ हो जाएगा. 

किसी भी व्यक्ति से जबरदस्ती मां-बाप की इज्जत नहीं करवाई जा सकती. माता-पिता की इज्जत करना सिर्फ संस्कारों का ही नहीं बल्कि चरित्र का भी विषय है. लेकिन कुछ लोग इसे नहीं समझते हैं. अभी देश की 9% जनसंख्या 60 साल से ज्यादा उम्र की है. हालांकि ये Percentage... 2050 तक 19% और इस सदी के अंत तक 34% हो जाएगा. यानी आने वाले वर्षों में भारत में बुज़ुर्गों की संख्या बढ़ती जाएगी.  इसलिए भारत को अपने बुजुर्गों को सम्मान दिलाने वाली नीतियां और कानून बनाने होंगे. जो लोग अपने बुज़ुर्ग माता-पिता का सम्मान नहीं करते, ऐसे सभी लोगों का एक इलाज असम की सरकार ने खोज लिया है. हमें लगता है कि ऐसे कानून पूरे देश में लागू होने चाहिएं. और हमें अपने देश के बुज़ुर्गों के लिए ऐसी नीतियां बनानी चाहिएं ताकि वो उम्र बढ़ने के बावजूद समाज की मुख्यधारा में बने रहें.

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