ZEE जानकारीः किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया है
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ZEE जानकारीः किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया है

अमेरिका में आयुर्वेद की मदद से कैंसर के इलाज पर 8 हज़ार 484 शोध किए गए हैं. इतना ही नहीं अमेरिका में करीब 3 लाख लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से ही जीवन जी रहे हैं.

ZEE जानकारीः किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया है

सोने की महिमा तो आपने देख ली, लेकिन आयुर्वेद के बिना धनतेरस का पर्व अधूरा है. क्योंकि भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है. आज आपको ये भी समझना चाहिए कि आयुर्वेद का ज्ञान हमारे भारत की धऱती से पूरी दुनिया में किस तरह फैला . आज हमने एक मशहूर पुस्तक पढ़ी, जिसका नाम है - Ayurveda: The Indian Art of Natural Medicine and Life Extension. इस किताब के Page Number 26 पर कुछ ज़रूरी बातें लिखी हैं . 

आज से करीब ढाई हजार वर्ष पहले आयुर्वेद का ज्ञान बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से दुनिया भर में फैला . दुनिया में जहां-जहां भी बौद्ध धर्म फैला वहां लोगों को आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी मिली . और सबसे पहले Central Asia, तिब्बत, श्रीलंका, चीन, जापान और इंडोनेशिया में बौद्ध धर्म के जरिए आयुर्वेद का ज्ञान पहुंचा .आज के दौर में पूरी दुनिया आयुर्वेद को अपनाना चाहती है . अमेरिका में भी आयुर्वेद की लोकप्रियता बहुत बढ़ चुकी है . 

2016 में अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया था . US department of Health ने भारत के आयुर्वेदिक संस्थानों से हाथ मिलाया था ताकि आयुर्वेदिक तरीके से कैंसर के इलाज की संभावनाएं तलाशी जा सकें . अमेरिका के National Institutes of Health ने अदरक की एक विशेष प्रजाति द्वारा कैंसर के इलाज पर 3 हज़ार 574 रिसर्च पेपर तैयार किए हैं. NIH ने हल्दी से कैंसर के इलाज पर भी 1 हज़ार 161 Research Papers तैयार किए गए हैं. अमेरिका ने अदरक के फायदों पर भी 2 हज़ार 500 Studies की हैं. अमेरिका ने सौंफ के फायदों पर 668 पेपर्स तैयार किए हैं और जीरे के फायदे पर 582 तरह के शोध किए हैं.

अमेरिका में आयुर्वेद की मदद से कैंसर के इलाज पर 8 हज़ार 484 शोध किए गए हैं. इतना ही नहीं अमेरिका में करीब 3 लाख लोग आयुर्वेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, और आयुर्वेदिक तरीके से ही जीवन जी रहे हैं.
पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक Products और दवाओं से जुड़ा बाज़ार 6 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. 2050 तक आयुर्वेद का बाज़ार 5 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 365 लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा. और आपको य़े जानकर बहुत हैरानी होगी और दुख होगा कि इस वक्त आयुर्वेद का सबसे बड़ा बाज़ार.. भारत नहीं.. बल्कि अमेरिका है. अमेरिका पूरी दुनिया के 41 प्रतिशत आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करता है.

इसके बाद यूरोप का नंबर आता है. जो पूरी दुनिया के 20 प्रतिशत आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करता है. जड़ी बूटियों पर आधारित दवाओं और Products के निर्यात के मामले में भारत, चीन से भी पीछे है. चीन पूरी दुनिया में 13 प्रतिशत Herbal Products का निर्यात करता है. जबकि आयुर्वेद की जन्म भूमि भारत से सिर्फ 2.5 प्रतिशत Herbal Products ही दुनिया के बाज़ारों में पहुंचते हैं.

आज हमने आयुर्वेद पर दुनिया की कई अहम किताबों का अध्ययन किया है . इस दौरान हमें पता चला कि किस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश के प्राचीन ज्ञान पर अधिकार जमा लिया. भारत के पुराने शोध को आगे बढ़ाकर अंग्रेज़ों ने दुनिया भर में नाम कमाया और हमारे देश के कई ऋषियों और आचार्यों का Credit लूट लिया.

19वीं शताब्दी में Joseph कैरपुए, England के एक Surgeon थे . Medical Science की History में कैरपुए को इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि उन्होंने वर्ष 1815 में England में पहली बार राइनो-plasty की थी .राइनो-plasty, एक तरह की Plastic surgery है जिसकी मदद से नाक को जोड़ा जाता है या फिर उसके आकार में बदलाव किया जाता है. बहुत से लोगों को ये जानकार हैरानी होगी कि कैरपुए ने Plastic Surgery का ये तरीका भारत से सीखा था . हमारे देश की विरासत को नकारने वाले और दुनिया के सारे ज्ञान का श्रेय पश्चिमी देशों को देने वाले बुद्धिजीवी इस पर सवाल उठाएंगे. लेकिन ऐसे लोगों को Sir John Walton, और Stephen Lock की किताब The Oxford Medical Companion को जरूर पढ़ना चाहिए .

इस किताब के Page Number 771 पर लिखा है कि ब्रिटेन के Surgeon Doctor Joseph कैरपुए ने भारत की एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद Plastic Surgery पर 20 वर्ष तक Research किया . Research के दौरान हमने एक और किताब पढ़ी.. जिसका नाम है - Plastic Surgery of Head and Neck... इस किताब के Page Number 214 पर लिखा है कि वर्ष 1815 में कैरपुए ने भारत के तरीके से ही नाक की Surgery की थी.

अपने Research के दौरान हमें कई और दिलचस्प जानकारियां मिलीं . Doctor B R Suhas ने अपनी एक किताब में लिखा है कि वर्ष 1782 में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच... Anglo-मैसूर युद्ध हुआ . इस किताब के मुताबिक टीपू सुल्तान ने कुछ अंग्रेज सिपाहियों को युद्ध बंदी बना लिया. टीपू सुल्तान ने इन सिपाहियों की नाक और एक हाथ कटवा दिए. इसके बाद इन अंग्रेज सिपाहियों ने एक भारतीय सर्जन से मदद ली. इस भारतीय सर्जन ने Surgery करके इन अंग्रेज़ सिपाहियों की नाक को जोड़ दिया.

Surgery के दौरान दो British Surgeons, Thomas Crusoe और James Findley ने इस पूरी प्रक्रिया को बहुत से ध्यान से देखा . इन्होंने पूरी Surgery के चित्र बनाए और पूरी प्रक्रिया को नोट किया .Madras Gazette में भी इस Special Surgery पर एक Article छापा गया था. इसके बाद एक British Surgeon Joseph कैरपुए भारत आए . वो 20 वर्ष तक भारत में ही रहे और उन्होंने Plastic Surgery के बहुत सारे तरीके सीखे वर्ष 1815 में उन्होंने England में पहली बार सफल Plastic Surgery की वैसे भारत के महान आचार्य सु-श्रुत को दुनिया का पहला Surgeon कहा जाता है अपने ग्रंथ सु-श्रुत संहिता में उन्होंने Plastic Surgery का ज़िक्र किया है. Plastic Surgery को उस वक्त शल्य चिकित्सा कहा जाता था . आचार्य सु-श्रुत का जन्म कब हुआ ? इस पर मतभेद है लेकिन ये कह सकते हैं कि करीब 2,500 वर्ष पहले उन्होंने Plastic Surgery की शुरुआत की थी . 

पश्चिमी देशों ने हमेशा हमारे देश को सपेरों और जादूगरों का देश कहकर बदनाम करने की कोशिश की . उस दौर में उन्होंने भारत के योगदान को स्वीकार नहीं किया . लेकिन अब पूरी दुनिया हमारे देश की बौद्धिक क्षमता का लोहा मानती है. अब आने वाले वक़्त में विश्व गुरू बनने के लिए हमे अपनी इन प्राचीन शक्तियों को पहचानना होगा और इन्हें पूरा सम्मान देना होगा.

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