Zee जानकारी : कर्जवसूली के चीनी फॉर्मूले को भारत को भी अपनाना चाहिए
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Zee जानकारी : कर्जवसूली के चीनी फॉर्मूले को भारत को भी अपनाना चाहिए

अब हम कर्ज़वसूली के एक ऐसे फॉर्मूले का विश्लेषण करेंगे जो है तो मेड इन चाइना है, लेकिन इसका इस्तेमाल भारत में भी किया जा सकता है। आपने अक्सर देखा होगा कि भारत के बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्ज़ ले लेते हैं और फिर उसे कभी नहीं लौटाते। कुछ कर्ज़दार उद्योगपति तो देश छोड़कर भी भाग जाते हैं। लेकिन चीन में ऐसा करना मुमकिन नहीं है। चीन के सुप्रीम कोर्ट ने करीब 67 लाख 30 हज़ार लोगों को डिफाल्टर घोषित कर दिया है। लेकिन ये खबर यहीं खत्म नहीं होती, असली खबर ये है कि इन लोगों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। डिफाल्टर घोषित किए गए लोगों में से 61 लाख 50 हज़ार लोग हवाई जहाज़ के टिकट नहीं खरीद पाएंगे। जबकि 22 लाख 20 हज़ार लोग ऐसे हैं जो बुलेट ट्रेन से सफर नहीं कर पाएंगे। चीन में बुलेट ट्रेन का किराया अक्सर हवाई जहाज़ के मुकाबले ज्यादा होता है। 

Zee जानकारी : कर्जवसूली के चीनी फॉर्मूले को भारत को भी अपनाना चाहिए

नई दिल्ली : अब हम कर्ज़वसूली के एक ऐसे फॉर्मूले का विश्लेषण करेंगे जो है तो मेड इन चाइना है, लेकिन इसका इस्तेमाल भारत में भी किया जा सकता है। आपने अक्सर देखा होगा कि भारत के बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्ज़ ले लेते हैं और फिर उसे कभी नहीं लौटाते। कुछ कर्ज़दार उद्योगपति तो देश छोड़कर भी भाग जाते हैं। लेकिन चीन में ऐसा करना मुमकिन नहीं है। चीन के सुप्रीम कोर्ट ने करीब 67 लाख 30 हज़ार लोगों को डिफाल्टर घोषित कर दिया है। लेकिन ये खबर यहीं खत्म नहीं होती, असली खबर ये है कि इन लोगों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। डिफाल्टर घोषित किए गए लोगों में से 61 लाख 50 हज़ार लोग हवाई जहाज़ के टिकट नहीं खरीद पाएंगे। जबकि 22 लाख 20 हज़ार लोग ऐसे हैं जो बुलेट ट्रेन से सफर नहीं कर पाएंगे। चीन में बुलेट ट्रेन का किराया अक्सर हवाई जहाज़ के मुकाबले ज्यादा होता है। 

चीन का सुप्रीम कोर्ट दिसंबर महीने से लगातार रेलवे और एयरलाइंस कंपनियों के साथ इस संबंध में बातचीत कर रहा था। बातचीत के बाद तय किया गया कि डिफाल्टर्स को बुलेट ट्रेन्स और हवाई जहाज़ों में सफर करने से रोका जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने डिफाल्टर्स के पासपोर्ट की लिस्ट भी एयरलाइंस कंपनियों को सौंप दी है। पहले डिफाल्टर्स आईडी कार्ड की जगह पासपोर्ट दिखाकर टिकट हासिल कर लिया करते थे लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर पाएंगे। 

इसके अलावा बैंकों का कर्ज़ ना चुकाने वाले 71 हज़ार लोग ऐसे हैं। जो नौकरी भी नहीं कर पाएंगे। इनमें से ज्यादातर सरकारी कर्मचारी हैं। इतना ही नहीं कर्ज़ ना चुकाने वालों को प्रमोशन भी नहीं दिया जाएगा, इसके अलावा इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल बैंक ऑफ चाइना ने 5 लाख 50 हज़ार डिफाल्टर्स को क्रेडिट कार्ड्स और लोन देने से भी मना कर दिया है। चीन के सुप्रीम कोर्ट ने जिन कर्ज़दारों को ब्लैक लिस्ट किया है उनमें, राजनेता, सरकारी कर्मचारी, स्थानीय निकायों में काम करने वाले कर्मचारी और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता भी शामिल हैं। 

यानी चीन ने बिना किसी भेदभाव के डिफाल्टर्स के खिलाफ कार्रवाई की है। चाहे वो राजनेता हो, सरकारी अफसर या आम आदमी लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में अमीर उद्योगपति आसानी से बिना कर्ज़ चुकाए देश छोड़कर चले जाते हैं और फिर कभी वापस नहीं आते। अगर भारत में भी चीन जैसा सिस्टम अपनाया गया होता तो विजय माल्या जैसे उद्योगपति बैंकों से लिए गये 9 हज़ार करोड़ रुपये चुकाए बगैर देश से बाहर नहीं जा पाते। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत में पूरा सिस्टम अमीरों की मदद करने में लग जाता है। भारत में जब कोई गरीब आदमी कर्ज़ लेता है तो वो उसे चुकाने के चक्कर में और गरीब हो जाता है। लेकिन जब कोई अमीर कर्ज़ लेता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि वो पहले की तरह एशो-आराम की जिंदगी जीता है।

अमीर उद्योगपित अक्सर सरकारी बैंकों से कर्ज़ लेते हैं और फिर डिफाल्टर्स हो जाते हैं। सरकारी बैंक कर्ज़ नहीं वसूल पाते तो वो सरकार के पास जाते हैं और बेल आउट पैकेज की मांग करते हैं। फिर सरकार जनता के टैक्स के पैसे से ही इन सरकारी बैंकों को बेल आउट पैकेज देती है। और ये सिलसिला यू हीं चलता रहता है। लेकिन आम आदमी जब कर्ज़ लेता तो बैंक उससे कर्ज़ वसूलने का हर तरीका अपनाते हैं। लेकिन अमीर लोगों के मामले में ये तत्परता नहीं दिखाई जाती है।

Capitaline data नामक रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2016 तक 42 बैंको की एनपीए यानी नॉन परफार्मिंग एसेट्स 7 लाख 32 हज़ार करोड़ रुपये थी। NPA लोन के रूप में दी गई ऐसी रकम होती है जिस पर बैंकों को ब्याज मिलना बंद हो जाता है। यानी कर्ज़दार ना तो बैंको को ब्याज़ चुकाते हैं और ना ही मूल धन वापस करते हैं। इनमें से 88 प्रतिशत NPA सरकारी बैंकों के हिस्से में है। यानी सरकारी बैंक अक्सर कर्ज़ वसूलने में नाकाम रहते हैं। एक अंग्रेज़ी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी बैंकों में 2 हज़ार 71 अकाउंट्स ऐसे हैं। जिनपर 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज़ बकाया है। इन 2 हज़ार 71 खाता धारकों से बैंकों ने करीब 3 लाख 88 हज़ार करोड़ रुपये वसूलने है। लेकिन ऐसा हो पाएगा इसकी उम्मीद बेहद कम है।

अब आप सोच कर देखिए अगर भारत में बड़े कर्ज़दारों को चीन की तरह रोका जाए तो कितना बदलाव आ सकता है। भारत में भी बड़े कर्ज़दारों को हवाई जहाज़ से यात्रा करने से रोका जाना चाहिए यहां तक कि इन लोगों को होटलों में भी रुकने नहीं देना चाहिए, अगर बड़े कर्ज़दार ऊंचे पदों पर सरकारी नौकरियां कर रहे हैं तो उनके प्रमोशन रोक दिए जाने चाहिए, ऐसे लोगों के पासपोर्ट भी जब्त कर लिए जाने चाहिए जो बैंकों का पैसा नहीं लौटा रहे हैं। लेकिन भारत में अमीर लोगों पर कोई हाथ नहीं डालता है। जबकि किसानों और छोटे कर्ज़दारों को जमकर परेशान किया जाता है। हमें लगता है कि कर्ज़ वसूली वाले इस Chinese फॉर्मूले को भारत में भी अपनाने का वक्त आ गया है। ताकि अमीरों की गर्दन पकड़ी जा सके और गरीबों को राहत दिलाई जा सके।

 

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