Zee जानकारी : क्या है सिंधु जल समझौता, इस संधि को तोड़ने में भारत के आगे क्या है मजबूरी?
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Zee जानकारी : क्या है सिंधु जल समझौता, इस संधि को तोड़ने में भारत के आगे क्या है मजबूरी?

1947 में दोनों देशों के बीच ज़मीन का बंटवारा हुआ था और 1960 में दोनों देशों के बीच पानी का बंटवारा हुआ। इसी बंटवारे को आज सिंधु नदी जल समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के बारे में आपने पिछले कई दिनों में कई खबरें सुनी होंगी। उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद कई लोग, कई टीवी चैनल्स और अखबार ये दावा कर रहे हैं कि भारत पाकिस्तान के साथ अपनी 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि यानी इंडस वाटर ट्रीटी तोड़ सकता है। बहुत सारे लोगों को लग रहा है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने का ये एक अच्छा तरीका है। 

Zee जानकारी : क्या है सिंधु जल समझौता, इस संधि को तोड़ने में भारत के आगे क्या है मजबूरी?

नई दिल्ली : 1947 में दोनों देशों के बीच ज़मीन का बंटवारा हुआ था और 1960 में दोनों देशों के बीच पानी का बंटवारा हुआ। इसी बंटवारे को आज सिंधु नदी जल समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के बारे में आपने पिछले कई दिनों में कई खबरें सुनी होंगी। उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद कई लोग, कई टीवी चैनल्स और अखबार ये दावा कर रहे हैं कि भारत पाकिस्तान के साथ अपनी 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि यानी इंडस वाटर ट्रीटी तोड़ सकता है। बहुत सारे लोगों को लग रहा है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने का ये एक अच्छा तरीका है। 

कई लोग ऐसा प्रचार कर रहे हैं कि समझौता तोड़ लेने से पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा रेगिस्तान में बदल जाएगा और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खत्म हो जाएगी। यानी भारत, बिना युद्ध लड़े ही पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है। और ये दावे एक तथ्यात्मक विश्लेषण की मांग करते हैं हमारे बहुत सारे दर्शक ये जानना चाहते हैं कि आखिर सच क्या है। क्या वाकई सिंधु जल समझौता तोड़कर भारत पाकिस्तान को सबक सिखा सकता है? 

लेकिन इस विश्लेषण की शुरूआत से पहले हम आपको ये बताना चाहते हैं कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक मीटिंग में क्या तय किया गया है। सिंधु जल समझौते को लेकर हुई इस बैठक में फैसला किया गया है कि भारत बिना जल समझौता तोड़े पाकिस्तान को सबक सिखाएगा।
इसके लिए भारत समझौते के तहत अपने अधिकारों का भरपूर इस्तेमाल करेगा, 1960 में हुए समझौते में भारत को पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों के पानी का इस्तेमाल करने की इजाजत मिली थी। भारत सीमित मात्रा में इन नदियों का पानी इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन ये सीमित मात्रा भी पाकिस्तान को असीमित चोट पहुंचा सकती है। 

हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये जानने के लिए सबसे पहले आपको ये समझना होगा कि ये संधि वाटर शेयरिंग यानी पानी को साझा करने से जुड़ी हुई नहीं है। बल्कि ये समझौता पानी के बंटवारे यानी वाटर पार्टीशन पर आधारित है। 

-ये समझौता सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों को भारत और पाकिस्तान के बीच बांटने से जुड़ा हुआ है।
-सिंधु नदी के अलावा, रावी, ब्यास, सतलुज, चेनाब और झेलम नदियां भारत और पाकिस्तान से होकर गुजरती हैं।
-समझौते के मुताबिक इन नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया था। 
-समझौते में रावी, ब्यास और सतुलज को पूर्वी नदियां कहा जाता है जबकि झेलम, सिंधु और चेनाब को पश्चिमी नदियां माना गया।
-सिंधु जल समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों पर भारत का अधिकार है। जबकि पश्चिमी नदियों -यानी सिंधु, चेनाब और झेलम पर पाकिस्तान का अधिकार है।
-समझौते में ये बात भी थी कि भारत बिजली बनाने और कृषि के लिए पश्चिमी नदियों के पानी का इस्तेमाल सीमित मात्रा में कर सकता है।
-वैसे आपको ये भी पता होना चाहिए कि भारत इन 6 नदियों से हासिल होने वाले कुल पानी का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा ही इस्तेमाल करता है, जबकि 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को मिलता है। 
-भारत और पाकिस्तान के बीच इन नदियों के बंटवारे को लेकर विवाद 1947 में ही शुरू हो गया था।
-लेकिन तब भारत और पाकिस्तान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत पाकिस्तान को पानी मिलता रहा।
-1948 में समझौता खत्म होने पर भारत ने पाकिस्तान की तरफ जाने वाली दो नहरों में पानी रोक दिया और पाकिस्तान की 17 लाख एकड़ ज़मीन प्रभावित हो गई।
-भारत ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि पाकिस्तान कश्मीर में लगातार दखल अंदाजी कर रहा था और भारत से युद्ध करने की कोशिश कर रहा था।
-इसके बाद दोनों देशों के बीच एक बार फिर समझौता हुआ और भारत ने पाकिस्तान को नदियों का पानी इस्तेमाल करने दिया।

इस बीच 1951 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिका के एटमिक एनर्जी कमीशन के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत आने का न्योता दिया था। लिलियंथल अमेरिका की कॉलियर्स मैगज़ीन के लिए भारतीय उपमहाद्वीप पर एक लेख लिख रहे थे। डेविड लिलियंथल इस दौरान पाकिस्तान भी गए और वापस अमेरिका लौटकर उन्होंने सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा। ये लेख उस वक्त विश्व बैंक के प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त रॉबर्ट ब्लैक ने भी पढ़ा और ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया। इसके बाद दोनो पक्षों के बीच बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया।

-शुरुआत में विश्व बैंक सिर्फ सलाहकार की भूमिका निभा रहा था।
-लेकिन पाकिस्तान के ढीठ रवैये की वजह से बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
-1954 में विश्व बैंक ने इस मामले में सीधा दखल दिया और पहली बार ये सुझाव दिया कि पूर्वी नदियों का इस्तेमाल भारत करेगा और पश्चिमी नदियों पर पाकिस्तान का हक होगा।
-भारत इस प्रस्ताव पर फौरन राज़ी हो गया था, लेकिन हमेशा की तरह पाकिस्तान नहीं माना।
-लेकिन करीब 6 वर्षों के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत और पाकिस्तान ने सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।
-भारत के जिन इलाकों से ये 6 नदियां होकर गुजरती हैं, वो इलाके पाकिस्तानी इलाकों के मुकाबले ऊंचाई पर हैं। ऐसे में पाकिस्तान को हमेशा ये डर सताता है कि भारत पाकिस्तान का पानी रोक सकता है। 
-लेकिन करीब 56 वर्षों में कभी भी भारत ने इस समझौते को तोड़ने के संकेत नहीं दिए। यहां तक कि 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के दौरान भी पाकिस्तान को उसके हिस्से का पानी मिलता रहा।
-भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस समझौते को गुड विल जेस्चर माना था। भारत के थिंक टैंक को यकीन था कि पाकिस्तान को भरपूर पानी मिलने पर भारत के साथ उसके संबंध बेहतर होंगे और वो कश्मीर पर अपना दावा भी छोड़ सकता है।
-लेकिन इस ऐतिहासिक समझौते के सिर्फ 5 वर्षों के बाद, पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़कर भारत को गलत साबित कर दिया था।

सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये नदी तिब्बत से निकलती है और कराची और गुजरात के पास अरब सागर में जाकर मिल जाती है। इस नदी की कुल लंबाई 2880 किलोमीटर है। इसमें से 47 प्रतिशत पाकिस्तान, 39 प्रतिशत भारत 8 प्रतिशत चीन और करीब 6 प्रतिशत अफगानिस्तान में है। एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं। यानी सिंधु नदी इन 30 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़ी है। 

-जो लोग इस समझौते को तोड़ने की बातें कर रहे हैं उन्हें भारत की मजबूरियों के बारे में भी पता होना चाहिए।
-सिंधु जल समझौता दो देशों के बीच हुआ एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिस पर विश्व बैंक के भी दस्तख्त हैं।
-ये दुनिया का इकलौता ऐसा जल समझौता भी है जिसपर दोनों देशों के अलावा वर्ल्ड बैंक के भी हस्ताक्षर हैं। यानी वर्ल्ड बैंक इस समझौते में एक पार्टी है।
-इस समझौते को तोड़ने का मतलब होगा वर्ल्ड बैंक को नाराज़ करना। जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहानुभूति पाकिस्तान की तरफ चली जाएगी।

ऐसा नहीं है कि सिंधु जल समझौते को रद्द करते ही पाकिस्तान को पानी की सप्लाई बंद हो जाएगी। जिन नदियों को भारत और पाकिस्तान के बीच बांटा गया है उन पर कोई बांध नहीं है। यानी भारत समझौता रद्द कर भी देगा तो वो इस पानी को स्टोर नहीं कर सकता। तकनीकी तौर पर भारत पश्चिमी नदियों के पानी का रुख भी नहीं मोड़ सकता क्योंकि भारत ने ऐसा करने के लिए नहरों का निर्माण नहीं किया है।

हालांकि इस जल समझौते के तहत भारत को पश्चिमी नदियों यानी चेनाब, सिंधु और झेलम के पानी को स्टोर करने का अधिकार है। लेकिन पिछले 55 वर्षों में भारत ने इस पानी को स्टोर करने का कोई इंतज़ाम नहीं किया है। इन नदियों पर बांध बनाने में, पानी को स्टोर करने का इंतज़ाम करने में और पानी का रुख मोड़ने वाली नहरें बनाने में भारत को 10 से 15 साल का वक्त लग सकता है।

और अगर भारत इन नदियों पर बांध बना भी लेगा तो फिर ये बांध और नहरें आतंकवादियों और युद्ध की स्थिति में पाकिस्तानी सेना का टार्गेट बन जाएंगी। जिन्हें नुकसान पहुंचने से जम्मू और कश्मीर में भारी तबाही मच सकती है।

-अंतर्राष्ट्रीय तौर पर भारत को एक रहमदिल और समझदार देश के तौर पर देखा जाता है।
-भारत ने हमेशा सिंधु जल समझौते का पालन किया है। लेकिन पाकिस्तान कई बार इन नदियों पर भारत द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं पर सवाल उठाता रहा है।
-भारत झेलम नदी पर किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट का निर्माण कर रहा है।
-इसी संयंत्र के ठीक नीचे की दिशा में पाकिस्तान भी नीलम–झेलम हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट का निर्माण कर रहा है।
-पाकिस्तान ने भारत के प्रोजेक्ट को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में चुनौती दी थी। लेकिन 2013 में अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए भारत को निर्माण जारी रखने की इजाजत दे दी थी।
-यानी भारत को साफ-सुथरी छवि का हमेशा फायदा मिला है और भारत इसे गंवाना नहीं चाहता है।

हालांकि ये भी सच है कि पाकिस्तान भारत की अनदेखी करते हुए पीओके में नदियों के ऊपर डैम बना रहा है जबकि उसे भारत की हर छोटी बड़ी परियोजना पर आपत्ति हो जाती है। यहां हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि सिंधु नदी और सतलुज नदी का उद्गम तिब्बत में होता है। जिस पर चीन अपना हक जताता है। इसलिए पाकिस्तान में अपने हितों की रक्षा करने के लिए चीन भी इन नदियों का प्रवाह भारत की दिशा में रोक सकता है। इसके अलावा ब्रह्मपुत्र नदी भी चीन से होती हुई भारत में पहुंचती है और चीन ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को भी प्रभावित कर सकता है।

साथ ही भारत के नेपाल और बांग्लादेश के साथ भी कई नदियों को लेकर जल समझौते हैं और भारत का रिकॉर्ड काफी बेहतर रहा है। इसलिए भारत पाकिस्तान के खिलाफ वाटर वार छेड़कर, खुद को बदनाम नहीं करना चाहेगा। वैसे भी कहा जाता है कि किसी को पानी पिलाना पुण्य का काम होता है। यहां तक कि युद्ध के मैदान में मरते हुए दुश्मन से भी पूछ लिया जाता है कि वो पानी पिएगा या नहीं।

कई लोग कह रहे हैं कि भारत सिंधु समझौते को तोड़कर पाकिस्तान का हुक्का पानी बंद कर सकता है। लेकिन सच यही है कि भारत बड़प्पन दिखाते हुए पाकिस्तान को प्यासा नहीं मारेगा, बल्कि कूटनीतिक तौर पर उसका गला सुखा देगा। समझौते के तहत भारत पाकिस्तान के हिस्से वाली पश्चिमी नदियों पर 30 लाख 60 हज़ार एकड़ फीट पानी को स्टोर कर सकता है। और अब भारत बिना समझौता तोड़े पाकिस्तान के हिस्से वाले पानी में कमी ला सकता है।

इतने पानी से भारत की 6 लाख हैक्टेयर ज़मीन पर सिंचाई हो पाएगी और 18 हज़ार मेगावाट बिजली का उत्पादन भी हो सकेगा। जबकि पाकिस्तान को 6 लाख हैक्येटर सिंचाई का नुकसान होगा और बिजली उत्पादन भी गिरेगा। सिंधु नदी पाकिस्तान के लिए कितनी जरूरी है इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ये नदी पाकिस्तान के पंजाब, सिंध पंजाब, सिंध, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंश, पीओके और बलोचिस्तान से होकर गुजरती है यानी पाकिस्तान की कुल 77 प्रतिशत जनता सिंधु नदी के पानी पर ही निर्भर है और इसमें कमी आने का मतलब होगा आतंक के समर्थन में भाषण देने वाले पाकिस्तान के गले का सूख जाना।

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