Zee जानकारी : (लाहौर आत्मघाती हमला) आतंकवाद को जड़ से खत्म करे पाकिस्तान, वर्ना बहुत देर हो जाएगी
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Zee जानकारी : (लाहौर आत्मघाती हमला) आतंकवाद को जड़ से खत्म करे पाकिस्तान, वर्ना बहुत देर हो जाएगी

पाकिस्तान के लाहौऱ शहर की दूरी दिल्ली से 412 किलोमीटर है लेकिन आज पाकिस्तान जिस दर्द से गुजर रहा है उसे दिल्ली में बैठे लोगों के साथ-साथ पूरा भारत महसूस कर रहा है। लाहौर दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। 'लाहौर : पास्ट एंड प्रेजेंट' नाम की पाकिस्तानी किताब में इस बात का जिक्र है कि भगवान राम के बेटे लव ने लाहौर शहर की स्थापना की थी। इसके बाद मुगलों ने इस शहर को अपने तरीके से बसाने की कोशिश की, मुगलों ने लाहौर में बहुत सारे बगीचे बनाए जिसकी वजह से इसे सिटी ऑफ गार्डेन्स यानी बगीचों का शहर भी कहा जाने लगा। 

Zee जानकारी : (लाहौर आत्मघाती हमला) आतंकवाद को जड़ से खत्म करे पाकिस्तान, वर्ना बहुत देर हो जाएगी

नई दिल्ली : पाकिस्तान के लाहौऱ शहर की दूरी दिल्ली से 412 किलोमीटर है लेकिन आज पाकिस्तान जिस दर्द से गुजर रहा है उसे दिल्ली में बैठे लोगों के साथ-साथ पूरा भारत महसूस कर रहा है। लाहौर दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। 'लाहौर : पास्ट एंड प्रेजेंट' नाम की पाकिस्तानी किताब में इस बात का जिक्र है कि भगवान राम के बेटे लव ने लाहौर शहर की स्थापना की थी। इसके बाद मुगलों ने इस शहर को अपने तरीके से बसाने की कोशिश की, मुगलों ने लाहौर में बहुत सारे बगीचे बनाए जिसकी वजह से इसे सिटी ऑफ गार्डेन्स यानी बगीचों का शहर भी कहा जाने लगा। 

लेकिन रविवार शाम लाहौर का एक ऐसा ही हरा भरा बगीचा अचानक खूनी लाल रंग से रंग गया। बच्चों के एक झूले के पास, एक आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोटकों से उड़ा लिया। ईसाइयों के त्यौहार ईस्टर की वजह से लाहौर के गुलशन-ए-इकबाल पार्क में काफी भीड़ थी, बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के लोग भी पार्क में त्योहार और छुट्टी का आनंद ले रहे थे। लेकिन जोरदार धमाके ने इन परिवारों से इनका सबकुछ छीन लिया। हमले में मारे जाने वालों में बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं हैं। इस हमले में 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि करीब 350 लोग घायल हैं। तहरीक-ए-तालिबान से जुड़े आतंकी ग्रुप जमात-उल-अहरर ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। 

जमात-उल-अहरर ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि उसके निशाने पर ईसाई समुदाय के लोग थे। पाकिस्तान में करीब 20 लाख लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। पाकिस्तान में इसाइयों के साथ-साथ हिंदू और सिख धर्म को मानने वाले लोग पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं। ये अल्पसंख्यक अक्सर पाकिस्तान के आतंकियों के निशाने पर रहे हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक कितने असुरक्षित हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर साल पाकिस्तान से कई हिंदू परिवार भारत पलायन कर जाते हैं और वो वापस पाकिस्तान के असुरक्षित माहौल में लौटना नहीं चाहते। 

दुनिया भर के नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आतंकी हमले की निंदा की है।

ऊर्दू लेखक असगर वजाहत का एक मशहूर नाटक है जिसका नाम है 'जिस लाहौर नइ देख्या.. ओ जम्याइ नइ' यानी जिसने लाहौर नहीं देखा उसके जन्म लेने का कोई मतलब नहीं। ये नाटक भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की कहानी पर आधारित है जिसके केंद्र में पाकिस्तान का लाहौर शहर ही है। वही लाहौर पिछले कुछ वक्त से आतंक का शिकार हो रहे लोगों को मरते हुए देख रहा है। पाकिस्तान के आतंकी संगठन पिछले कुछ वक्त से बच्चों को निशाना बना रहे हैं। 16 दिसंबर 2014 को पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला, फिर 20 जनवरी 2016 को पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वा में बाचा खान यूनिवर्सिटी पर हमला और अब पार्क में खेलते छोटे-छोटे बच्चों का खून बहाकर पाकिस्तान के आतंकी बार-बार ये साबित कर रहे हैं कि वो पाकिस्तान की आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद कर देना चाहते हैं।  

मशहूर शायर निदा फाज़ली एक बार पाकिस्तान में अपना मशहूर शेर पढ़ रहे थे। वो शेर मैं यहां दोहराना चाहता हूं-'घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर ले, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए'। इस पर एक कट्टर पाकिस्तानी ने निदा फाज़ली से पूछा कि आप मस्जिद की तुलना बच्चों से कैसे कर सकते हैं तो निदा फाज़ली ने जवाब दिया कि मस्जिद इंसानों ने बनाई है, जबकि बच्चे खुद ऊपर वाले के बनाए हुए हैं। लेकिन पाकिस्तान के बच्चे, आतंकवाद की आग में भस्म हो रहे हैं।

आतंकवाद के ज़रिये भारत को घायल करने की साज़िशें रचने वाला पाकिस्तान आज एक ऐसी मुसीबत में फंस गया है कि अब एक राष्ट्र के रूप में उसका अस्तित्व ही ख़तरे में है। इसलिए एक ज़िम्मेदार पड़ोसी होने के नाते पाकिस्तान को भारत की यही सलाह है कि अगर अपने बच्चों को बचाना है तो आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करना होगा, वर्ना बहुत देर हो जाएगी। 
 
बच्चे कहीं के भी हों, मरते हुए अच्छे नहीं लगते। लेकिन ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को ना तो आतंक की भेंट चढ़ते अपने बच्चों की ज़िन्दगी की फिक्र है और ना ही अपनी ज़मीन से ज़हरीले आतंकवादियों को ख़त्म करने की चाहत है। हमने पाकिस्तान के गुड टेररिज्म और बैड टेररिज्म वाले फॉर्मूले को आसान भाषा में समझाने के लिए काफी गहरा रिसर्च किया है और जो तथ्य हमारे सामने आए हैं वो ना सिर्फ हैरान करने वाले हैं बल्कि बेहद डरावने भी हैं।

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में अभी भी करीब 48 आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। आर्मी पब्लिक स्कूल, बाचा ख़ान यूनिवर्सिटी और अब लाहौर के गुलशन-ए-इकबाल पार्क पर हुए आतंकवादी हमले में शामिल तहरीक-ए-तालिबान नाम का संगठन अफगानिस्तान के तालिबान से अलग होकर साल 2007 में वजूद में आया था।

जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन भारत के अंदर जिस तरह सार्वजनिक जगहों और मिलिट्री बेस को निशाना बनाते हैं ठीक उसी तरह तहरीक-ए-तालिबान, पाकिस्तान में मिलिट्री बेस के साथ साथ स्कूलों और यूनिवर्सिटीज़ को निशाना बनाता है। 2004 से 2013 के बीच पाकिस्तान में शैक्षणिक संस्थानों पर 724 आतंकी हमले किए गए।

ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2003 से जनवरी 2016 तक पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में 59 हज़ार 785 लोग मारे गए जिनमें से 20 हज़ार 892 आम नागरिक थे। लाहौर के गुलशन-ए-इकबाल पार्क में हुए आतंकवादी हमले को तहरीक-ए-तालिबान के ग्रुप जमात-उल-अहरर ने अंजाम दिया है। 

पिछले 21 महीनों से पाकिस्तानी सेना उत्तरी वजीरिस्तान में आतंकिय़ों को मारने के लिए ऑपरेशन 'जर्ब-ए-अज्ब' चला रही है। इस ऑपरेशन में अब तक पाकिस्तानी सरकार ने क़रीब 19 हज़ार करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं, इसके बावजूद ये संगठन आए दिन पाकिस्तान को चोट पहुंचाता रहता है।

पाकिस्तान की फौज और नवाज शरीफ की सरकार इस ऑपरेशन की कामयाबी का दावा करके अमेरिका से करोड़ों डॉलर की मदद ले रही है। इसके बावजूद आतंकवादी हमलों में कमी नहीं आई है क्योंकि जितने आतंकी मारे जा रहे हैं। उससे ज्यादा संख्या में नए आतंकी इन संगठनों में भर्ती हो रहे हैं।

सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान आतंकियों का अभ्यारणय यानी सैंक्चुअरी बन गया है जहां आम नागरिकों से ज्यादा सुरक्षा आतंकियों को मिली हुई है? हाफिज़ सईद, मौलाना मसूद अजहर और लखवी जैसे आतंकी पाकिस्तान में कड़ी सुरक्षा के बीच ऐसे घूमते हैं जैसे वो आतंकी नहीं बल्कि कोई विलुप्त होती हुई प्रजाति हों, जिनके संरक्षण का जिम्मा पाकिस्तानी सरकार पर है।

पाकिस्तान में सक्रिय 48 में से 12 आतंकी संगठन पाकिस्तान के घरेलू आतंकी संगठन कहे जा सकते हैं, यानी ये पाकिस्तान में ही पैदा हुए हैं। 1985 से लेकर अब तक पाकिस्तान में 1400 से ज्यादा बम धमाके हो चुके हैं। पाकिस्तान आतंकवादी घटनाओं में होने वाली मौतों के मामले में दुनिया का चौथे नंबर का देश बन चुका है। 

2004 से 2005 के बीच आतंकवाद की वजह से पाकिस्तान को 100 बिलियन डॉलर्स का नुकसान हुआ इस रकम में 134 वर्षों तक पाकिस्तान के शिक्षा बजट का आवंटन हो सकता था। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान में आतंकवाद से निपटने के लिए बनाई गई क्राइसिस मैनेजमेंट सेल ने फंड का इस्तेमाल महंगे गिफ्ट खरीदने में कर डाला। 

रिपोर्ट्स के मुताबिक क्राइसिस मैनेजमेंट सेल ने अपने फंड में से महंगी कलाई घड़ियां, महंगे कालीन और कुर्बानी देने के लिए बकरे खरीद डाले। ये हाल तब है जब पाकिस्तान को हर साल अमेरिका से 1 बिलियन डॉलर्स यानी करीब 6600 करोड़ रुपये की मदद मिलते हैं।

अब आप समझ सकते हैं कि कैसे पाकिस्तान बहुत तेज़ी से एक ऐसा देश बनता जा रहा है जहां खतरनाक आतंकी खुले में विचरण कर सकते हैं लेकिन आम लोग और छोटे बच्चे पार्क, स्कूल और सड़कों पर भी सुरक्षित नहीं हैं।

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