Zee जानकारी : नक्सली हमलों में 11 वर्षों में 1800 से अधिक जवान शहीद
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Zee जानकारी : नक्सली हमलों में 11 वर्षों में 1800 से अधिक जवान शहीद

Zee जानकारी : नक्सली हमलों में 11 वर्षों में 1800 से अधिक जवान शहीद

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 7 जवान नक्सली हमले में शहीद हो गए। ये घटना दंतेवाड़ा ज़िले में Basaras और कुआकोन्डा के पास मेलावड़ा गांव की है। ब्लास्ट इतना भयानक था कि पक्की सड़क में चार फीट का गड्ढा हो गया और सुरक्षाबलों की गाड़ी के परखच्चे उड़ गए। ये सात शहीद जवान सीआरपीएफ की 230वीं बटालियन के थे और ये छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर के इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन में तैनात थे। दरअसल ये पूरा इलाके घने जंगलों से घिरा है और नक्सली यहां पर बहुत मजबूत स्थिति में हैं। यहां पर पूरे देश के लिए नक्सलियों के खूनी वायरस से जुड़े आंकड़े हमें ज़रूर देखने चाहिए---

- भारत के 17 राज्यों के 118 ज़िले इस वक्त नक्सलवाद से पीड़ित हैं।

- 2005 से लेकर 2016 तक नक्सली हमलों में 2860 नागरिक मारे गए।

- इन 11 वर्षों में नक्सली हमलों में देश के 1805 जवान शहीद हुए हैं।

- 1999 से 2015 तक, देश में 25 हज़ार से ज़्यादा नक्सली हमले हुए हैं।

- नक्सलियों ने इस दौरान 7 हज़ार से ज़्यादा आम लोगों और 2000 से ज्यादा सुरक्षाबलों के जवान शहीद हो गए।

- लोकसभा में दिए गए आंकड़े के मुताबिक नक्सली, हर साल 140 करोड़ रुपये की वसूली करते हैं।

- कई नक्सली संगठनों को देश में काम करने वाले NGOs के ज़रिए विदेशों से भी पैसा मिलता है।

- नक्सली बीड़ी बनाने में इस्तेमाल होने वाले तेंदू पत्ते के ठेकेदारों, इंफ्रास्ट्रक्चर के काम में लगे ठेकेदारों, कारोबारियों और कॉरपोरेट घरानों से भी उगाही करते हैं। 

...तो अब नहीं होगी सड़क हादसे में घायलों की अनदेखी

- भारत में हर घंटे 16 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं यानी हर 4 मिनट में एक व्यक्ति सड़क दुर्घटना में मारा जाता है और भारत में हर 4 में से 3 लोग सड़क पर घायलों की मदद नहीं करते और इनमें से भी 88 फीसदी लोग घायलों को उनके हाल पर इसलिए छोड़कर चले जाते हैं क्योंकि वो किसी तरह की कानूनी प्रक्रिया में नहीं फंसना चाहते। 

- सड़क पर तड़पते लोगों को देखकर भी आंखें बंद कर लेने का दूसरा पहलू ये है कि अक्सर घायलों की मदद करने वाले लोगों को पुलिस के सवालों, अस्पतालों की मनमानी और जटिल कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। इसे सामान्य भाषा में झंझट कहा जाता है और हर व्यक्ति यही सोचता है कि कौन झंझट में पड़े। हालांकि अब घायलों की मदद करने वाले नेक दिल इंसानों को उत्पीड़न  का सामना नहीं करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में जारी की गईं केंद्र सरकार की कुछ Guidelines को मंजूर कर लिया है।

- इन Guidelines के मुताबिक घायलों को नज़दीकी अस्पताल में भर्ती कराने के बाद मददगार फौरन वहां से जा सकता है, मददगार से कोई भी सवाल नहीं पूछा जाएगा।

- घायल की सूचना फोन पर देने वाले को भी अपने बारे में जानकारी देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

- घायलों की मदद करने वाला चाहे तो अपनी पहचान गुप्त रख सकता है, यानी जांच अधिकारी उससे जबरदस्ती नाम और उसका पता नहीं पूछ सकते।

- अस्पतालों को भी MLC यानी मेडिकल लीगल फॉर्म भरवाते हुए मददगार को अपनी पहचान बताने या ना बताने का विकल्प देना होगा। 

- अगर मदद करने वाला ही हादसे का प्रत्यक्षदर्शी है तो उसे पुलिस जांच या मुकदमे में सिर्फ एक बार उपस्थित होना होगा।

- कोई भी अस्पताल सड़क हादसे में घायल हुए व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने वाले मददगार से इलाज के लिए फीस नहीं मांग सकता।

- राज्य सरकारें ऐसे मददगार लोगों को प्रोत्साहन देंगी और सम्मानित भी करेंगी।

- Institute of Road Traffic Education की स्टडी के मुताबिक National Highways पर पूरे 100 फीसदी वाहन निर्धारित गति सीमा से ज्यादा स्पीड पर दौड़ते हैं यानी ये वाहन नियमों को रौंदते हुए सड़कों पर आगे बढ़ते हैं और कई बार लोगों की जान भी ले लेते हैं।

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