ZEE जानकारीः हमारा देश भारत, भारतीयों के लिए है, घुसपैठियों के लिए नहीं
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ZEE जानकारीः हमारा देश भारत, भारतीयों के लिए है, घुसपैठियों के लिए नहीं

इंदिरा गांधी का ये इंटरव्यू वर्ष 1971 का है. इस वक्त तक भारत ने आज के बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में अपनी सेना नहीं भेजी थी. 

ZEE जानकारीः हमारा देश भारत, भारतीयों के लिए है, घुसपैठियों के लिए नहीं

हमारा देश भारत, भारतीयों के लिए है, घुसपैठियों के लिए नहीं.. ये भारत ही नहीं दुनिया के हर देश का सच है. लेकिन दुख की बात ये है कि इस पर भी हमारे देश में राजनीति हो रही है. असम में National Register of Citizens का Final Draft जारी होने के बाद देश में वोट बैंक की राजनीति अपने चरम पर है. हमारे देश में बांग्लादेश से शरणार्थियों के रूप में आए घुसपैठिए 47 वर्ष का लंबा वक़्त यहां गुज़ार चुके हैं. लेकिन वो अभी तक वापस नहीं गए. उन्होंने आपके हिस्से के संसाधनों और सुविधाओं पर अतिक्रमण कर लिया.

आज उन्हें वो सभी अधिकार हासिल हैं जिन पर आपका अधिकार था. ऐसे में सवाल ये है कि हमारे देश की सरकारों ने इन घुसपैठियों को वापस क्यों नहीं भेजा? इसका जवाब है वोट बैंक. क्योंकि 1971 के बाद देश में आए घुसपैठिए बहुत सी पार्टियों का वोट बैंक बन गए. आज कांग्रेस भी इन अवैध घुसपैठियों के पक्ष में खड़ी है. हालांकि कांग्रेस ये दावा कर रही है कि वो वोटबैंक की राजनीति नहीं कर रही. लेकिन इसके बावजूद वो मानवता की दुहाई देकर घुसपैठियों के हिंदुस्तान में ही रहने की वकालत कर रही है. 

लेकिन शायद कांग्रेस के मौजूदा नेता, अपनी पूर्व नेता और इस देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भूल गए हैं. क्योंकि वो इंदिरा गांधी ही थीं, जिन्होंने मानवता का तकाज़ा देकर लाखों शरणार्थियों को भारत में जगह दी थी. क्योंकि तब बांग्लादेश में पाकिस्तान की सेना का आतंक था, वहां कत्लेआम हो रहा था. मानवता की हत्या हो रही थी, इसीलिए इंदिरा गांधी ने एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाया और लाखों बांग्लादेशियों को शरण दी. लेकिन साथ ही इंदिरा गांधी ने उसी वक़्त ये साफ़ कर दिया था कि एक दिन इन सभी शरणार्थियों को वापस अपने देश जाना होगा. इंदिरा गांधी ने ये बात एक बार नहीं, बल्कि कई बार, अलग अलग Interviews में कही. आज हमने कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी पार्टी के तमाम नेताओं के लिए इंदिरा गांधी का एक पुराना बयान ढूंढा है, जो शायद उनसे Miss हो गया. राहुल गांधी और कांग्रेस के दूसरे नेताओं को, घुसपैठ पर इंदिरा गांधी का ये अल्टीमेटम ध्यान से सुनना चाहिए.

इंदिरा गांधी का ये इंटरव्यू वर्ष 1971 का है. इस वक्त तक भारत ने आज के बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में अपनी सेना नहीं भेजी थी. लेकिन बांग्लादेश में स्थिति बहुत भयानक हो चुकी थी. वहां से लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आ रहे थे. तब भारत भी एक गरीब देश था. लेकिन इसके बावजूद भारत सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए खाने से लेकर रहने तक की व्यवस्था की और उनका इलाज करवाया. लेकिन ये शरणार्थी भारत से वापस नहीं गए. यहीं कब्ज़ा करके बैठ गए. उस दौर में विदेशी मीडिया को इंदिरा गांधी ने जितने भी Interviews दिए, उनमें शरणार्थियों से जुड़ा हुआ सवाल ज़रूर पूछा जाता था, और अपने जवाब में इंदिरा गांधी हर बार यही कहती थीं कि इन शरणार्थियों को हर हाल में अपने देश यानी बांग्लादेश वापस जाना होगा. 

दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है... जिसने अपनी सीमाओं पर ये बोर्ड लगवाया हो कि 'हे घुसपैठियों आपका स्वागत है' . घुसपैठियों की एंट्री को हर देश रोकता है क्योंकि घुसपैठियों को हमेशा देश के संसाधनों के अतिक्रमण के रूप में देखा जाता है. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो समझ जाएंगे कि घुसपैठ अपने आप में एक आक्रमण है.

इस दौर में आक्रमण सिर्फ़ टैंक, लड़ाकू विमानों और सेना के द्वारा नहीं होता... घुसपैठ भी आक्रमण का ही एक तरीका है . ये एक ऐसा हमला है जिसमें एक भी गोली नहीं चलती और इसके बावजूद विदेशी नागरिक, देश के संसाधनों पर कब्ज़ा जमा लेते हैं. इससे देश के असली नागरिकों का हक छीन लिया जाता है और देश की सुरक्षा भी कमज़ोर हो जाती है . 

कल असम में National Register of Citizens का Final Draft जारी किया गया था. इस प्रक्रिया के ज़रिए असम के अंदर छुपे हुए बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान की जा रही है. लेकिन हमारे देश की वोट बैंक वाली राजनीति, इन बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम कर रही है . अगर भारत में अवैध रूप से रहने वाले घुसपैठियों का स्वागत करना और उन्हें गले लगाना ही राजनीति का धर्म है...तो फिर इस देश और राष्ट्र का क्या मतलब है ? सीमाओं का क्य़ा महत्व है ? भारत हर साल देश की सुरक्षा के लिए लाखों करोड़ रुपए का बजट क्यों बनाता है ? अगर देश की आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा देश की राजनीति में कोई महत्व ही नहीं रखता तो रात-दिन लाखों सैनिक देश की पहरेदारी क्यों कर रहे हैं ? पिछले 13 वर्षों में 1 हज़ार 684 जवान देश के लिए शहीद हुए हैं . क्या इस बलिदान की कोई कीमत नहीं है . ये कितनी बड़ी विडंबना है कि एक तरफ नेता वोट बैंक की राजनीति करके सत्ता का सुख भोगना चाहते हैं और दूसरी तरफ देश का जवान जैसलमेर की गर्मी में पसीना बहाता है और सियाचिन की बर्फीली पहाड़ियों पर अपनी हड्डियां गलाता है. 

देश से बाहर निकाले जाने की तलवार बांग्लादेशी घुसपैठियों पर लटक रही है . लेकिन संसद में इस तरह की राजनीति हो रही है जैसे कुछ राजनीतिक पार्टियों के वोट बैंक पर ही तलवार लटक गई हो . संसद में आज भी NRC के Final Draft को लेकर खूब हंगामा हुआ . विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि देश में एक खास समुदाय को Target किया जा रहा है . ये वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का एक बड़ा एजेंडा बनने वाला है . क्योंकि लोकसभा चुनाव के 4 महीने पहले ही Final NRC प्रकाशित की जाएगी . यही वजह है कि सांसद इस मुद्दे को लेकर काफी जोश में हैं . 

अक्सर आप ये तो सुनते होंगे कि संसद में बहुत हंगामा हुआ लेकिन आज तो संसद के बाहर भी सांसदों के बीच बहुत हंगामा हुआ . आज संसद भवन के परिसर से एक अनोखी तस्वीर हमारे पास आई है जिसमें NRC के मुद्दे पर बीजेपी के सांसद अश्विनी चौबे और कांग्रेस के सांसद प्रदीप भट्टाचार्य के बीच ज़ुबानी जंग शुरू हो गई. ये दोनों ही सांसद एक दूसरे पर किस तरह गुस्सा उतार रहे थे. ये आप खुद देखिए.

TMC, राज्यसभा में आज भी काम रोको प्रस्ताव लेकर आई थी . CPM, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया . जिसके बाद राज्य सभा के सभापति वेंकैया नायडू ने दोपहर 12 बजे से एक बजे तक चर्चा का समय निर्धारित कर दिया . इस दौरान भी राज्यसभा को दो बार स्थगित करना पड़ा . और तीसरी बार पूरे दिन के लिए राज्यसभा को स्थगित कर दिया गया .यानी घुसपैठियों के मुद्दे पर राजनीति तेज़ हो गई है. और यही राजनीति उनके लिए सुरक्षा कवच बन गई है.

आज राज्यसभा में चर्चा के दौरान बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि NRC.... 1985 के Assam Accord की आत्मा है. अमित शाह ने कहा कि उस वक्त देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने Assam Accord पर हस्ताक्षर किए थे . और उसी समझौते के आधार पर NRC को अपडेट करने का फैसला किया गया. अमित शाह के इस बयान पर राज्यसभा में काफी हंगामा हुआ . विपक्षी दलों ने उनके इस बयान का विरोध किया. 
आज हमने इस विषय पर काफी Research किया है और ये समझने की कोशिश की है कि All Assam Students Union, असम गण परिषद और भारत सरकार के बीच हुआ Assam Accord किन परिस्थितियों का परिणाम था . 1971 के भारत के शरणार्थी संकट और उसके बाद असम में हुए आंदोलन पर हमने एक रिपोर्ट तैयार की है. इस विश्लेषण में आपको कई ऐतिहासिक तस्वीरें देखने को मिलेंगी .

अब सवाल ये है कि अगर ये 40 लाख शरणार्थी घुसपैठिए साबित हो भी जाएं तो आगे क्या होगा? क्या भारत सरकार इन्हें वापस बांग्लादेश भेज देगी? हो सकता है कि इंदिरा गांधी की तरह बीजेपी के नेता भी कहें कि घुसपैठियों को हर हाल में वापस जाना होगा? लेकिन वो तो तब जाएंगे, जब बांग्लादेश उन्हें स्वीकार करेगा. हमारे पास आज बांग्लादेश सरकार की तरफ से भी एक आधिकारिक प्रतिक्रिया आई है. और बांग्लादेश ने इस पूरे मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया है. बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन-उल-हक़ इनू.. ने आज अंतर्राष्ट्रीय चैनल Wion से बातचीत की और कहा कि 40 लाख लोगों को बांग्लादेशी बताना ठीक नहीं है. 

मूल रूप से भारत एक दयालु देश है . भारत के लोगों का दिल बहुत कोमल है . वो कभी भी दूसरों का दुख देख नहीं सकते. पाकिस्तान, भारत के प्रति बहुत नफरत रखता है लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान में जब भी कोई दुर्घटना होती है.... हिंदुस्तान के लोग दुखी होते हैं .

लेकिन भारत के लोगों की यही संवेदनाएं, भारत की कमज़ोरी भी है . पड़ोसी देश सदियों से हमारी इसी कमज़ोरी का फायदा उठाते आए हैं . भारत ने बांग्लादेश के शरणार्थियों पर दया दिखाई और उन्हें रहने के लिए अपनी ज़मीनें दीं . लेकिन हमारी संवेदनाओं का गलत फायदा उठाया गया . 

असम में ही नहीं पश्चिम बंगाल में भी बहुत बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थियों ने शरण ली थी . 15 दिसंबर 1971 तक पश्चिम बंगाल में 74 लाख 93 हजार 474 बांग्लादेशी शरणार्थी थे . पश्चिम बंगाल की आबादी का संतुलन भी आज इसी वजह से बिगड़ चुका है . ये लोग पहले शरणार्थी के रूप में आए फिर घुसपैठिये बनकर रहने लगे और अब वोटर बन चुके हैं . ये लोग एक वोट बैंक की तरह एकजुट होकर वोट देते हैं. इसीलिए राजनीतिक दल भी इनके चरणों में सिर झुकाते हैं . 

देश में मौजूद 40 हज़ार रोहिंग्या भी आज देश के सामने बहुत बड़ी चुनौती हैं . इनकी वजह से जम्मू कश्मीर राज्य के जम्मू क्षेत्र की आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है . आज लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान रोहिंग्या के मुद्दे पर कुछ सांसदों ने सरकार से सवाल पूछा.... जिस पर सरकार ने जवाब दिया है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार से बातचीत करके वापस भेजा जाएगा . देश में इस वक्त असम के 40 लाख लोगों पर राजनीति इसलिए भी हो रही है क्योंकि इन लोगों को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट देना है . इन 40 लाख लोगों में से जिन लोगों को NRC में जगह नहीं मिलेगी . वो लोग वोट भी नहीं दे पाएंगे . इस संबंध में हमने मुख्य चुनाव आयुक्त से भी बात की है . NRC की Final List इसी वर्ष दिसंबर में आएगी . मुख्य चुनाव आयुक्त ने ये बताया कि वो 15 जनवरी 2019 तक Voter List को Final करेंगे . 

कुल मिलाकर इस विश्लेषण का सार ये है कि भारत, भारतीयों के लिए है, घुसपैठियों के लिए नहीं.जब किसी का पेट भरा हुआ हो, तभी दान पुण्य, परोपकार, और समाज सेवा जैसी बातें अच्छी लगती हैंअभिव्यक्ति की आज़ादी, Privacy की बात भी मन में तभी आती है. अमेरिका जैसे संपन्न देश भी शरणार्थियों के बोझ को नहीं उठा पा रहे हैं. ऐसे में भारत से ये उम्मीद कैसे की जा सकती है

कई लोग इस मामले को हिंदूओं और मुसलमानों की समस्या बता रहे हैं. इसे धार्मिक रंग दे रहे हैं जबकि ये सही नहीं है. बांग्लादेश से जो शरणार्थी भारत आए थे, उनमें एक बड़ी संख्या हिंदुओं की भी थी. इसलिए इस मामले में चाहे हिंदू हों या मुसलमान, सब बराबर हैं. घुसपैठियों को धर्म के चश्मे से देखकर राजनीति नहीं की जा सकती. जिस तरह आप अपने घर में किसी को घुसपैठ की इजाज़त नहीं दे सकते, उसी तरह देश में भी घुसपैठियों को रहने की इजाज़त नहीं दी जा सकती

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