Zee जानकारी : मृत किसानों की खोपड़ी के साथ प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसान
Advertisement

Zee जानकारी : मृत किसानों की खोपड़ी के साथ प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसान

आजादी से पहले वर्ष 1936 में भारत के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने एक प्रसिद्ध उपन्यास लिखा था, जिसका नाम था गोदान। जिसमें भारत के किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। गोदान में होरी नाम का एक किसान जीवन भर कर्ज में दबा रहता है और कर्ज के बोझ के साथ ही मर जाता है। अंतिम समय में गोदान करवाने के लिए होरी की पत्नी धनिया फिर से कर्ज लेती है यानी गोदान का किसान कर्ज में ही जीता है और कर्ज में ही मर जाता है। अफसोस इस बात का है कि आजादी के करीब 70 वर्षों के बाद भी देश के किसानों की हालत वैसी ही है जैसी मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यास और कहानियों में दिखाई थी। आज हम आपको देश के उन किसानों की आवाज़ सुनाएंगे, जिनकी कहीं सुनवाई नहीं होती। ये तमिलनाडु के वो किसान हैं, जो पिछले कई दिनों से देश की राजधानी दिल्ली में मृत किसानों की खोपड़ी के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। 

Zee जानकारी : मृत किसानों की खोपड़ी के साथ प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसान

नई दिल्ली : आजादी से पहले वर्ष 1936 में भारत के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने एक प्रसिद्ध उपन्यास लिखा था, जिसका नाम था गोदान। जिसमें भारत के किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। गोदान में होरी नाम का एक किसान जीवन भर कर्ज में दबा रहता है और कर्ज के बोझ के साथ ही मर जाता है। अंतिम समय में गोदान करवाने के लिए होरी की पत्नी धनिया फिर से कर्ज लेती है यानी गोदान का किसान कर्ज में ही जीता है और कर्ज में ही मर जाता है। अफसोस इस बात का है कि आजादी के करीब 70 वर्षों के बाद भी देश के किसानों की हालत वैसी ही है जैसी मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यास और कहानियों में दिखाई थी। आज हम आपको देश के उन किसानों की आवाज़ सुनाएंगे, जिनकी कहीं सुनवाई नहीं होती। ये तमिलनाडु के वो किसान हैं, जो पिछले कई दिनों से देश की राजधानी दिल्ली में मृत किसानों की खोपड़ी के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। 

ये तस्वीरें देखकर आपको हैरानी हो रही होगी, इन तस्वीरों में दिख रही ये इंसानी खोपड़ियां असली हैं और इन किसानों का दावा है कि ये खोपड़ियां उन किसानों की हैं, जिन्होंने सूखे और कर्ज़ की वजह से आत्महत्या की है। ये अपने आपमें एक अनोखा और दिल को झकझोर देने वाला प्रदर्शन है। वैसे दो दिन पहले भी हमने आपको ये तस्वीरें DNA में दिखाई थीं, हालांकि तब हम पानी के संदर्भ में बात कर रहे थे लेकिन इन तस्वीरों के अंदर इतना दर्द है, कि हमने इन किसानों की समस्या पर आज फिर से रिपोर्टिंग की और आज इस समस्या का, गहराई से विश्लेषण करने का फैसला किया। आज हमने इन किसानों से बात की है। इस बातचीत के दौरान हमें पता चला कि अब तमिलनाडु में आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार उन्हें जलाने के बजाए दफना रहे हैं। यानी हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करने के बजाए उन्हें किसानों को दफ़्न करना पड़ रहा है ताकि किसानों के कंकाल सबूत के तौर पर हमेशा इनके पास रहें। और इनकी परेशानी का ये मुद्दा हर हाल में ज़िंदा रहे। 

-NCRB के मुताबिक 2011 से 2015 तक 5 वर्षों में तमिलनाडु में 2 हज़ार 728 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। 
-यानी तमिलनाडु में हर महीने 45 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन सरकारें अभी तक जागी नहीं हैं। 
-प्रदर्शन कर रहे इन किसानों के मुताबिक पूरे तमिलनाडु में 39 हज़ार एकड़ जमीन बेकार हो चुकी है। यानी ये ज़मीन अब खेती के लायक नहीं बची है। 
-इसकी वजह ये है कि तमिलनाडु में पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है। और खेत सूख रहे हैं। 

किसानों के हालात सिर्फ तमिलनाडु में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बहुत खराब हैं। और Zee News ऐसे हालात में भारत के किसानों के हितों की रक्षा के लिए रिपोर्टिंग कर रहा है। आज हम आंकड़ों के आईने में पूरे भारत के किसानों की ज़िंदगी के दुख-दर्द आपके सामने रखेंगे ताकि आपको पता चले कि भारत में किसान होना कितना बड़ा अभिशाप है? ये एक तरह से कृषि दर्शन है, आपमें से बहुत से लोगों ने दूरदर्शन पर किसानों के लिए बनाया गया कृषि दर्शन कार्यक्रम देखा होगा। बहुत से किसान इससे फायदा उठाते थे लेकिन बड़ी संख्या में आम दर्शक ऐसे भी थे जो इस विषय से मुंह फेर लेते थे जितने ध्यान से लोग सीरियल्स और सेलिब्रिटीज का नाच-गाना देखते थे, उतनी गंभीरता से किसानों की समस्या कभी किसी ने नहीं देखी। ऐसे में आज हम आपको कृषि दर्शन यानी किसानों की तड़पती हुई दुनिया के दर्शन करवाएंगे। ये देशहित में किया गया एक तथ्यात्मक विश्लेषण है।

तमिलनाडु में इस वक़्त AIADMK की सरकार है लेकिन फिलहाल AIADMK सत्ता के संघर्ष में व्यस्त है। उसके पास किसानों के हितों के बारे में सोचने के लिए समय नहीं है। देश की राजधानी में प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के इन किसानों की आवाज़ अब सुनाई देने लगी है। कल ही केन्द्र सरकार की एक उच्च स्तरीय समिति ने तमिलनाडु के लिए 2 हज़ार करोड़ रुपये की मदद देने का ऐलान किया है। और अब कल वित्त मंत्री अरुण जेटली इन किसानों से मुलाकात करने वाले हैं। इन किसानों को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से काफी उम्मीदें हैं और इन्हें लगता है कि उनकी जो मांगे पिछले कई वर्षों से पूरी नहीं हुई हैं, वो अब पूरी हो जाएंगी। 

अब हम आपको वो आंकड़े दिखाते हैं जिन्हें देखकर आपको ये अंदाज़ा होगा कि देश के अन्नदाता किसान कितने बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। दरअसल किसानों ने पिछले कई दशकों से अच्छे दिनों के दर्शन नहीं किये हैं। हर वर्ष हज़ारों किसानों को यही लगता है कि खेती करके इज़्ज़त की दो रोटी खाने के मुकाबले मरना ज़्यादा आसान है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक

-1995 से अब तक भारत में करीब 3 लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। 
-2015 में देश में 12 हज़ार 602 किसानों ने आत्महत्या की थी।
-जबकि 2014 में देश में 12 हज़ार 360 किसानों ने आत्महत्या की थी।
-यानी देश में हर महीने 1 हज़ार 50 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। 
-यानी हमारे देश में हर रोज 35 किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

इन्हीं डरावने आंकड़ों की वजह से हम कह रहे हैं कि हमारे देश में किसान होना किसी अभिशाप से कम नहीं है। और ऐसा नहीं है कि इस हकीकत को हमारे देश के किसान नहीं समझते हैं। 2014 की सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज यानी CSDS के एक सर्वे के मुताबिक 

-देश के 76% किसान, खेती को छोड़कर कोई दूसरा काम करना चाहते हैं। 
-देश के 61% किसान शहरों में नौकरी करना चाहते हैं, ताकि उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के मौके मिल सकें। 
-70% किसानों के मुताबिक उनकी फसलें बेमौसम बरसात, सूखा, और बाढ़ की वजह से बर्बाद हो जाती हैं।

भारत को हमेशा से एक कृषि प्रधान देश कहा जाता है लेकिन इस कृषि प्रधान देश के किसानों के लिए खेती करना खुदकुशी करने के समान होता जा रहा है। भारत में किसान विरोधी हालात देखकर डर लगता है कि कहीं भविष्य में हमें किसानों के दर्शन के लिए किसी म्यूज़ियम या फिर विदेशों में ना जाना पड़े। 

-आज़ादी के बाद वर्ष 1950-51 में भारत की 50 फीसदी वर्क फोर्स यानी काम करने लायक जनसंख्या खेती करती थी।
-लेकिन अब देश में रोजगार योग्य आबादी में से करीब 24 फीसदी लोग ही खेती के व्यवसाय से जुड़े हैं।
-यानी मौज़ूदा वक्त में खेती से जुड़ी आबादी में आधी से भी ज्यादा की गिरावट आ गई है।

पूरे देश का पेट भरने वाले किसानों की ज़िंदगी के दो ही सहारे होते हैं। पहला भगवान और दूसरा साहूकार और इन दोनों में से कोई एक भी नाराज़ हो जाए तो देश के अन्नदाताओं की ज़िंदगी जहन्नुम बन जाती हैष NSSO की रिपोर्ट बताती है कि

-देश के किसान परिवारों पर औसतन 47 हजार रुपये का कर्ज है।
-पिछले 10 वर्षों में कर्ज के बोझ से दबे किसान परिवारों की संख्या 48.6 फीसदी से बढ़कर 51.9 फीसदी हो गई है।
-देश में आज भी 40 फीसदी किसानों को कर्ज के लिए सेठों और साहूकारों के पास जाना पड़ता है।

भारत में हर वर्ष हजारों किसान आत्महत्या क्यों करते हैं इसका पता लगाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। देश के अन्नदाताओं को उनका वाजिब हक देने के लिए हमारे देश की सरकारों को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है और इस काम में हम एक सकारात्मक भूमिका निभाएंगे। देश के किसानों को जब-जब Zee News की ज़रूरत होगी हम उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए नज़र आएंगे।

अगर आज लाल बहादुर शास्त्री ज़िंदा होते तो अपने जय जवान जय किसान वाले नारे को दम तोड़ते हुए देखकर बेहद दुखी होते। शास्त्री जी ने ये नारा वर्ष 1965 में दिल्ली के रामलीला मैदान में लाखों भारतीयों की मौज़ूदगी में दिया था। ये वो वक्त था जब जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री पद संभाला था और पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था। इसी दौरान देश में अनाज की भी भारी कमी थी, तब देश के जवानों और किसानों में उत्साह का संचार करने के लिए शास्त्री जी ने ये नारा दिया। इस नारे का असर ये हुआ कि 1965 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पछाड़ दिया और देश के किसानों ने खाद्यान्न के मामले में देश को आत्मनिर्भर बना दिया लेकिन देश को अनाज के भंडार देने वाले किसानों की ज़िंदगी में कभी बहार नहीं आई। अब आपको लाल बहादुर शास्त्री का वो भाषण सुनना चाहिए जिसमें उन्होंने बड़े विश्वास के साथ 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था।

शास्त्री जी ने जिस किसान की जय-जयकार की थी, वो किसान आज अपनी ज़िंदगी में पराजय झेल रहा है। हालत ये है कि एक किसान के लिए उसके हिस्से का उचित हक पाना भी बेहद मुश्किल हो गया है। अगर हम किसान को ईमानदारी से उसका हिस्सा दे दें तो हमारा अन्नदाता सुखी हो जाएगा और उसकी बंजर ज़िंदगी फिर से हरी भरी हो जाएगी।

Trending news