Zee जानकारी : पश्चिमी मीडिया को भारत के प्रति सोच बदलने की जरूरत
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Zee जानकारी : पश्चिमी मीडिया को भारत के प्रति सोच बदलने की जरूरत

अंग्रेजी में एक कहावत है 'बेटर टू हैव नो इन्फार्मेशन दैन रांग इन्फार्मेशन' यानी 'गलत जानकारी रखने से बेहतर है कोई जानकारी ना रखना'। पश्चिमी मीडिया के पास भारत को लेकर ऐसी अनेक गलत जानकारियां मौजूद हैं। जिनके सहारे भारत को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। इसलिए अब हम विदेशी मीडिया के चश्मे पर जमी गलत जानकारी वाली धूल को साफ करने वाला डीएनए टेस्ट करेंगे। ये विश्लेषण बनारस और काशी में आस्था रखने वालों को सर्मपित है। और उस अमेरिकी न्यूज चैनल के लिए मुंहतोड़ जवाब है, जिसे वाराणसी के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

Zee जानकारी : पश्चिमी मीडिया को भारत के प्रति सोच बदलने की जरूरत

नई दिल्ली : अंग्रेजी में एक कहावत है 'बेटर टू हैव नो इन्फार्मेशन दैन रांग इन्फार्मेशन' यानी 'गलत जानकारी रखने से बेहतर है कोई जानकारी ना रखना'। पश्चिमी मीडिया के पास भारत को लेकर ऐसी अनेक गलत जानकारियां मौजूद हैं। जिनके सहारे भारत को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। इसलिए अब हम विदेशी मीडिया के चश्मे पर जमी गलत जानकारी वाली धूल को साफ करने वाला डीएनए टेस्ट करेंगे। ये विश्लेषण बनारस और काशी में आस्था रखने वालों को सर्मपित है। और उस अमेरिकी न्यूज चैनल के लिए मुंहतोड़ जवाब है, जिसे वाराणसी के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

एक अमेरिकी न्यूज चैनल ने आध्यात्मिक शहर वाराणसी को ‘मुर्दों का शहर’ कहा है। इस न्यूज चैनल ने अपने एक नए शो के टीजर में काशी को 'मुर्दों का शहर’बताया है, हम इस विदेशी न्यूज़ चैनल को बताना चाहते हैं कि काशी यानी वाराणसी मुर्दों का नहीं बल्कि जीवन को रौशनी देने वाला शहर है। बनारस भारत के करोड़ों लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि बनारस में ना सिर्फ मोक्ष मिलता है, बल्कि व्यक्ति जीवन और मृत्यु के बंधन से भी छूट जाता है। भारत के संबंध में विदेशी मीडिया की ये रिपोर्टिंग उस सोच का उदाहरण है जिसे मोक्ष की ज़रूरत है और आज हम अपने विश्लेषण के ज़रिए विदेशी मीडिया को खबरों वाला निर्वाण दिलाने की कोशिश करेंगे। 

काशी, बनारस और वाराणसी जैसे तीन नामों से मशहूर वाराणसी को दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता है। हिंदुओं के सबसे पुराने धर्म ग्रंथ ऋग्वेद के भी कई अध्यायों में काशी का ज़िक्र है। अध्यात्म के शहर वाराणसी के लिए आज भी कहा जाता है कि‘वाराणसी शहर जमीन पर नहीं बल्कि भगवान शिव के त्रिशूल के ऊपर बसा है।’काशी को शिव जी का घर भी कहा जाता है। देवी पार्वती से विवाह के बाद भगवान शिव ने काशी में ही रहने का फैसला किया था।

वाराणसी एक ऐसा शहर है जहां हिंदू ही नहीं सभी जाति और धर्म के लोग बसते हैं, वाराणसी से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर सारनाथ नामक जगह है, जहां भगवान गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को पहला उपदेश दिया था। गंगा किनारे बसे इस पावन शहर में देश ही नहीं विदेश से भी लाखों सैलानी आते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक हर साल करीब 7 लाख विदेशी सैलानी काशी घूमने और यहां की संस्कृति को जानने और समझने के लिए आते हैं।

वाराणसी एक ऐसा शहर है जहां खाने-पीने के शौकीन लोगों, सैलानियों और सत्य की खोज करने वालों को निर्वाण हासिल होता है।  वाराणसी में छोटे-बड़े 23 हजार मंदिर हैं जिनमें से एक काशी विश्वनाथ का मंदिर है, जो देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां 84 घाट हैं जिनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं। मणि-कर्णिका घाट, अस्सी घाट और दशाश्व-मेघ घाट, यहां के प्रमुख घाट हैं।

वाराणसी उच्च शिक्षा का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू को आज भी सभी 
विषयों की पढ़ाई और अलग-अलग विषयों पर रिसर्च के लिए जाना जाता है। यहां तक कि मशहूर वैज्ञानिक एल्बर्ट आइन्स्टीन भी बीएचयू में पढ़ाना चाहते थे।

वाराणसी का सांस्कृतिक महत्व भी है, माना जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की नींव भी वाराणसी में ही रखी गई थी। काशी तुलसीदास, कबीर, हजारी प्रसाद द्विवेदी, देवकीनंदन खत्री जैसे कई प्रसिद्ध लेखकों और कवियों का घर रहा है। मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां भी बनारस के ही थे और कामयाबी की बुलंदियों पर भी उन्होंने इस शहर को कभी नहीं छोड़ा। वाराणसी एक ऐसा शहर है जहां अमीर से लेकर गरीब तक सबके लिए जगह है, आपको जानकर हैरानी होगी कि इस शहर में कोई भी गरीब खाली पेट नहीं सोता।

मशहूर अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने वाराणसी के बारे में लिखा था 'Banaras is older than history, older than Tradition, Older even than Legend and Looks Twice as Old as All of Them put Together' यानी 'बनारस शहर खुद इतिहास से, परंपरा से और यहां तक की सभी पौराणिक कथाओं से भी ज़्यादा पुराना है। और इन सबको आपस में जोड़ भी दिया जाए तो बनारस शहर इससे दोगुना पुराना है।'

विडंबना ये है कि अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन काशी के महत्व को समझ गए लेकिन अमेरिका का ही एक न्यूज चैनल काशी को ठीक से नहीं समझ पाया। काशी पर रिपोर्टिंग करने से पहले अगर इस चैनल के रिपोर्टर ने मार्क ट्वेन को ही पढ़ लिया होता तो काशी को देखने का उनका नजरिया बदल जाता। पश्चिमी देशों के हज़ारों लोग काशी आकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करते हैं। वैसे काशी, भोले यानी भगवान शिव की नगरी है और शिव हमेशा लोगों को माफ कर देते हैं। हमें उम्मीद है कि विदेशी मीडिया के रिपोर्टर्स और एंकर्स को भी भगवान शिव माफ कर देंगे और इन लोगों को सदबुद्धि प्राप्त होगी।

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