Zee जानकारी : बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पर मौन क्यों हैं तथाकथित बुद्धिजीवी?
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Zee जानकारी : बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पर मौन क्यों हैं तथाकथित बुद्धिजीवी?

अब हम बांग्लादेश में हिंदुओं के सांस्कृतिक सफाए का DNA टेस्ट करेंगे। आपने अक्सर पाकिस्तान और भारत के तथाकथित बुद्धिजीवियों को ये बात कहते हुए सुना होगा कि भारत में मुसलमानों की हालत बहुत ख़राब है। लेकिन कोई इस बारे में बात नहीं करता कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंदुओं पर किस तरह के अत्याचार हो रहे हैं? कोई बुद्धिजीवी इस सवाल पर बहस नहीं करता कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू आबादी तेज़ी से क्यों घट रही है? और हिंदुओं के पूजा स्थलों पर हमले क्यों हो रहे हैं?

Zee जानकारी : बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पर मौन क्यों हैं तथाकथित बुद्धिजीवी?

नई दिल्ली : अब हम बांग्लादेश में हिंदुओं के सांस्कृतिक सफाए का DNA टेस्ट करेंगे। आपने अक्सर पाकिस्तान और भारत के तथाकथित बुद्धिजीवियों को ये बात कहते हुए सुना होगा कि भारत में मुसलमानों की हालत बहुत ख़राब है। लेकिन कोई इस बारे में बात नहीं करता कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंदुओं पर किस तरह के अत्याचार हो रहे हैं? कोई बुद्धिजीवी इस सवाल पर बहस नहीं करता कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू आबादी तेज़ी से क्यों घट रही है? और हिंदुओं के पूजा स्थलों पर हमले क्यों हो रहे हैं?

बांग्लादेश में जिस रफ्तार से हिंदुओं का सांस्कृतिक सफाया हो रहा है अगर वैसा ही चलता रहा वर्ष 2046 तक बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा। ये दावा बांग्लादेश के ही एक अर्थशास्त्री ने किय़ा है। बांग्लादेश के मशहूर अर्थशास्त्री डॉक्टर अबुल बरकत ने 30 वर्षों तक एक रिसर्च किया। और इस रिसर्च के नतीजे काफी चौकाने वाले हैं। डॉक्टर बरकत के मुताबिक 1964 से 2013 के दौरान 1 करोड़ 13 लाख से ज्यादा हिंदुओं ने बांग्लादेश को छोड़ दिया है। बांग्लादेश से हिंदुओं के पलायन की प्रमुख वजह धर्म के आधार पर उत्पीड़न और भेदभाव है। 

-एक आंकड़े के मुताबिक बांग्लादेश से हर रोज़ 632 हिंदू पलायन कर रहे हैं।
-इस हिसाब से हर साल 2 लाख 30 हज़ार 612 हिंदू बांग्लादेश छोड़ देते हैं।
-Bangladesh Bureau of Statistics के एक नये आंकड़े मुताबिक इस वक्त बांग्लादेश की हिंदू आबादी एक करोड़ 70 लाख है। ये बांग्लादेश की कुल आबादी का 10.7 percent है।

बांग्लादेश में हिंदू आबादी किस तरह से कम हुई है ये देखकर आप चौंक जाएंगे। 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। और वहां हिंदू आबादी करीब 28 प्रतिशत थी। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद 1981 में वहां पहली जनगणना हुई। उस जनगणना में हिंदू आबादी सिर्फ़ 12 प्रतिशत रह गई थी। इसके बाद बांग्लादेश में वर्ष 2011 में जो जनगणना हुई। उसके मुताबिक बांग्लादेश की हिंदू आबादी 9 प्रतिशत से भी कम है। यानी जनगणना के मुताबिक बांग्लादेश में 9 फीसदी हिंदू हैं जबकि Bangladesh Bureau of Statistics के मुताबिक इस समय हिंदू आबादी 10.7 फीसदी है>

इस मुद्दे को समझने के लिए हम आपको इससे जुड़ा बैकग्राउंड भी बता देते हैं। 1947 के बाद से बांग्लादेश के भौगोलिक इलाके में, इस्लामीकरण के नाम पर करीब 30 लाख हिंदुओं की हत्याएं की गईं हैं। 1971 में बांग्लादेश में आज़ादी की लड़ाई के दौरान हुए नरसंहार में पाकिस्तानी सेना और कट्टरपंथियों ने चुन-चुन कर हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया था। 1971 के दौरान पाकिस्तानी सेना और कट्टरपंथियों ने इस तरह का नरसंहार और अत्याचार किया जो दक्षिण एशिया में शायद ही कभी देखा गया हो।

इस दौरान हिंदू पुरुषों की हत्याएं हुईं। हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार हुए और हिंदू और बौद्ध उपासना स्थलों पर तोड़फोड़ भी हुई थी। इसकी वजह से बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग भारत में शरण लेने लगे और इनमें 60 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की ही थी। हालत ये हो गई थी कि बांग्लादेश बनने के बाद जब वर्ष 1981 में बांग्लादेश की पहली जनगणना हुई तो उसमें करीब 5 करोड़ हिंदू आबादी गायब थी।

बांग्लादेश बनने के बाद भी हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का सिलसिला बंद नहीं हुआ है। बल्कि पिछले कुछ दशकों में ये सिलसिला काफी तेज़ हो गया है। इसी साल 30 अक्टूबर को बांग्लादेश में 15 हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की गई थी और हिंदुओं के 100 से ज्यादा घरों को लूट लिया गया था। 31 अक्टूबर को DNA में हमने ये खबर दिखाते हुए आपको बताया था कि कैसे बांग्लादेश बहुत तेज़ी से पाकिस्तान जैसे कट्टर देश के रूप में तब्दील हो रहा है और पाकिस्तान की ही तरह बांग्लादेश में भी हिंदू होने को इस्लाम के खिलाफ माना जाने लगा है।  

30 अक्टूबर को हिंदू मंदिरों और घरों पर हुए हमलों के बाद बांग्लादेश के कई ज़िलों में हिंदुओं पर लगातार ऐसे ही हमले हो रहे हैं। बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की क्या हालत है इस पर हम आपको विस्तार से जानकारी देते हैं और बांग्लादेश की हालत के बारे में भी बताते हैं।

-बांग्लादेश के संविधान के मुताबिक देश में हर धर्म के मानने वालों के अधिकार सुनिश्चित करने को कहा गया है।
-लेकिन 1977 के बाद से बांग्लादेश कट्टरपंथियों के दबाव में पाकिस्तान की घटिया दर्जे की फोटोकॉपी बनने की कोशिश करने लगा।
-वर्ष 1988 में बांग्लादेश ने ख़ुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया, जहां इस्लाम को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता मिली।
-बांग्लादेश में खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात ए इस्लामी जैसी पार्टियों ने कट्टरपंथियों को बढ़ावा दिया।
-बांग्लादेश में इस तालिबानीकरण का सबसे आसान शिकार हिंदू  अल्पसंख्यक बने, जिन्हें भयानक तौर पर प्रताड़ित किया गया।
-बांग्लादेश में Vested Property Act के तहत हिंदू अल्पसंख्यकों की संपत्तियों को हड़प लिया गया, जिससे वो देश छोड़ने पर मजबूर हुए।
-Vested Property Act के तहत किसी भी नागरिक को देश का दुश्मन घोषित करके उसकी संपत्ति पर कब्ज़ा किया जा सकता है।
-इस कानून के खिलाफ करीब 26 लाख एकड़ ज़मीन के लिए 10 लाख केस पेंडिंग पड़े हैं जिनकी संपत्ति लौटाने का सरकार ने वादा किया था, लेकिन अब तक एक इंच ज़मीन भी लौटाई नहीं गई।
-बांग्लादेश की सरकार ने एक नए कानून के ज़रिए हिंदुओं की संपत्ति लौटाने की कोशिश ज़रूर की है। लेकिन सच ये है कि हिंदुओं की ज्यादातर ज़मीनों पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और अवामी लीग के नेताओं का ही कब्ज़ा है। इसलिए बांग्लादेश के 60 लाख हिंदू आज भी अपनी ज़मीन और संपत्ति वापस पाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।
-वर्ष 2009 में शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का भरोसा था, क्योंकि शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को उदारवादी माना जाता है।
-लेकिन शेख हसीना की सरकार हिंदुओं के पलायन और उनका धार्मिक उत्पीड़न रोकने में नाकाम रही है। 

हमें लगता है कि धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले नेताओं को अपनी गर्दन बांग्लादेश जैसे देशों की तरफ भी घुमानी चाहिए। जहां हिंदू आबादी का सुनियोजित तरीके से सफाया हो रहा है और कोई इस विषय में कभी कुछ नहीं बोलता। 

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