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नई दिल्ली : एक झूठ को आधार बनाकर एक युद्ध वर्ष 2003 में लड़ा गया था। तब ब्रिटेन के कई मीडिया संस्थानों ने दावा किया था कि इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पास WMD यानी Weapon Of Mass Destruction मौजूद था। WMD वो हथियार होते हैं जिनसे कुछ ही मिनटों में भारी तबाही मचाई जा सकती हैं। इनमें परमाणु हथियार भी होते हैं।
तब मीडिया ने दावा किया था कि सद्दाम हुसैन चाहें तो इन हथियारों के दम पर ब्रिटेन को 45 मिनट में तबाह कर सकते हैं।
बाद में सद्दाम हुसैन को पकड़ लिया गया और उसे फांसी दे दी गई लेकिन इसके बावजूद वो हथियार नहीं मिले। यानी सभी खबरें झूठी पाईं गईं। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और पोलेंड जैसे देशों ने मिलकर इराक पर हमला कर दिया और एक बड़ा युद्ध शुरू हो गया।
ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इसके लिए माफी भी मांगी थी। और ये माना था कि इराक में जो गलतियां हुईं उन्होंने ISIS को जन्म दिया। ISIS का मतलब है Islamic State of Iraq and Syria. ये वही ISIS है जिसके खिलाफ सीरिया की सेना युद्ध लड़ रही है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को वैसे तो नोबल शांति पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन उनके कार्यकाल में अमेरिका के हथियारों की बिक्री 43 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। इस दौरान अमेरिका ने अपने आधे हथियार मध्य एशिया के देशों को बेचे थे। आपको बता दें कि Middle East दुनिया का ऐसा इलाका है, जहां आने वाले समय में बड़ा युद्ध छिड़ सकता है। सीरिया भी मध्य एशिया का देश है, जहां पहले से ही युद्ध चल रहा है।
अमेरिका ने वर्ष 2016 में 2 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये के हथियार बेचे थे।
इसी तरह रूस भी किसी ना किसी युद्ध का हिस्सा बने रहना चाहता है। रूस अमेरिका के बाद हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। सीरिया में रूस की मौजूदगी की एक बड़ी वजह ये है कि वो अपने हथियारों के उद्योग को बढ़ावा देना चाहता है। और सीरिया के युद्ध का इस्तेमाल अपने हथियारों के प्रचार के लिए करना चाहता है। रूस ने वर्ष 2015 में 96 हज़ार 600 करोड़ रुपये के हथियार बेचे थे।