Zee जानकारी : बिजली के बेहतर इस्तेमाल में भारत से आगे निकले दुनिया के देश
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Zee जानकारी : बिजली के बेहतर इस्तेमाल में भारत से आगे निकले दुनिया के देश

भारत में अक्सर देर से बात समझने वाले लोगों को मज़ाक मज़ाक में ट्यूबलाइट भी कह दिया जाता है, क्योंकि ट्यूब लाइट बिजली का स्विच ऑन करने के बाद रोशनी देने में थोड़ा वक्त लेती है। ऊर्जा के किफायती इस्तेमाल और पर्यावरण के विषय को समझने के मामले में भारत की स्थिति भी एक ट्यूबलाइट जैसी है। आप ये भी कह सकते हैं कि इस क्षेत्र में अगर विकसित देश एलईडी की रफ्तार से काम कर रहे हैं तो भारत की रफ़्तार ट्यूबलाइट वाली है, वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एशिया में सबसे पहली स्ट्रीट लाइट 5 अगस्त 1905 को भारत के बेंगलुरु शहर में लगाई गई थी, लेकिन अब एशिया के कई देश बिजली के बेहतर इस्तेमाल के मामले में भारत से बहुत आगे निकल चुके हैं, इन देशों में स्ट्रीट लाइट्स आधुनिक और स्मार्ट हो गई है, जबकि भारत में खंबों से प्राचीन बल्ब उतार कर एलईडी बल्ब लगाने के प्रयास अभी शुरू हुए हैं    

Zee जानकारी : बिजली के बेहतर इस्तेमाल में भारत से आगे निकले दुनिया के देश

नई दिल्ली : भारत में अक्सर देर से बात समझने वाले लोगों को मज़ाक मज़ाक में ट्यूबलाइट भी कह दिया जाता है, क्योंकि ट्यूब लाइट बिजली का स्विच ऑन करने के बाद रोशनी देने में थोड़ा वक्त लेती है। ऊर्जा के किफायती इस्तेमाल और पर्यावरण के विषय को समझने के मामले में भारत की स्थिति भी एक ट्यूबलाइट जैसी है। आप ये भी कह सकते हैं कि इस क्षेत्र में अगर विकसित देश एलईडी की रफ्तार से काम कर रहे हैं तो भारत की रफ़्तार ट्यूबलाइट वाली है, वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एशिया में सबसे पहली स्ट्रीट लाइट 5 अगस्त 1905 को भारत के बेंगलुरु शहर में लगाई गई थी, लेकिन अब एशिया के कई देश बिजली के बेहतर इस्तेमाल के मामले में भारत से बहुत आगे निकल चुके हैं, इन देशों में स्ट्रीट लाइट्स आधुनिक और स्मार्ट हो गई है, जबकि भारत में खंबों से प्राचीन बल्ब उतार कर एलईडी बल्ब लगाने के प्रयास अभी शुरू हुए हैं    

हमारे देश में इस वक्त करीब 3.5 करोड़ स्ट्रीट लाइट्स हैं, इन लाइट्स पर भारत को करीब 3,400 मेगावॉट बिजली खर्च करनी पड़ती है। भारत में उपलब्ध कुल बिजली का 18 फीसदी हिस्सा सड़कों, और घरों को रोशन करने में खर्च हो जाता है। जबकि दुनिया भर में सड़कों और घरों को रोशन करने के लिए सिर्फ 13 फीसदी बिजली खर्च की जाती है।

दिसंबर 2014 में केंद्र सरकार ने शहरों में बिजली के प्राचीन खंबों की जगह, कम बिजली की खपत वाले एलईडी बल्ब वाली स्ट्रीट लाइट्स लगाने की योजना शुरू की थी। अगर भारत की सभी स्ट्रीट लाइट्स को एलईडी से बदल दिया जाए तो देश हर साल करीब 5,500 करोड़ रुपये बचा सकता है 

एलईडी यानी लाइट-इमिटिंग डॉयोड्स वाले बल्ब साधारण बल्ब के मुकाबले 90 फीसदी बिजली बचाते हैं।

आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल 77 करोड़ लोग साधाराण बल्ब का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 40 करोड़ लोग सीएफएल का इस्तेमाल करते हैं, एक साधारण बल्ब 60 वॉट और सीएफएल बल्ब 30 से 40 वॉट बिजली खर्च करता है। बिजली के इस खर्च को एलईडी की मदद से बहुत कम किया जा सकता है।

यहां आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आंध्र प्रदेश और पुड्डुचेरी में 90 फीसदी घरों में अब सिर्फ एलईडी बल्बों का इस्तेमाल हो रहा है। जबकि दूसरा पहलू ये है कि भारत के 27 फीसदी गांवों में अब तक बिजली नहीं पहुंच पाई है यानी दोनों ही स्थितियों में कमाल का विरोधाभास है।

भारत एक तेज़ी से बढ़ता हुआ देश है, जिसकी ऊर्जा की भूख भी बढ़ती जा रही है, ऊर्जा के मामले में आप भारत को एक कुपोषित देश भी मान सकते हैं, भारत के कई शहरों में बिजली के जाने से ज़्यादा बिजली का आ जाना लोगों को हैरान कर देता है। आपने भी अपने जीवन में कभी न कभी लाइट आने पर जश्न की आवाज़ें ज़रूर सुनी होगी। 

दुनिया भर की स्ट्रीट लाइट्स बन रहीं स्मार्ट 

इसलिए हम भारत की बिजली वाली भूख को शांत करने के तरीकों पर, एक रोशनी भरा डीएनए टेस्ट करेंगे, हम आपको चीन के शहर शंघाई की सड़कों पर लगीं स्मार्ट स्ट्रीट लाइट्स के बारे में बताएंगे। शंघाई ही नहीं पूरी दुनिया में स्ट्रीट लाइट्स को स्मार्ट बनाने पर तेज़ी से काम चल रहा है, ये स्मार्ट स्ट्रीट लाइट्स जहां रोशनी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है वहां ज्यादा और जहां कम जरूरत होती है वहां कम रोशनी देकर बिजली बचा सकेंगी 

मोशन सेंसर्स और आधुनिक लाइटेनिंग उपकरणों की मदद से ये लाइट्स सिर्फ तभी जलती हैं जब कोई सड़क से गुजरता है, यानी आगे की लाइट जलती रहती है, और पीछे की बुझ जाती है। सड़क के दुर्घटना प्रभावित हिस्सों से किसी वाहन या किसी व्यक्ति के गुज़रने पर ये लाइट खुद जल जाएंगी, जेबरा क्रॉसिंग के नीचे लाइट लगाकर पैदल चलने वालों की राह आसान की जा सकती है।

बस स्टॉप पर अगर कोई यात्री बस का इंतज़ार कर रहा है तो बस स्टॉप पर लगी स्मार्ट लाइट ज्यादा चमकदार हो जाएगी ताकि बस ड्राइवर ये समझ पाए कि बस स्टॉप पर यात्री मौजूद हैं। सड़को के बीच में बनाई जाने वाली रोड मार्किंग में लाइट लगाकर उसे सौर ऊर्जा से चार्ज किया जा सकता है, रात होने पर रोड मार्किंग के नीचे लगी लाइट्स जलने लगती है, और टेम्पेरेचर सेंसर्स की मदद से रोड मार्किंग यानी सफेद पट्टियां अपने रंग भी बदलती रहती हैं ताकि ड्राइवर्स को नींद ना आए, ट्रैफिक नियमों की भाषा में इसे ब्लैक आइज कहते हैं, यानी एक ऐसी सड़क जो कई किलोमीटर दूर तक एक जैसी होती है, और ऐसी सड़कों पर ड्राइवर्स को अक्सर झपकी आ जाती है। 

वैसे भारत में स्ट्रीट लाइट्स की कमी से जुड़ा एक दुखदायी पहलू ये भी है कि भारत में स्ट्रीट लाइट्स की कमी की वजह से अक्सर दुर्घटनाएं, और आपराधिक वारादात होती हैं और सड़कों पर सही रोशनी ना सिर्फ लोगों को दुर्घटनाओं और अपराधों का शिकार होने से बचा सकती है, बल्कि भारत की छवि को ज़्यादा चमकदार बनाने में भी मदद कर सकती है।

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