Zee जानकारी : दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति हैं मैथ्यू जो पिछले 26 वर्षों में एक बार भी दुखी नहीं हुए
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Zee जानकारी : दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति हैं मैथ्यू जो पिछले 26 वर्षों में एक बार भी दुखी नहीं हुए

DNA में आज के विश्लेषण की शुरुआत करते हुए सबसे पहले ज़ी न्यूज़ की तरफ से मैं आपको और आपके पूरे परिवार को नववर्ष की शुभकामनाएं देना चाहता हूं। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ये नया साल आपकी जिंदगी को खुशियों से भर दें, और आपको मनचाही सफलता हासिल हो। नए साल में आप सभी अपनी झोली खुशियों से भरना चाहते हैं लेकिन इसके लिए सबसे ज़रूरी है। सकारात्मक विचार जिसे हम अंग्रेज़ी में सकारात्मक सोच भी कहते हैं। इसलिए हमने तय किया है कि आज सबसे पहले हम आपको खुशी देने वाला DNA टेस्ट करेंगे। ये विश्लेषण आपको अपने पूरे परिवार के साथ देखना चाहिए क्योंकि आज हम आपको दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति से मिलवाएंगे और ये मुलाकात आपकी जिंदगी को 'डियर जिंदगी' में बदल सकती है। 

Zee जानकारी : दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति हैं मैथ्यू जो पिछले 26 वर्षों में एक बार भी दुखी नहीं हुए

नई दिल्ली : DNA में आज के विश्लेषण की शुरुआत करते हुए सबसे पहले ज़ी न्यूज़ की तरफ से मैं आपको और आपके पूरे परिवार को नववर्ष की शुभकामनाएं देना चाहता हूं। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ये नया साल आपकी जिंदगी को खुशियों से भर दें, और आपको मनचाही सफलता हासिल हो। नए साल में आप सभी अपनी झोली खुशियों से भरना चाहते हैं लेकिन इसके लिए सबसे ज़रूरी है। सकारात्मक विचार जिसे हम अंग्रेज़ी में सकारात्मक सोच भी कहते हैं। इसलिए हमने तय किया है कि आज सबसे पहले हम आपको खुशी देने वाला DNA टेस्ट करेंगे। ये विश्लेषण आपको अपने पूरे परिवार के साथ देखना चाहिए क्योंकि आज हम आपको दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति से मिलवाएंगे और ये मुलाकात आपकी जिंदगी को 'डियर जिंदगी' में बदल सकती है। 

लेकिन इससे पहले, मैं एक सूफी विचार आपके सामने रखना चाहता हूं। एक सूफी संत से एक बार लोगों ने पूछा कि आप हमेशा खुश कैसे रहते हैं, हमने आपको कभी दुखी नहीं देखा, तो संत ने जवाब दिया कि वो हमेशा सुबह उठकर खुद से कहते हैं कि उनके पास सिर्फ दो विकल्प हैं या तो वो दुखी और दीनहीन रह सकते हैं या फिर आनंदमय और खुश और उसी समय वो अपना विकल्प चुन लेते हैं।

ये विकल्प अगर आपको दिए जाएं तो ज़ाहिर है कि आप भी दूसरा विकल्प ही चुनेंगे। हमसे कोई भी पहला विकल्प नहीं चुनना चाहेगा। लेकिन फिर भी हममें से ज्यातार लोग खुशी की तलाश में भटकते रहते हैं। हालांकि दुनिया में ऐसा व्यक्ति भी मौजूद है जो पिछले 26 वर्षों में एक बार भी दुखी नहीं हुआ। 70 वर्ष के बौद्ध भिक्षु मैथ्यू रिकार्ड को दुनिया का सबसे खुश व्यक्ति माना जाता है। मैथ्यू रिकार्ड आखिरी बार 1991 में दुखी हुए थे, जब उनके गुरु की मौत हुई थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि मैथ्यू की खुशी से प्रभावित होकर अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी ने उन पर 12 वर्षों तक एक रिसर्च किया। इस रिसर्च के दौरान उनके सिर पर 256 सेंसर्स लगाए गए। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पता लगाया कि  जब मैथ्यू दया पर आधारित ध्यान करते हैं तो उनके दिमाग में गामा तरंगे पैदा होती हैं। मैथ्यू के ब्रेन स्कैन के दौरान इन तरंगो को रिकॉर्ड किया गया। ये तरंगे चेतना, ध्यान और याद्दाश्त से जुड़ी हुई हैं।     

वैज्ञानिकों ने किसी इंसान के दिमाग में पहली बार इस तरह की तरंगों को रिकॉर्ड किया।

मैथ्यू कैसे खुश रहते हैं और कैसे आज से 45 वर्ष पहले एक गुरु ने उनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया। ये हम आपको अपनी स्पेशल रिपोर्ट में बताएंगे। लेकिन 132 करोड़ भारतीयों के लिए ये जानना बहुत ज़रूरी है कि मैथ्यू को खुशियों का ये तोहफा और कहीं नहीं बल्कि भारत की धरती पर कदम रखने के बाद ही हासिल हुआ। लेकिन दुखद विडंबना ये है कि आज भारत खुशी के मामले में दुनिया के 156 देशों की सूची में 118वें नंबर पर है।

45 वर्ष पहले मैथ्यू भी आज के दौर के हर व्यक्ति की तरह परेशान रहते थे, और छोटी छोटी बातों से उन्हें तनाव हो जाता था। लेकिन 1972 में जब वो दार्जिलिंग आए, तो उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया। मैथ्यू बौद्ध धर्म की पढ़ाई करने के लिए भारत आए थे इसी दौरान दार्जिलिंग में उनकी मुलाकात गुरु कांगयूर से हुई, कांगयूर ने ही उन्हें हमेशा खुश रहने के तरीके सिखाए। मैथ्यू पेशे से वैज्ञानिक हैं और उन्होंने पीएचडी भी की हुई हैं। लेकिन खुशियों की तलाश उन्हें भारत और नेपाल ले आई। इस दौरान उनके गुरु ने उन्हें मुश्किल से मुश्किल हालात में भी खुश रहने के तरीके सिखाए। लेकिन 1991 में जब उनके गुरु की मृत्यु हुई तब वो 1972 के बाद 1991 में पहली बार दुखी हुए थे यानी तब वो 19 वर्षों के बाद दुखी हुए थे।

हम आपको मैथ्यू की कहानी इसलिए सुना रहे हैं क्योंकि दुनिया के दुखों और दुखी लोगों की कहानी सब सुनाते हैं। लेकिन कोई खुशियों की और खुश रहने वाले लोगों की बात नहीं करता। इसलिए हमनें मैथ्यू रिकार्ड के खुश रहने के फॉर्मूलों पर एक विश्लेषण किया है। हम नववर्ष के इस मौके पर आपको भी खुश रहने की कला सिखाना चाहते हैं। और हमें लगता है कि इससे अच्छा तोहफा नहीं हो सकता।

हमें लगता है कि हर व्यक्ति के DNA में खुशी के लिए विशेष जगह होती है। लेकिन आपाधापी वाली जिंदगी की वजह से हम खुश रहना भूल जाते हैं। इसलिए 2017 की शुरुआत में नकारात्मक विचारों को दूर करने वाला ये DNA टेस्ट आपको प्रसन्न होकर देखना चाहिए। आपने अक्सर गौर किया होगा कि खुशियों को धन और दौलत से जोड़ कर देखा जाता है। यहां तक कि देशों के मामले में भी ऐसा ही होता है। जिस देश का GDP जितना ज्य़ादा होता है उसे उतना ही खुशहाल माना जाता है। लेकिन भारत के पड़ोसी देश भूटान में जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद को खुशी का पैमाना नहीं माना जाता है। बल्कि वहां ग्रास नेशनल हैप्पीनेस यानी GNH की गणना की जाती है।

1971 में भूटान ने GDP के फॉर्मूले को खारिज कर दिया था। इसकी जगह ग्रास नेशनल हैप्पीनेस का फॉर्मूला अपनाया गया है। GNH के तहत आम लोगों के आध्यात्मिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की गणना की जाती है। हमें लगता है कि 132 करोड़ की आबादी वाला भारत भूटान जैसे देशों से प्रेरणा ले सकता है। हम ये नहीं कह रहे कि आर्थिक तरक्की पर ध्यान नहीं दिया जाए, हम सिर्फ ये कह रहे हैं कि आर्थिक तरक्की के साथ साथ जीवन के सामाजिक, शारीरिक और आध्यात्मिक पहलूओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

भूटान एक छोटा सा और आर्थिक रूप से कमज़ोर देश है। लेकिन वहां के लोगों ने खुश रहना सीख लिया है। इसलिए स्टैंडर्ड डेविएशन ऑफ हैप्पीनेस यानी खुशी के औसत के मामले में भूटान पहले नंबर पर है। जबकि जापान दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है। फिर भी वहां के लोग खुशी के मामले में पीछे हैं। हैप्पीनेस इंडेक्स में उसकी रैंकिंग 46 है। आप सोच रहे होंगे कि हम भूटान की बात करते हुए अचानक जापान की खुशियों की बात क्यों करने लगे, तो आपको बता दें कि इसके पीछे एक वजह है। और वो वजह है जापान से सामने आई एक अनोखी घटना। जापान में एक पति अपनी पत्नी से नाराज़ हो गया और नाराज़गी का ये सिलसिला 20 वर्षों तक चलता रहा। 20 वर्षों तक ओटोउ नामक इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी युमी से कभी बातचीत नहीं की। दरअसल ये व्यक्ति इस बात से नाराज़ था कि उसकी पत्नी सिर्फ बच्चों पर ध्यान दे रही है। और उसका ख्याल नहीं रखती, इसी बात पर इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी से बातचीत बंद कर दी और 20 वर्षों तक उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया।

मां बाप के बीच बातचीत बंद होने से ओटोउ और युमी के तीनों बच्चे बहुत परेशान थे। और वो चाहते थे कि किसी भी तरह दोनों के बीच बातचीत शुरू हो जाए। इसके लिए उन्होंने एक टीवी चैनल की मदद ली जिसनें 20 वर्षों के बाद ओटोउ और युमी के बीच बातचीत कराई। ये एक बहुत  भावनात्मक खबर है। जो हमें ये बताती है कि अगर रिश्तों में आई खटास को सही वक्त पर दूर नहीं किया जाए. तो फिर कई बार रिश्तों को सामान्य करने का वक्त भी हाथ से निकल जाता है।

अब हम आपको दुनिया की सबसे अनोखी स्टडी के ज़रिए समझाएंगे कि कैसे जीवन में खुश और स्वस्थ रहने के लिए पैसा नहीं, अपनों का साथ और सच्चा प्यार महत्वपूर्ण होता है। हॉवर्ड मेडिकल स्कूल ने 75 वर्षों से भी ज्यादा समय तक 723 लोगों के जीवन पर एक रिसर्च किया जिसे द ग्रैंट स्टडी कहा जाता है। द ग्रैंट स्टडी को अभी तक का सबसे लंबा रिसर्च माना जाता है। 

स्टडी में शामिल किए गए 723 लोगों में से 60 लोग आज भी जीवित हैं और इन 60 लोगों की उम्र 90 के आसपास हो चुकी है। और अब इन लोगों के 2000 बच्चों पर भी Study की जा रही है यानी करीब 78 वर्ष पुरानी ये स्टडी आज भी चल रही है। 1938 में शुरू की गई इस स्टडी में दो समूहों को शामिल किया गया था। पहला समूह उन लोगों का था जो हॉवर्ड जैसे नामी गिरामी शिक्षण संस्थान से पढ़कर निकले थे और दूसरा समूह था Boston के गरीब इलाकों में रहने वाले कुछ युवाओं का। गरीब इलाके से जानबूझकर ऐसे युवाओं को चुना गया जो बहुत ज़्यादा परेशानियों का सामना कर रहे थें जिनके पास खाने तक के पैसे नहीं थे।

दोनों समूहों में से कई लोग आगे चलकर फैक्ट्री के मजदूर बन गए। कुछ लोग बड़े वकील बन गए। कुछ लोग कारोबारी बने इतना ही नहीं स्टडी में शामिल एक युवा तो आगे चलकर अमेरिका का राष्ट्रपति भी बन गया और इस युवा का नाम था जॉन एफ केनेडी। स्टडी में शामिल कई लोगों को शराब की लत लग गई..कई लोग मानसिक बीमारियों के शिकार हो गए, और कुछ लोगों ने बहुत मेहनत से खुद को आर्थिक और सामाजिक रूप से मज़बूत बनाया। जबकि कई लोगों ने उल्टी राह पकड़ी और वो आर्थिक और सामाजिक मज़बूती से बर्बादी की तरफ बढ़ गए।

हर 2 वर्ष में इन लोगों को सवालों की एक सूची भेजी जाती है। जिसमें कई तरह के सवाल होते हैं। इन लोगों के लिविंग रूम में इन लोगों का इंटरव्यू लिया जाता है। मेडिकल रिकॉर्ड की जांच की जाती है और इनकी पत्नियों, बच्चों और पोते पोतियों से भी बात की जाती है। आपको इस स्टडी के अभी तक के नतीजे जानकर हैरानी होगी। इस स्टडी से मुख्य रूप से तीन निष्कर्ष हासिल हुए। पहला ये कि जो लोग सामाजिक तौर पर लोगों से जुड़े रहते हैं..वो ज्यादा खुश और ज्यादा सेहतमंद होते हैं। और जिन लोगों के संबंध कम लोगों से हैं उनके लिए अकेलापन ज़हर का काम करता है। 

इस स्टडी से दूसरा बड़ा सबक ये मिला की दोस्तों और पार्टनर्स की संख्या चाहे कितनी भी हो अगर उसमें गुणवत्ता ना हो तो ऐसे रिश्ते ज्यादा नहीं चल पाते। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे रिश्तों में टकराव की स्थिति में रहने से अच्छा है कि तलाक ले लिया जाए। इस शोध में ये भी पता लगा कि जो लोग 50 की उम्र में खुश थे वो लोग 80 वर्ष की उम्र में दूसरों के मुकाबले ज्यादा सेहतमंद बने रहे।

इस स्टडी से जो तीसरा और अंतिम निष्कर्ष निकाला गया वो ये था कि जिन लोगों ने अपने काम को हल्के फुल्के अंदाज़ में किया और अपने सहकर्मियों को Workmate की जगह Playmate समझा, वो लोग 75 वर्ष की उम्र में सबसे ज्यादा खुश थे। हमें लगता है कि जो लोग जीवन से प्यार करते हैं उनके लिए जीवन में सच्चे प्यार की अहमियत सबसे ज्यादा होती है। और यही प्यार असीमित खुशी की वजह बन जाता है। 

भगवद गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि मुझे जीतने का एक ही तरीका है और वो है प्रेम..मुझे प्रेम कीजिए और मैं सहर्ष आपका हो जाऊंगा। यानी प्रेम की ताकत के ज़रिए दुनिया में किसी को भी जीता जा सकता है लेकिन आधुनिक दौर में हमने दूसरी बनावटी खुशियों की खातिर प्रेम के महत्व को कम कर दिया है। और प्रेम का बाजारीकरण कर दिया गया है।

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