कर्नाटक: मई में बनेगी नई सरकार, इस महीने से जुड़ा है टीपू सुल्तान का इतिहास
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कर्नाटक: मई में बनेगी नई सरकार, इस महीने से जुड़ा है टीपू सुल्तान का इतिहास

कर्नाटक में आगामी मई महीने में नई सरकार का गठन होना है. वहीं, मैसूर के इस वीर शासक की मृत्यु भी दो सौ साल से ज्यादा समय पहले इसी महीने में हुई थी.

टीप सुल्‍तान को 'मैसूर का शेर' कहा जाता है. (फोटो साभार : British Library)

नई दिल्लीः कर्नाटक में मई में विधानसभा चुनाव प्रस्‍तावित हैं. आम तौर पर जातिगत आधार पर राज्य में होने वाले चुनावों में इस बार इतिहास का तड़का लग रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार मैसूर के शासक और भारतीय इतिहास में 'मैसूर के शेर' के नाम से जाने जाने वाले टीपू सुल्तान इस राजनीति का हिस्सा बन गए हैं. जी हां, कर्नाटक में चुनाव से करीब छह महीने पहले से टीपू सुल्तान के नाम पर राज्य की राजनीति में बयानों का दौर शुरू हो चुका है. लेकिन क्या आपको पता है कि टीपू सुल्तान से जुड़ी कुछ तारीखें भी हैं जो कर्नाटक की वर्तमान राजनीति से सियासत को जोड़ रही हैं. दरअसल, कर्नाटक में आगामी मई महीने में नई सरकार का गठन होना है. वहीं, मैसूर के इस वीर शासक की मृत्यु भी दो सौ साल से ज्यादा समय पहले इसी महीने में हुई थी.

  1. 4 मई 1799 को हुई थी टीपू सुल्तान की मृत्यु
  2. अंग्रेजों के साथ तीसरी लड़ाई में हुए थे शहीद
  3. 'मैसूर के शेर' के नाम से जाना जाता है टीपू सुल्तान को

कर्नाटक: चुनाव में 'टीपू सुल्‍तान' के नाम पर लड़ी जाएगी जंग

बचपन से ही बहादुर थे टीपू
टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली मैसूर के शासक थे. उन्हें विरासत में ही वीरता मिली थी. इतिहासकार लिखते हैं कि बहुत कम उम्र में ही टीपू ने निशाना साधना, तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख ली थी. यही वजह थी कि वे अपने पिता के साथ भी जंग के मैदान में शरीक हुए. टीपू ने 18 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ पहली जंग लड़ी और इसमें जीत दर्ज की. टीपू की वीरता ही थी कि अंग्रेजों को संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा.

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अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हुए थे टीपू
मैसूर को हथियाने के लिए अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के साथ कई लड़ाइयां लड़ी थीं. दो लड़ाइयों में तो अंग्रेज टीपू सुल्तान को मात नहीं दे सके थे. लेकिन तीसरी लड़ाई 'मैसूर के शेर' टीपू सुल्तान के लिए आखिरी लड़ाई साबित हुई थी. इतिहासकार लिखते हैं कि यह लड़ाई न सिर्फ टीपू के लिए, बल्कि भारत के लिए भी महत्वपूर्ण थी. क्योंकि इस लड़ाई को लड़ने से पहले टीपू ने संभवतः पहली बार अंग्रेजों को देश से भगाने की रणनीति बनाई थी. उन्होंने इसके लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी शत्रुओं को मिलाने की योजना बनाई. उन्होंने फ्रांस, अफगानिस्तान हर किसी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ संधि करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए. इसके अलावा निजाम और मराठा की अंग्रेजों से मित्रता ने उन्हें शत्रु के मुकाबले कमजोर कर दिया. तीनों शत्रु सेनाओं ने मिलकर टीपू पर संयुक्त रूप से हमला किया. आखिरकार 4 मई 1799 को श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए मैसूर का यह शेर शहीद हो गया.

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