Opinion: कांग्रेस-जेडीएस में डील, क्या ये गठबंधन अलोकतांत्रिक है?
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Opinion: कांग्रेस-जेडीएस में डील, क्या ये गठबंधन अलोकतांत्रिक है?

कर्नाटक में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. 

Opinion: कांग्रेस-जेडीएस में डील, क्या ये गठबंधन अलोकतांत्रिक है?

कर्नाटक में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. त्रिशंकु विधानसभा होने के बाद अब राजनीतिक पार्टियां गठबंधन बनाकर सरकार गठन का पूरा प्रयास करेंगी. शायद राज्य के लोग उनके सामने जो विकल्प थे, उनको लेकर स्पष्ट राय नहीं बना सके या यह चुनावी गणित का मामला हो सकता है. जो भी हो, सीट और वोट प्रतिशत के लिहाज से तीसरे नंबर पर आई जेडीएस का मुख्यमंत्री होना 'अलोकतांत्रिक' प्रतीत होता है.  

जब कुमारस्वामी ने सरकार बनाने का दावा किया या जब सिद्धारमैया ने कहा कि कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का पार्टी बिना शर्त समर्थन देगी तो यह केवल नंबर की बात नहीं है, यह लोकतंत्र की भावना का मामला है. उधर, बीजेपी ने भी सरकार बनाने का दावा किया है. बीजेपी के सीएम पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा ने राज्यपाल वजुभाई वाला से मुलाकात की. हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि राज्यपाल पहले प्री-पोल गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं. बाद में सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए कहा जाता है. 2015 में, एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू और जस्टिस अमितवा रॉय ने दो राजनीतिक पार्टियों के चुनाव बाद गठबंधन पर कोई कार्यवाही करने पर असमर्थता जताई थी. जस्टिस रॉय ने अपने निर्णय में कहा था कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा किए गए चुनावी वादे को कानूनी तौर पर लागू नहीं कराया जा सकता.  

ऊपर जिन दो विकल्पों का जिक्र किया ग्या है, उसके अलावा दो अन्य विकल्पों की अनुशंसा सरकारिया आयोग द्वारा की गई थी. एक यह थी कि राज्यपाल चुनाव बाद गठबंधन में शामिल या बाहर से समर्थन देने वाली पार्टियों के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं. 

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कांग्रेस गोवा में पिछले साल जो हुआ था, उसी के आधार पर हल्ला मचा रही है, जब गवर्नर ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया था, जबकि वह सबसे बड़ी पार्टी थी. चुनाव बाद गठबंधन भारतीय राजनीति के परिदृश्य में कुछ नया नहीं है, हालांकि यह सफल बहुत कम हुआ. मधुकोड़ा को याद कीजिए जो निर्दलीय विधायक होने के बावजूद झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. उन्होंने दो लगभग दो साल तक सरकार भी चलाई थी. लेकिन इस प्रयोग से राज्य के लोगों का भला नहीं हुआ. उन पर 400 करोड़ रुपये का कोयला आवंटन घोटाले का आरोप लगा, जिसके लिए उन्हें 2017 में तीन साल की सजा सुनाई गई थी.  

हम बेहद ही रोचक समय में जी रहे हैं जहां फोन कनेक्शन प्री-पेड है और राजनीतिक गठबंधन चुनाव बाद होता है. जहां उपभोक्ताओं के पास नंबर और पार्टियों के पास विचारधारा की पोर्टेबिलिटी की सुविधा है. राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता है.  

(प्रसाद सान्‍याल जी मीडिया में डिजिटल ग्रुप एडिटर हैं.)

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