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नई दिल्ली: 1 अक्टूबर को World Vegetarian Day यानी विश्व शाकाहार दिवस था. पूरी दुनिया की आबादी 790 करोड़ है और इसमें सिर्फ 10 प्रतिशत यानी 79 करोड़ लोग पूरी तरह से शाकाहारी हैं. मांसाहारी लोग अक्सर शाकाहारी लोगों को घास फूस खाने वाला बताते हैं जबकि शाकाहारी लोग मांसहारियों को जानवरों पर अत्याचार करने वाला कहते हैं.
वैसे तो पूरी दुनिया में हर किसी को अपना भोजन चुनने का अधिकार होना चाहिए. लेकिन विश्व शाकाहार दिवस के मौके पर हम आपको शाकाहार अपनाने के फायदे बताएंगे और ये भी बताएंगे कि पर्यावरण के लिए मांसाहार अच्छा है या शाकाहार. वैसे तो भारत को शाकाहारियों का देश कहा जाता है लेकिन आज की तारीख में भारत में सिर्फ 30 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो पूरी तरह से शाकाहारी हैं.
हालांकि ये फिर भी पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा है. लेकिन शाकाहार का फायदा सिर्फ आपके शरीर को ही नहीं होता बल्कि इससे पर्यावरण को भी लाभ होता है. उदाहरण के लिए एक किलो बीफ के उत्पादन में 13 हजार लीटर से लेकर एक लाख लीटर तक पानी का इस्तेमाल होता है. जबकि एक किलो गेहूं के उत्पादन में एक से दो हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. इसी तरह एक Chiken Breast के उत्पादन में औसतन साढ़े सात सौ लीटर पानी का इस्तेमाल होता है. इतने पानी में 5 बड़े Bath Tub भरे जा सकते हैं.
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मांसाहार के लिए जानवरों को पाला जाता है और इसमें पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जमीन का 30 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल होता है. ये पूरी दुनिया में कृषि के लिए उपलब्ध जमीन का 70 प्रतिशत है. मांसाहार के लिए पाले गए जानवर इन जमीनों पर चरते हैं और विचरण करते हैं. अगर ऐसा ना हो तो जमीन के इस हिस्से पर जंगल उगाए जा सकते हैं. जो आखिरकार पूरी दुनिया में Carbon Emission को कम कर सकते हैं.
मांसहार के लिए पाले गए जानवरों से मुक्त हुई इस जमीन का आकार भारत के क्षेत्रफल से भी ज्यादा होगा. मांसाहारी भोजन के उत्पादन में जितनी जमीन की जरूरत पड़ती है. उतनी ही मात्रा में शाकाहारी भोजन को उगाने में उससे ढाई गुना कम जमीन की जरूरत होती है.
एक मांसाहारी व्यक्ति के मुकाबले एक शाकाहारी व्यक्ति ढाई गुना कम कार्बन उत्सर्जन करता है. उदाहरण के लिए अगर आप पूरे साल सिर्फ शाकाहारी भोजन करें तो Carbon Emission में जो कमी आएगी वो एक छोटी कार को 6 महीने तक ना चलाने पर होने वाली कमी के बराबर होगी. Farm में पाले जाने वाले जानवर जितना कार्बन उत्सर्जन करते हैं, वो पूरी दुनिया में यातायात के साधनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन से भी ज्यादा है.
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अमेरिका की National Academy Of Sciences के मुताबिक, अगर शाकाहार को बढ़ावा मिले तो पृथ्वी को ज्यादा स्वस्थ, ज्यादा हरा और ज्यादा दौलतमंद बनाया जा सकता है. फिलहाल दुनिया में तीन तरह का भोजन करने वाले लोग हैं. पहले जो मांसाहार करते हैं यानी Non Vegetarian हैं. दूसरे जो शाकाहारी हैं यानी Vegetarian हैं और तीसरे जो शाकाहारी हैं और जानवरों से प्राप्त किए जाने वाले Products जैसे दूध और दूध से बने उत्पादों का सेवन भी नहीं करते इन्हें Vegan कहा जाता है.
अमेरिका की National Academy Of Sciences के मुताबिक, अगर शाकाहार को भोजन में ज्यादा जगह दी जाए तो पूरी दुनिया में होने वाली 50 लाख मौतों को टाला जा सकता है और अगर दूध और दूध से बने उत्पादों का सेवन भी बंद कर दिया जाए तो 80 लाख मौतों को टाला जा सकता है.
Oxford University की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भोजन में मांसाहार की मात्रा कम करने से पूरी दुनिया में हर साल 72 लाख करोड़ रुपये बचाए जा सकते हैं और अगर लोग पूरी तरह से शाकाहारी बन जाए तो ये बचत 111 लाख करोड़ रुपये होगी.
एक अमेरिकी साल भर में औसतन 122 किलो मीट Products खा जाता है. Vegetarian Society नामक संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मांसाहार करने वाला ब्रिटेन का एक नागरिक अपने जीवन काल में औसतन 11 हजार छोटे और बड़े जानवर खा जाता है. इनमें 28 बत्तख, एक खरगोश, चार बड़े जानवर, 39 Turkey, 1 हजार 158 चिकन, साढ़े तीन हजार शेल फिश और 6 हजार 182 मछलियां शामिल हैं.
वैसे पूरी दुनिया में एक व्यक्ति एक साल में औसतन 42 किलोग्राम मांस खाता है. हालांकि भारत में इसका औसत सिर्फ साढ़े 4 किलोग्राम है. लेकिन अगर वैज्ञानिक Reports को आधार मान लिया जाए और दुनिया भर के लोग हफ्ते में एक दिन भी शाकाहार को अपना लें तो पर्यावरण के खतरों से निपटा जा सकता है.
इस दिशा में अब उन देशों ने भी कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है जो मांसाहार के नाम पर कुछ भी खाने के लिए तैयार रहते हैं. उदाहरण के लिए चीन में सरकार ने लोगों से कहा है कि वो अपने भोजन में मांस की मात्रा को आधा कर दें ताकि वर्ष 2030 तक हर साल कार्बन उत्सर्जन 10 लाख किलोग्राम तक कम किया जा सके.
दाल चावल एक ऐसा ही शाकाहारी भोजन है जो ना सिर्फ आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है बल्कि इससे दुनिया भर में भोजन के संकट को भी दूर किया जा सकता है. कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में पहले के मुकाबले भोजन की कमी है.
हाल ही में Medical Journal The Lancet में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर दुनिया को भुखमरी के संकट से बचाना है तो भारत की दाल चावल जैसी Diet को भोजन में शामिल किया जाना चाहिए. इसी तरह जर्मनी में की गई एक Study में पाया गया कि दाल चावल ना सिर्फ कई तरह के मांसाहारी भोजन के मुकाबले ज्यादा स्वास्थ्य वर्धक है बल्कि इससे कई तरह की बीमारियों से छुटकारा भी मिलता है.
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