यमुना तुम कभी ना बहना...
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यमुना तुम कभी ना बहना...

इन तस्वीरों को देखकर शायद आप अचरज में पड़ होंगे कि भला यह है क्या। यह तस्वीर हमारे देश की उस पौराणिक नदी की है जिसका जिक्र हमारे पुराणों में आता है।

संजीव कुमार दुबे
इन तस्वीरों को देखकर शायद आप अचरज में पड़ होंगे कि भला यह है क्या। यह तस्वीर हमारे देश की उस पौराणिक नदी की है जिसका जिक्र हमारे पुराणों में आता है। लेकिन अफसोस की अब यह नदी तेजी से अपना वजूद खोती जा रही है। दुर्भाग्य यह है कि यह नदी अब नाले में तब्दील होती जा रही है। चलिए नदी का खुलासा तो बाद में हो ही जाएगा लेकिन सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि तस्वीरों में मौजूद यह दो लोग आखिर कर क्या रहे हैं।
पहली तस्वीर में एक व्यक्ति नदी के जल से आचमन कर रहा है। आचमन की प्रक्रिया एकाग्र मन से वहां की जा रही है जहां नदी की जलराशि दिख नहीं रही। लेकिन आस्था की परंपरा ऐसी कि व्यक्ति गंदे और जहरीले एफ्लुएंट के बीच आचमन की प्रक्रिया को कर रहा है। तस्वीर के दूसरे हिस्से में व्यक्ति नदी के उस पानी में स्नान कर रहा है जो एफ्लुएंट यानी तरल अपशिष्ट का रुप ले चुकी है। यह तस्वीरें 28 नवंबर को ली गई जिस दिन कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। दोनों तस्वीरें आस्था की है जिसमें एक तस्वीर आचमन को समर्पित है तो दूसरी यमुना नदी के प्रति अटूट श्रद्धा को दर्शाती है।
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान का बड़ा महत्व होता है। दिल्ली के लिए तो गंगा ही यमुना है तो इस दिन हजारों लोगों ने इस मौके पर यमुना में डुबकी लगाई। ये अलग बात है कहीं पानी के रूप में नाले का पानी था, तो कहीं जहरीला अपशिष्ट। आस्था की बात ऐसी है कि भारतीय संस्कृति में नदी को मां का दर्जा दिया गया है लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि हम जिसे मां कहकर सम्मान देते हैं उसे हमने इस कदर गंदा कर दिया गया है कि उसके पानी को पीने की बात तो कोसो दूर है उसमें डुबकी लगाना सेहत को चुनौती देने के बराबर है। लेकिन इसी सदी का एक इतिहास यह भी है कि यमुना का पानी इतना साफ हुआ करता था कि लोग उसे पीने के काम में भी लाते थे लेकिन अफसोस अब यह बात इतिहास के किताबों में दर्ज हो चुकी है।
तस्वीरें आस्था की उस परंपरा को बयां कर रही है जो सदियों से चली आ रही है। औद्योगिकरण या फिर शहरीकरण से यमुना भले ही गंदे नाले में तब्दील हो गई हो लेकिन मां का स्वरुप चाहे जैसा भी हो मां तो मां है। लगभग हर सभ्यता के विकसित होने में नदी का योगदान रहा है। लेकिन नदियों के स्वरुप को हमने जिस प्रकार से तार-तार किया है ,गंदलाया है वह माफी के लायक कतई नहीं है।
हम विकास की बात कर बार-बार उसे गंदा कर देते है और सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये स्वाहा हो जाते है । शुरुआत सिफर की तरह होती है और नतीजा भी सिफर पर आकर खत्म होता है क्योंकि नदियों को साफ करने के लिए करोड़ों रुपये बहाए गए , योजनाएं बनी, कागजी कार्रवाई हुई, सियासत भी हुई लेकिन नतीजा वही रहा ढाक के तीन पात।
यमुना नदी यमुनोत्री से निकलनेवाली हिमपोषित नदी है। भारत की सबसे पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गिनती गंगा के साथ ही की जाती हैं। इस नदी की चर्चा पुराणों में है और चारों वेदों में भी इसका नाम आता है। हमारे शास्त्रों मैं यमुना नदी का अनंत महात्म्य है ।
श्रीमदभागवत महापुराण में यमुना जी को साक्षात् भगवती स्वरूप माना गया है। यमुना जी सूरज की पुत्री हैं , यमराज कि बहन यमी हैं एवं कालिंद पर्वत की बहिन होने के नाते कालिंदी भी कहलाती हैं। गंगा जी यदि मानव के मोक्ष एवं निर्वाण का प्रतीक हैं तो यमुना जी अथाह प्रेम एवं स्नेह का प्रतीक हैं। गुजरे वक्त में यमुना गंगा की तरह उज्जवल और निर्मल थी लेकिन अब भी उसमें गंदगी का अंबार लग गया है। यमुना रोज मैली होती जा रही है। दिल्ली में यमुना की हालत ठीक नहीं। दिल्ली में यमुना में कई नाले गिरते हैं जो करीब हर रोज लाखों लीटर गंदा और दूषित पानी यमुना में डालते हैं।
दिल्ली और केंद्र सरकार की जांच में पता चला है कि वर्ष 2011 एवं 2010 में यमुना में बीते वर्षों के मुकाबले अधिक गंदगी पाई गई। वर्ष 2015 तक यमुना की सफाई का लक्ष्य रखा गया है। यमुना में पानी की गुणवत्ता बनी रहे इसके लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की अहमियत बढ़ जाती है। जब हम मल-जल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए ट्रीट अर्थात उपचारित कर यमुना में डालेंगे तो यकीकन यमुना मैली होने से बच जाएगी और इसका फायदा भी हमें ही होगा।
क्योंकि जब हम पानी को गंदा नहीं करेंगे तो पेयजल की आपूर्ति बेहतर होगी। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में रॉ यानी कच्चा पानी नदियों और कैनाल से लिया जाता है। इसलिए यह पानी जितना साफ होगा उतना ही अच्छा होगा। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए इस अवस्था में काम कर पाना ज्यादा सहज होगा क्योंकि पानी को साफ करने की प्रक्रिया तब आसान होगी किसी भी नदी के प्रदूषित होने में सबसे बड़ी भूमिका औद्योगिक इकाइयों का कचरा और अनट्रीटेड एफ्लुएंट और अपशिष्ट होता है जिसका यमुना नदी में डाले जाने पहले ट्रीट किया जाना बेहद जरुरी है।

आस्था के नाम पर भी हम यमुना को मैला करते चले जा रहे है। पूजन सामग्री के फेंके जाने से भी यमुना गंदी होती है, यह जागरुकता अगर हममें होती तो हमलोग पूजन सामग्री नहीं फेंकते। यमुना नदी में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच आलम यह है कि इसमें सीसा, पारा और कैडमियम जैसे खतरनाक पदार्थ होते हैं, जो जानलेवा साबित हो सकते हैं। एक सर्वे के मुताबिक यमुना नदी के पानी को नहाने के काबिल बनाने के लिए उसके प्रदूषण स्तर को कम से कम एक लाख गुना कम करना होगा।
मानकों के अनुसार कोलीफार्म कंटामिनेशन लेबल 500 से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन यमुना में इसका स्तर खतरनाक सीमा से भी आगे बढ़ गया है। दिल्ली, आगरा व मथुरा सहित कई शहरों का औद्योगिक कचरा भी यमुना की निर्मलता को बदरंग करता है। दिल्ली की आधी आबादी आज भी यमुना के पानी पर निर्भर है। यमुना स्वच्छ रहेगी और इसका किनारा हरा-भरा रहेगा, तभी दिल्लीवासी सुरक्षित रहेंगे। लेकिन दुखद है कि इसके पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और यमुना की धारा भी पतली होती जा रही है।
यमुना हमारी लाइफलाइन है। इसे स्वच्छ और सुंदर रखना सभी की जिम्मेदारी है। यमुना में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि उसके पानी में जीवन संभव ही नहीं है। अगर नदियों का संरक्षण करना है तो उनके जलग्रहण क्षेत्रों का पर्यावरणीय संरक्षण जरुरी है। नदियों पर संकट आने से जैव विविधता,खाद्य सुरक्षा व मानव स्वास्थ्य पर भी एक बड़ा खतरा मंडराने लगता है। हमारे लोक कवियों ने अपने गीतों में जल के महत्व को स्वीकारा है। गीतों, गाथाओं, लोकोक्तियों, मुहावरों, कथा-कहानियों में जल के महत्व का वर्णन मिलता है। लेकिन ऐसा ना हो कि यमुना सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएं। सामने जो हालात दिख रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है कि यमुना की गंदगी हमारे लिए एक बड़ी मुसीबत बनकर हमारे आसपास मंडराने लगी है। और तब हमारे पास समाधान के नाम पर कुछ भी नहीं होगा।

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