अरविंद केजरीवाल से हुआ मोहभंग ?
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अरविंद केजरीवाल से हुआ मोहभंग ?

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सुंदरनगरी इलाके में शहीदे आजम भगत सिंह के शहादत दिवस 23 मार्च से बिजली और पानी के बढ़े बिलों को लेकर अनिश्चितकालीन अनशन पर डटे हुए हैं। उन्होंने बिजली और पानी के बढ़े बिल का भुगतान न करने की अपील की है और लोगों का आह्वान किया है कि वे बढ़े हुए बिलों की खिलाफत करें। अनशन के पहले दिन लोगों ने दिलचस्पी दिखाई। लेकिन अनशन ज्यो-ज्यों आगे बढ़ा लोगों की अपेक्षित भीड़ नहीं जुट पाई। ऐसा लगता है कि केजरीवाल से भी लोगों की उम्मीदें खत्म हो रही हैं।

रामानुज सिंह
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सुंदरनगरी इलाके में शहीदे आजम भगत सिंह के शहादत दिवस 23 मार्च से बिजली और पानी के बढ़े बिलों को लेकर अनिश्चितकालीन अनशन पर डटे हुए हैं। उन्होंने बिजली और पानी के बढ़े बिल का भुगतान न करने की अपील की है और लोगों का आह्वान किया है कि वे बढ़े हुए बिलों की खिलाफत करें। अनशन के पहले दिन लोगों ने दिलचस्पी दिखाई। लेकिन अनशन ज्यो-ज्यों आगे बढ़ा लोगों की अपेक्षित भीड़ नहीं जुट पाई। ऐसा लगता है कि केजरीवाल से भी लोगों की उम्मीदें खत्म हो रही हैं।
हालांकि केजरीवाल ने भीड़ नहीं जुटने का बचाव करते हुए कहा कि विरोध स्थल पर लोगों का पहुंचना जरूरी है ना कि भीड़ का एकत्र होना। उन्होंने कहा कि विरोध स्थल पर भीड़ की कोई आवश्यकता नहीं है। पार्टी कार्यकर्ता शहर के हर कोने में जाकर लोगों से बिजली और पानी के बढ़े बिलों के विरोध में शामिल होने के लिए कह रहे हैं। लाखों लोगों ने इस असहयोग आंदोलन को अपना समर्थन दिया है। विरोध में हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। इसमें कई लाख लोगों ने हस्ताक्षर किए।
सवाल यह उठता है कि दो साल पहले जिस केजरीवाल ने जनलोकपाल के मुद्दे पर केंद्र सरकार को हिला दिया था। उनके एक आह्वान पर जंतर मंतर हो या रामलीला मैदान लाखों की संख्या में छात्र नौजवान, बच्चे, बूढ़े सभी जुट जाते थे। वही केजरीवाल जनता की मूलभूत मांग को लेकर सप्ताह भर से अनशन पर बैठे हैं तो जनता इतना निष्ठुर कैसे हो गई?
बिजली-पानी के बढ़ती दरों का असर तो दिल्ली में रहने वाले तकरीबन सभी लोगों पर पड़ रहा है, तो इस भ्रष्टाचार पर जनता आंखें क्यों मूंदें बैठी है? क्या अपने उस प्रिय नेता पर से विश्वास उठ गया है? या लोगों ने यह समझ लिया कि ये भी पार्टी बनाकर उन्हीं की बिरादरी में शामिल हो गए हैं जो दूसरे पार्टी वाले नेता सत्ता पाने के लिए करते हैं।
अरविंद केजरीवाल ने अक्टूबर 2012 में अन्ना हजारे से अलग होकर आम आदमी पार्टी का गठन किया। इसके लिए उन्होंने लोगों से सोशल साइट और एसएमएस के जरिए राय ली। ज्यादातर लोगों ने पार्टी बनाने की सलाह दी। लेकिन वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे पार्टी बनाने के पक्ष में नहीं थे। इन्हीं मुद्दों पर देश को एकजुट करने वाले आंदोलन में दरार पड़ी। दोनों ने अपना-अपना रास्ता बना लिया।
मतांतर के बावजूद केजरीवाल ने इस असहयोग आंदोलन में शिरकत करने के लिए अन्ना हजारे को न्योता भेजा। मीडिया के मुताबिक पहले अन्ना से न्योता को ठुकरा दिया था, पर 29 मार्च की रात अन्ना केजरीवाल के अनशन स्थल पर पहुंचे और उसने अनशन तोड़ने की अपील की। दोनों के अलग होने के बाद यह पहला मौका था जब अन्ना केजरीवाल एक साथ मंच पर दिखाई दिए।
दोनों के विचारों में तालमेल भले ही ना हो पर अलग होने से दोनों की शक्ति में ह्रास हुआ है। देश को भ्रष्टाचार दीमक की तरह खा रहा है। ऐसे में अन्ना और केजरीवाल लोगों की उम्मीद बनकर आए थे। ताकि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण हो सके। लेकिन दोनों के विलगाव के चलते जनता का आंदोलन पर से मोहभंग होता दिख रहा है। इसका मिसाल सुंदर नगरी में केजरीवाल के अनशन में लोगों की उपस्थिति से पता चलता है।

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