कटघरे में राहुल गांधी की नौटंकी

दागी सांसदों को बचाने के लिए यूपीए सरकार के अध्यादेश को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नौटंकी सवालों के घेरे में है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी को इस मसले पर सफाई देनी चाहिए क्योंकि राहुल गांधी न सिर्फ कांग्रेस उपाध्यक्ष हैं, बल्कि वह राहुल की मां भी हैं।

प्रवीण कुमार
दागी सांसदों को बचाने के लिए यूपीए सरकार के अध्यादेश को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नौटंकी सवालों के घेरे में है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने दागी नेताओं को बचाने वाले सरकार के अध्यादेश का विरोध कर देश और देश से बाहर जिस तरह से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की फजीहत करवाई है, वह राहुल गांधी का सहज व्यवहार नहीं था। राजनीतिक पंडितों की कयासबाजी पर अगर भरोसा करें तो यह पार्टी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा लगता है।
सियासी गलियारे में इस वाकये को राजीव गांधी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। मालूम हो कि 21 जनवरी 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विदेश सचिव ए.पी. वेंकटेश्वरन को बहुत ही अपमानजनक हालात में एक प्रेस कान्फ़्रेंस के दौरान ही बर्खास्त कर दिया था। तब एक पाकिस्तानी पत्रकार ने राजीव से सवाल किया था कि पाकिस्तान की भावी यात्रा के बारे आपके और आपके विदेश सचिव के विचारों में इतना फर्क क्यों है, तो राजीव गांधी ने जवाब दिया कि जल्द ही आप नए विदेश सचिव से बात करेंगे। अपमानित वेंकटेश्वरन ने उसी दिन अपना त्याग पत्र भेज दिया था। राहुल गांधी ने भी सरकार के अध्यादेश का विरोध कर पीएम मनमोहन सिंह के लिए कुछ ऐसी ही शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है।
सियासी गलियारों में इस बात को लेकर बहस जोरों पर है कि राहुल के इस बयान के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वदेश लौटने के तुरंत बाद इस्तीफा दे देंगे। हालांकि ये राजनीति है और इसमें कुछ भी कयास लगाना खतरे से खाली नहीं होता है। लेकिन विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक राहुल के बयान के बाद अमेरिका दौरे पर गए मनमोहन सिंह ने सीधे सोनिया को फोन कर अपनी नाराजगी जाहिर की है। इसके बाद सोनिया और राहुल में बातचीत हुई, जिसके बाद मनमोहन के घावों पर मरहम लगाने के तहत राहुल ने पीएम को ई-मेल भी किया। लेकिन अभी यह साफ नहीं हुआ है कि राहुल के इस ई-मेल से पीएम की नाराजगी दूर हुई या बनी हुई है।
दरअसल, जब कैबिनेट ने इस अध्यादेश को पारित कर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास मंजूरी के लिए भेज दिया और भाजपा के दिग्गज नेताओं ने राष्ट्रपति से मिलकर इसपर अपनी आपत्ति जताई तो महामहिम ने तुरंत मनमोहन सरकार के तीन मंत्रियों कपिल सिब्बल, सुशील कुमार शिंदे और कमलनाथ को तलब किया और अध्यादेश पर स्पष्टीकरण मांगा। सूत्र यहां तक बताते हैं कि राष्ट्रपति ने इस मसले पर सोनिया गांधी से भी मशविरा किया और फिर सोनिया एक्शन में आई और राहुल गांधी की छवि को बेहतर बताने के लिए प्रेस क्लब में की गई नौटंकी को अंजाम दिया गया। यह घटनाक्रम कोई एक-दो दिन की कवायद नहीं थी। सुनियोजित तरीके से और पूरे होश में इस घटनाक्रम को अंजाम दिया गया।
सरकार की किरकिरी कराने वाले राहुल के बयान का कांग्रेस के अंदर भी विरोध शुरू हो गया है। दबी जुबान में कांग्रेस नेता इसका इजहार भी कर रहे हैं। `मुंबई मिरर` को एक कांग्रेस नेता ने यहां तक कहा कि दरअसल राहुल गांधी ने यह सब ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के कहने पर किया है। इस नेता के मुताबिक राहुल गांधी लालू या राजद के विरोध में नहीं हैं। वह कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम से लड़ रहे जयराम रमेश के गुट के कब्जे में हैं। तो क्या राहुल गांधी को जयराम रमेश मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं?

एक सांसद ने तो यहां तक कह डाला कि राहुल गांधी ने अपने इस बयान से न सिर्फ पीएम की फजीहत कराई, बल्कि 21 सितंबर को इस अध्यादेश को पास करने वाली कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक की अध्यक्षता करने वाली अपनी मां सोनिया गांधी को भी मूर्ख साबित कर दिया है। कांग्रेस के आला नेता राहुल के अध्यादेश के विरोध में कहे गए `ऑर्डिनेंस को फाड़ देना चाहिए` जैसे शब्दों से कुछ ज्यादा ही नाराज हैं।
बहरहाल, पहला बड़ा सवाल यह है कि राहुल को इस अध्यादेश पर इतनी देर से गुस्सा क्यों आया? दूसरा सवाल यह कि गुस्से का इजहार करने के लिए मर्यादा की सीमा का उल्लंघन क्यों किया गया? और तीसरा बड़ा सवाल यह कि अपनी ही पार्टी की सरकार के कैबिनेट के फैसले को पार्टी लाइन से इतर हटकर अध्यादेश का विरोध कर राहुल क्या साबित करना चाहते हैं? इन तीनों सवाल का जवाब अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी को देना होगा क्योंकि राहुल गांधी न सिर्फ कांग्रेस उपाध्यक्ष हैं, बल्कि वह राहुल की मां भी हैं। समय रहते अगर यह साफ नहीं हो पाया तो आज नरेंद्र मोदी ने सवाल उठाया है, आने वाले समय में कांग्रेस के भीतर से सवाल उठने लगेंगे और फिर पार्टी की एकजुटता को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।

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